Ujjain News: तीन दशक बाद मार्गशीर्ष योग में फिर एक बार शनिचरी अमावस्या आ रही है. शनिचरी अमावस्या पर विधिवत पूजा-अर्चना और दान-धर्म करने का विशेष महत्व है. साल 2021 की आखिरी शनिचरी अमावस्या विशेष फलदाई है. इसके अलावा नियमित रूप से भी शनि देव की आराधना मनोवांछित फल प्राप्त करने के लिए उपयोगी है. रामघाट के पंडित अमर डब्बावाला ने बताया कि इस अमावस्या पर तीर्थ नगरी में स्नान और दान धर्म से विशेष फल प्राप्त होता है. उनके मुताबिक शनि अमावस्या के अतिरिक्त भी भगवान शनि देव की आराधना करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है. शनि देव सभी गृहों में ताकतवर होने के साथ-साथ अनुकूल और विपरीत परिस्थिति में सर्वाधिक महत्व रखते हैं.
प्रतिदिन शनि देव की आराधना भी फलदाई माना जाता है. इस बार शनिचरी अमावस्या का विशेष संयोग तीन दशक में दूसरी बार आया है. पंडित डिब्बावाला ने कहा कि सत्य की राह पर चलने वाले और ईमानदारीपूर्वक कर्तव्य का पालन करने वालों से शनिदेव हमेशा प्रसन्न रहते हैं. आमतौर पर अगर कोई श्रद्धालु शनिदेव की विधिवत आराधना भी नहीं कर सकता तो शनिचरी अमावस्या पर बेजुबान पशु पक्षियों को दाना और चारा डाल कर भी भगवान को प्रसन्न कर सकता है. इसके अतिरिक्त भगवान शनि देव को काले तिल और तेल के साथ-साथ वस्त्र अर्पित करने से भी प्रसन्नता मिलती है और मनोकामना पूरी करते हैं.
कहा जाता है कि सम्राट विक्रमादित्य पर शनि की कुदृष्टि पड़ने के बाद स्थिति बिगड़ गई थी. इसके बाद उन्होंने शनिदेव की पूजा अर्चना की और फिर शनिदेव ने स्वयं प्रसन्न होकर मन वांछित फल दिया. इस दौरान सम्राट विक्रमादित्य ने सभी नौ ग्रह की आराधना करते हुए उज्जैन के लोगों पर विशेष रूप से कृपा रखने की प्रार्थना की. सभी नौगृह शिप्रा के तट पर पहुंचे और स्वयंभू विराजमान हो गए, तभी से शिप्रा तट पर स्नान के बाद नवग्रह मंदिर में पूजा अर्चना की जाती है. यहां पर शनिदेव का भी विशेष मंदिर है जहां शनिचरी अमावस्या पर स्नान और पूजन का विशेष महत्व है.