MP News : भगवान महाकाल की नगरी उज्जैन (Ujjain) में केवल अकाल मृत्यु के भय से ही मुक्ति नहीं मिलती है बल्कि यहां पर मोक्ष की प्राप्ति भी होती है. शिप्रा तट (Shipra River) के किनारे स्थित सिद्धवट मंदिर की प्राचीन समय से ही काफी मान्यता है. स्कंद पुराण के मुताबिक इस वट वृक्ष को माता पार्वती ने लगाया था. यहां पर दूध अर्पित करने और पूजा करने से पितरों की शांति के साथ-साथ मोक्ष की प्राप्ति होती है.


पितरों को मिलता है वैकुंठ पर स्थान


धार्मिक नगरी उज्जैन में शिप्रा के किनारे स्थित सिद्धवट मंदिर पर प्रतिदिन हजारों की संख्या में श्रद्धालु पितरों के तर्पण पूजा अर्चना और कर्मकांड के लिए आते हैं. ऐसी मान्यता है कि सिद्धवट पर की गई पूजा से पितरों को वैकुंठ में स्थान मिलता है. सिद्धवट के पुजारी सुधीर चतुर्वेदी के मुताबिक यहां पर स्थित वटवृक्ष को माता पार्वती ने लगाया था. देश भर में 4 वटवृक्ष की काफी मान्यता है. इसमें उज्जैन का सिद्धवट भी शामिल है. सिद्धवट के अलावा गया में  बोद्धवट, वृंदावन में बंशिवट और इलाहाबाद में अक्षत वट की काफी मान्यता है.


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सीधे पितरों को प्राप्त होता है दूध


पंडित सुधीर चतुर्वेदी के मुताबिक मुगल शासक काल में इस वट वृक्ष को कटवा कर इसक शाखाओं पर लोहे के तवे जड़वा दिए गए थे. उस समय वट वृक्ष की शाखाएं लोहे के तवे को तोड़कर बाहर निकल गई थी. ऐसी कई प्राचीन किवदंती प्रचलित है. स्कंद पुराण के अवंतिका खंड के मुताबिक यहां पर वट वृक्ष को दूध सीधे पितरों को प्राप्त होता है. इन्हीं मान्यताओं के चलते देशभर के श्रद्धालु श्राद्ध पक्ष के अलावा भी यहां पर तर्पण करने के लिए आते हैं.


चौदस पर लगती है श्रद्धालुओं की भीड़


वैसे तो प्रतिदिन सिद्धवट पर दर्शन और दूध चढ़ाने के लिए हजारों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं लेकिन चौदस पर यहां पूजा का विशेष महत्व माना जाता है. पंडित राजेश चतुर्वेदी के मुताबिक यहां पर पूजा अर्चना करने से धन्य-ध्यान और सुख-शांति-समृद्धि की प्राप्ति होती है. इसके अलावा वंश वृद्धि के लिए भी सिद्धवट का स्थान सिद्ध माना गया है यहां पर सारी पूजा सिद्ध होती है.


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