Mahakal Lok: तीन तरह से बनाई जा सकती थीं महाकाल लोक की प्रतिमाएं, फाइबर को ही क्यों चुना गया?
Mahakal Lok: महाकाल लोक में विराजमान फाइबर की 105 मूर्तियां अगर भविष्य में क्षतिग्रस्त होती हैं, तो उसका कुछ भी मूल्य महाकाल मंदिर समिति को वापस नहीं मिल पाएगा. मूर्तियां खूबसूरत और मूल्यवान हैं.
Mahakal Lok Idols Fell: महाकाल लोक (Mahakal Lok) में सात करोड़ से ज्यादा की लागत से बनाई गई 105 मूर्तियां अगर डैमेज हो जाती हैं, तो इसकी कीमत 700 रुपये भी नहीं रहेगी. फाइबर की बनाई गईं सभी मूर्तियां केवल दिखने में सुंदर लगती हैं. हालांकि, मौसम की मार का इस पर काफी असर भी पड़ता है. ऐसे महाकाल लोक की खूबसूरती को बनाए रखने के लिए मंदिर समिति और जिला प्रशासन को काफी मशक्कत करना पड़ेगी.
उज्जैन में पिछले दिनों आए आंधी-तूफान ने महाकाल लोक में रखी सप्त ऋषियों की मूर्तियों को क्षतिग्रस्त कर दिया. अब मूर्तियों की क्षमता को लेकर कई प्रकार के सवाल खड़े हो रहे हैं. मूर्तिकार सुंदर गुर्जर के मुताबिक, फाइबर की मूर्तियां उस स्थिति में बनाई जाती है, जब पत्थर या अष्टधातु की मूर्ति बनाना संभव नहीं होता है. तीनों प्रकार में से सबसे नाजुक, सुंदर और सस्ती मूर्ति फाइबर की रहती हैं. इसका रखरखाव भी काफी आसान रहता है. हालांकि जब मूर्ति क्षतिग्रस्त होती है, तो इसकी कोई कीमत नहीं होती.
तीन प्रकार की होती हैं भगवान की मूर्तियां
उन्होंने बताया कि तब इसे कोई भी नहीं खरीदता है, बल्कि क्षतिग्रस्त मूर्ति फेंकने के लिए अलग से राशि खर्च करना पड़ती है. मूर्तिकार सुंदर गुर्जर के मुताबिक, महाकाल लोक में लगाई गईं मूर्तियां बारिश, ठंड और गर्मी की वजह से अपने मूल रूप से परिवर्तित हो सकती हैं. आने वाले समय में कुछ और मूर्तियों में डैमेज भी आ सकता है. भगवान की मूर्तियां तीन प्रकार से तैयार की जा सकती हैं. पहली पत्थर से दूसरी अष्टधातु से और तीसरी फाइबर से. पत्थर की विशाल मूर्ति बनाने में काफी वक्त लगता है. ऐसे में मूर्ति को स्थापित करने के दौरान उसके खंडित होने का डर भी बना रहता है.
तीनों मूर्तियों में क्या है फर्क
सनातन धर्म में खंडित मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा या पूजा नहीं होती है. दूसरे विकल्प के रूप में यदि अष्टधातु की मूर्ति की बात की जा, तो वह कम समय में तैयार हो सकती है, लेकिन उस पर अधिक राशि खर्च होती है. हालांकि अष्टधातु की मूर्ति का यह लाभ है कि, उसे कभी भी विक्रय कर नई मूर्ति लगाई जा सकती है. अष्टधातु की मूर्ति की अच्छी कीमत भी मिल जाती है. आखिरी विकल्प के रूप में फाइबर की मूर्तियां स्थापित की जाती हैं. फाइबर की मूर्तियां हल्की और नाजुक रहती हैं.
देश के कई मंदिरों में फाइबर की प्रतिमा- कलेक्टर
वहीं महाकालेश्वर मंदिर समिति के अध्यक्ष और कलेक्टर कुमार पुरुषोत्तम के मुताबिक, महाकाल लोक ही नहीं बल्कि भारत के कई मंदिरों में फाइबर की प्रतिमाएं स्थापित हैं. गुजरात के अक्षरधाम मंदिर में भी फाइबर की प्रतिमा लगाई गई है. उज्जैन में तेज आंधी की वजह से मूर्तियां खंडित हुई है. इसके स्थान पर नई मूर्तियां लगाई जाएंगी. पत्थर की मूर्तियां बनाने में काफी वक्त लगता है. महाकाल मंदिर समिति के साथ मिलकर मूर्तियों के रखरखाव और अन्य सुरक्षा बिंदुओं पर सूक्ष्मता से कार्य चल रहा है.
ऐसे बनती है फाइबर की मूर्तियां
बता दें फाइबर की मूर्ति का निर्माण करने के लिए सबसे पहले मिट्टी का सांचा तैयार किया जाता है. इस सांचे पर डाई का निर्माण होता है. जैसे ही डाई बनकर पूर्ण हो जाती है, उसके बाद फाइबर की जाल को रखकर उस पर केमिकल और हार्डनर पोता जाता है. इसके बाद मूर्ति धीरे-धीरे अपना आकार लेने लग जाती है. इसके बाद मूर्ति की मोटाई बढ़ाई जाती है. फाइबर की मूर्ति कम से कम आठ एमएम की मनाई जाती है, जो मजबूत रहती है. महाकाल लोक में बनाई गई मूर्तियां दो या तीन एमएम मोटाई की बताई जा रही हैं.