(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
Madhya Pradesh :सरकारी स्कूलों में पहली से आठवीं कक्षा के विद्यार्थियों की संख्या में एक दशक में आयी कमी
मध्य प्रदेश में पिछले एक दशक में सरकारी स्कूलों में पहली से आठवीं कक्षा में पढ़ने वाले विद्यार्थियों की संख्या घटकर लगभग आधी हो गई है. इसलिए यह एक चिंता का विषय बन चुका है. आइए आपको बताते हैं
Madhya Pradesh: मध्य प्रदेश में पिछले एक दशक में सरकारी स्कूलों में पहली से आठवीं कक्षा में नामांकन कराने वाले विद्यार्थियों की संख्या घटकर लगभग आधी हो गई है. सरकार ने राज्य विधानसभा में सोमवार को यह जानकारी दी.
विधार्थियों की संख्या 105.30 लाख से घटकर 64.34 लाख हो गई
प्रदेश के स्कूली शिक्षा मंत्री इंदर सिंह परमार ने ग्वालियर दक्षिण से कांग्रेस के विधायक प्रवीण पाठक द्वारा पूछे गए एक प्रश्न के लिखित उत्तर में बताया कि इन कक्षाओं में 2010-2011 में 105.30 लाख विद्यार्थियों ने नामांकन कराया था और यह संख्या अब घटकर 2020-2021 में 64.34 लाख विद्यार्थी रह गई है. मंत्री के जवाब के अनुसार शिक्षा के अधिकार (आरटीई) के तहत निजी स्कूलों में मुफ्त प्रवेश, बच्चों की आबादी में कमी और समग्र सामाजिक सुरक्षा मिशन पंजीकरण के कारण आंकड़ों के ठीक होने के चलते विद्यार्थियों की संख्या में यह गिरावट दर्ज की गई है.
6 से 14 आयु वर्ग के बच्चों का प्रवेश सुनिश्चित करने के प्रयास
सिंह ने कहा कि 6 से 14 आयु वर्ग के बच्चों का प्रवेश सुनिश्चित करने के प्रयास किए जा रहे हैं. जवाब के अनुसार 2010-11 में 16.14 लाख बच्चों ने पहली कक्षा में प्रवेश लिया था और अब 2020-21 में यह संख्या घटकर 6.96 लाख रह गई है. इसके अनुसार इसी तरह दूसरी कक्षा में प्रवेश 15.46 लाख से घटकर 8.05 लाख, तीसरी कक्षा में 14.54 लाख से 7.85 लाख, चौथी कक्षा में 13.97 लाख से घटकर 8.62 लाख, पांचवी कक्षा में 13.15 लाख से घटकर 8.31 लाख, छठी कक्षा में 11.68 लाख से घटकर 7.81 लाख, सातवीं कक्षा में 11.01 लाख से घटकर 8.35 लाख तथा आठवीं कक्षा में 9.35 लाख से घटकर 8.39 लाख रह गई है.
मंत्री ने उत्तर में बताया कि मध्यान्ह भोजन पर खर्च हालांकि 2010-2011 में 91,603 लाख रुपये से बढ़कर वर्ष 2020-21 में 1,61,789 लाख रुपये हो गया है जबकि मुफ्त गणवेश वितरण का व्यय जो 2010-11 में 39,911 लाख रुपये था वह 2020-21 में 32,408 लाख रुपये रहा.मंत्री की जानकारी के अनुसार 2010-11 में मुफ्त पुस्तक वितरण खर्च 16,020 लाख रुपये हुआ था, वह 2018-19 में बढ़कर 22,653 लाख रुपये जबकि 2020-21 में घटकर 15,436 लाख रुपये हो गया.