Navratri 2022: कवि कालिदास का एक वाक्य काफी मशहूर है कि वे जिस डाल पर बैठते थे उसी को काट देते थे. महाकवि कालिदास ने जब उज्जैन (Ujjain) में मां गढ़कालिका (maa Gadhkalika) की आराधना की तो उन्हें अटूट ज्ञान प्राप्त हुआ जिसके बाद उन्होंने मेघदूत और शकुंतलम जैसे महाकाव्य की रचना की. इसी बात को मंदिर में आने वाले श्रद्धालु उदाहरण के तौर पर लेते हैं.  इससे आज भी सिद्ध पीठ में विद्या का वरदान मांगने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं. 


तांत्रिक क्रियाओं के लिए भी मशहूर
धार्मिक नगरी उज्जैन में शहर से कुछ ही दूरी पर स्थित मां गढ़कालिका का मंदिर लाखों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है. मंदिर के पुजारी रामस्वरूप शर्मा बताते हैं कि यह महाकवि कालिदास और सम्राट विक्रमादित्य की आराध्य देवी है. गढ़ कालिका मां के दर्शन करने मात्र से सुख, शांति, समृद्धि और वैभव की प्राप्ति होती है. गढ़ कालिका माता मंदिर सिद्ध पीठ के रूप में जाना जाता है. इसे उप शक्तिपीठ भी कहा जाता है. गढ़कालिका मंदिर में नवरात्री के अलावा आम दिनों में भी श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है. यह मंदिर तांत्रिक क्रियाओं के लिए भी मशहूर है. यहां पर पूर्व में बलि प्रथा भी थी लेकिन अब समय के साथ बलि प्रथा बंद हो गई है. 


गढ़कालिका मंदिर में श्रद्धालुओं का तांता
मंदिर में दर्शन करने आई लता शर्मा ने बताया कि वे हर साल नवरात्रि के दौरान माता का आशीर्वाद लेने के लिए आती हैं. माता से अभी तक जो भी मनोकामना मांगी है वह पूरी हुई है. गढ़ कालिका माता मंदिर के प्रति उनके पूरे परिवार की काफी आस्था है. यह मंदिर अपने आप में चमत्कारी मंदिर है. श्रद्धालु दीपक चंदेल के मुताबिक पिछले 20 साल से माता के दर्शन करने के लिए आ रहे हैं और अभी तक जो भी माता से मांगा है वह सब कुछ मिला है.




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