Jabalppur News: सेंट्रल जेल जबलपुर आजादी के बलिदानियों की यादों से भरी पड़ी है. यहां न केवल नेताजी सुभाषचंद्र बोस को अंग्रेजों ने कारावास दिया था बल्कि आदिवासी योद्धा टंट्या भील को फांसी भी दी गई थी. टंट्या भील को भारत का 'रॉबिनहुड' भी कहा जाता है. आजादी के अमृत महोत्सव के तहत देश भर में आदिवासी जन नेताओं को याद किया जा रहा है. इसी क्रम में आज जबलपुर सेंट्रल जेल में अमर क्रांतिकारी टंट्या भील को याद करने के लिए खास कार्यक्रम का आयोजन किया गया. अमर शहीद टंट्या भील के बलिदान को याद करते हुए नेताजी सुभाष चंद्र बोस सेंट्रल जेल की पवित्र मिट्टी कलश में रखकर उनकी जन्मस्थली खंडवा के लिए रवाना किया गया. कार्यक्रम में प्रभारी मंत्री गोपाल भार्गव,जबलपुर सांसद राकेश सिंह समेत अनेक विधायक मौजूद रहे. 


इस मौके पर प्रभारी मंत्री गोपाल भार्गव ने कहा कि कई जननायक हैं जिनके बलिदान की गाथाओं को इतिहास से अलग कर दिया गया. ऐसे ही जननायकों की स्वतंत्रता संग्राम की कहानियों को एक बार फिर आज की पीढ़ी के सामने लाया जा रहा है. गोपाल भार्गव ने बताया कि आज का दिन गौरवपूर्ण दिन है,जब हम जननायक टंट्या भील को याद कर रहे हैं. 


आपको बता दें कि अमर शहीद टंट्या भील को जबलपुर की केंद्रीय जेल में 4 दिसंबर 1889 को फांसी दी गई थी. 12 साल तक अंग्रेजों से लड़ने वाले टंट्या भील जनजाति समाज के योद्धा थे. उनका जन्म 1840 में पूर्वी निमाड़ की पंधाना तहसील में हुआ था. जबलपुर सेंट्रल जेल से कलश में मिट्टी लेकर उनकी जन्मस्थली पर पहुंचाया जा रहा है और वहीं पर उनका एक भव्य स्मारक तैयार हो रहा है. उस स्मारक में इस पवित्र मिट्टी का इस्तेमाल किया जाएगा. 


इतिहासकारों के मुताबिक अमर शहीद टंट्या भील को अंग्रेजों ने धोखे से गिरफ्तार कर लिया था और इंदौर में ब्रिटिश रेजिडेंसी क्षेत्र में सेंटर इंडिया एजेंसी जेल में रखा गया. बाद में उन्हें जबलपुर जेल लाया गया और 4 दिसंबर 1889 को फांसी दी गई. टंट्या भील का मूल नाम तातिया था. उन्हें प्यार से टंट्या मामा के नाम से बुलाया जाता था. उन्हें भारत का रॉबिनहुड भी कहा जाता है. 


कहते हैं कि टंट्या भील ब्रिटिश सरकार के खजाने को लूटता था और उन्हें गरीबों, जरूरतमंदों में बांट देता था. वास्तव में उनको वंचितों का मसीहा कहा जाता था. उन्हें सभी आयु वर्ग के लोग प्यार से टंट्या मामा भी कहते थे. उनका संबोधन इतना लोकप्रिय हुआ कि भील आज भी 'मामा' कहे जाने पर गर्व महसूस करते हैं. टंट्या मामा चमत्कारिक ढंग से आर्थिक मदद के जरूरतमंदों तक तक पहुंच जाते थे.


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