Bhopal News: छतरपुर स्थित बागेश्वर धाम के पंडित धीरेंद्र शास्त्री द्वारा हैहयवंशी समाज के आराध्य देव श्री सहस्रबाहू महाराज पर की गई अभद्र टिप्पणी के बाद हैहयवंशी समाज में जमकर आक्रोश है.सोशल मीडिया पर हैहयवंशी समाज के लोग पंडित धीरेंद्र शास्त्री को नसीहत दे रहे हैं.वाट्सऐप के आईका एमपी इंडिया ग्रुप पर हैहयवंशी समाज के लोगों ने कागज के दो पेजों पर सहस्रबाहु महाराज का इतिहास लिखकर डाला है. 


सहस्रबाहु महाराज का इतिहास
हैहयवंशी समाज के लोगों की ओर से दी गई जानकारी के अनुसार प्रतिवर्ष कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को सहस्रबाहु जयंती मनाई जाती है.कार्तवीर्य अर्जुन के हैहयाधिपति, सहस्रार्जुन, दषग्रीविजयी, सुदशेन, चक्रावतार, सप्तद्रवीपाधि, कृतवीर्यनंदन, राजेश्वर आदि कई नाम होने का वर्णन मिलता है.सहस्रबाहु अर्जुन ने अपने जीवन में यूं तो बहुतों से युद्ध लड़े, लेकिन उनमें दो लोग खास थे,पहले रावण और दूसरे परशुराम.


सहस्रार्जुन एक चंद्रवंशी राजा थे.सहस्रबाहु का जन्म महाराज हैहय की 10वीं पीढ़ी में माता पद्मिनी के गर्भ से हुआ था.उनका जन्म नाम एकवीर था.चंद्र वंश के महाराजा कृतवीर्य के पुत्र होने के कारण उन्हें कार्तवीर्य अर्जुन कहा जाता है.कृतवीर्य के पुत्र अर्जुन थे.कृतवीर्य के पुत्र होने के कारण उन्हें कात्र्तवीर्यार्जुन भी कहा गया.कात्र्तवीर्यार्जुन ने अपनी अराधना से भगवान दत्तात्रेय को प्रसन्न किया था.भगवान दत्तात्रेय ने युद्ध के समय कात्र्तवीर्याजुन को हजार हाथों का बल प्राप्त करने का वरदान दिया था. इस वजह से उन्हें सहस्त्रार्जुन कहा जाने लगा.


किसने बसाया था महेश्वर नगर
सहस्रबाहु के पूर्वज महिष्मन्त थे,जिन्होंने नर्मदा के किनारे महिष्मति आधुनिक महेश्वर और मंडला नामक नगर बसाया.इन्हीं के कुल में आगे चलकर दुर्दुम के उपरांत कनक के चार पुत्रों में सबसे बड़े कृतवीर्य ने महिष्मती के सिंहासन को संभाला.भार्गववंशी ब्राह्मण इनके राज पुरोहित थे.भार्गव प्रमुख जमदग्नि ऋषि परशुराम के पिता से कृतवीर्य के मधुर संबंध थे.भागवत पुराण में सहस्रबाहु महाराज की उत्पत्ति की जन्मकथा का वर्णन मिलता है.उन्होंने भगवान विष्णु की कठोर तपस्या करके 10 वरदान प्राप्त किए और चक्रवर्ती सम्राट की उपाधि धारण की थी.नर्मदा नदी के तट पर महिष्मती महेश्वर नरेश हजार बाहों वाले सहस्रबाहु अर्जुन और दस सिर वाले लंकापति रावण के बीच एक बार भयानक युद्ध हुआ था.इस युद्ध में रावण हार गया था और उसे बंदी बना लिया गया था.बाद में रावण के पितामह महर्षि पुलत्स्य के आग्रह पर उसे छोड़ा गया. 


क्या कहा था पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री ने


पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री ने कहा कि यहां पर बहुत से बुद्धि और तर्क के लोग ब्राह्मण और क्षत्रियों में आपस में टकराने के लिए उपाय करते रहते हैं. कहा जाता है कि 21 बार क्षत्रियों से भूमि विहिन कर दी गई थी.बात मजाक और हंसी की यह है कि अगर एक बार क्षत्रियों को मार दिया गया तो 20 बार क्षत्रिय कहां से आए. 21वीं बार की जरूरत क्यों पड़ी.उन्होंने कहा कि ये क्षत्रिय अचानक से प्रकट कहां से हो जाते थे. 


उन्होंने कहा था कि सहस्रबाहु जिस वंश से था,उस वंश का नाम था हैहयवंश. हैहयवंश के विनाश के लिए भगवान परशुराम ने फरसा अपने हाथ में उठाया था. हैहयवंश का राजा बड़ा ही कुकर्मी,साधुओं पर अत्याचार करने वाला,स्त्रियों से बलात्कार करने वाला था. जितने भी क्षत्रिय वंश के राजा थे, ऐसे अताताइयों के खिलाफ ही भगवान परशुराम ने फरसा उठाया था. शास्त्र में कहा गया है कि साधु का काम ही है कि दुष्टों को ठिकाने लगाते रहना है. इसलिए उन्होंने हैहयवंश के राजाओं को मारना प्रारंभ किया. उन्होंने शास्त्र की मर्यादाओं का पालन करते हुए कभी भी न तो स्त्रियों पर फरसा उठाया और न बच्चों पर. ये बच्चे युवा हुए और उन्होंने भी अत्याचार प्रारंभ किया. उन्होंने भी अपने पिता का बदला लेने के लिए भगवान परशुराम पर आक्रमण किया. इसके बाद भगवान परशुराम ने उन अताताइयों का वध किया. उनकी भी संतानें थीं, उनका भी वध किया.इस तरह 21 बार पृथ्वी को क्षत्रिय विहिन किया. 


धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री ने अब क्या कहा है


इस बयान पर हो रहे विरोध के बाद पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री ने ट्विटर पर लिखा है, ''हमारा उद्देश्य किसी भी समाज अथवा वर्ग की भावनाओं को आहत करने का नहीं था न ही कभी होगा,क्योंकि हम तो सदैव सनातन की एकता के पक्षधर रहे हैं.फिर भी यदि हमारे किसी शब्द से किसी की भावना आहत हुई हो तो इसका हमें खेद है.हम सब हिंदू एक हैं.एक रहेंगे.हमारी एकता ही हमारी शक्ति है."


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