50 सीटों पर पकड़, हिंदुत्व की फायर ब्रांड छवि; चुनावी साल में उमा भारती के बागी रुख ने क्यों बढ़ाई बीजेपी की टेंशन?
उमा भारती सरकार चला चुकी हैं और जानती हैं कि शराबबंदी लागू करना आसान नहीं है. इसके बावजूद शराबबंदी के जरिए बीजेपी सरकार को घेरने में जुटी है. उमा का यह बागी रुख बीजेपी को कितना नुकसान पहुंचा सकता है?
2 साल से चुप्पी साधे रहीं बीजेपी के कद्दावर नेता उमा भारती फिर से सुर्खियों में है. शराबबंदी और गाय के मुद्दे पर मध्य प्रदेश में अपनी ही पार्टी की सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है. उमा ने बागी रुख अख्तियार करते हुए कहा है कि शराबबंदी नहीं हुई तो आगे जो होगा, वो सब देखेंगे.
उमा की चेतावनी पर गुरुवार को जब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से भोपाल में सवाल पूछा तो वे जवाब देने के बजाय सिर्फ मुस्कुरा दिए. उमा और शिवराज के बीच सियासी द्वंद नया नहीं है, लेकिन चुनावी साल में उनके बागी रुख से हाईकमान की टेंशन जरूर बढ़ सकती है.
उमा भारती का 2 बयान, जो चर्चा में है...
- बीजेपी के लोग यूपी और एमपी के चुनाव में मेरा फोटो दिखाकर लोधियों से वोट मांगते हैं. आम दिनों में मेरी तस्वीर पोस्टर पर नहीं लगाया जाता है, लेकिन चुनाव में जरूर लगता है. (22 दिसंबर 2022)
- मैं चुनाव में वोट मांगने जरूर आऊंगी, लेकिन मैं यह नहीं कहूंगी की लोधियों तुम बीजेपी को वोट दो. आप सभी लोग मेरी तरफ से राजनीतिक बंधन से पूरी तरह से आजाद हैं. (28 दिसंबर 2022)
उमा भारती और उनके बागी रुख का मध्य प्रदेश की सियासत में क्या असर हो सकता है? आइए इसे विस्तार से जानते हैं...
पहले 5 प्वॉइंट्स में जानिए उमा के अब तक का सफर...
1. भागवत कथा के जरिए सियासत में एंट्री
1959 में मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ में जन्मीं उमा भारती बाल्यकाल से ही भागवत कथा कहने लगी थीं. गांव-गांव जाकर बुंदेलखंडी भाषा में उमा महिलाओं को कथा सुनाती थीं. कथा शैली की वजह से महिलाओं और बुजुर्गों में उमा काफी लोकप्रिय हो गई थीं.
मध्य प्रदेश बीजेपी में जान फूंकने की कोशिश में जुटी राजमाता विजयराजे सिंधिया को उनके बारे में जानकारी लगी, तो उन्होंने उमा को पार्टी में शामिल करा लिया. उमा 1984 में खजुराहो से चुनाव लड़ी, लेकिन हार गई. हालांकि, 5 साल बाद इसी सीट से संसद पहुंचने में कामयाब रही.
2. राम रथ यात्रा और वायरल स्पीच
1990 में राम मंदिर आंदोलन का बिगुल बीजेपी ने फूंक दिया था. वरिष्ठ नेता जहां आंदोलन को लेकर रणनीति तैयार करते थे, वहीं उमा भारती को लोगों को भाषण के जरिए साधने की जिम्मेदारी दी गई थी.
राम मंदिर आंदोलन के समय उमा भारती के कई भाषण खूब वायरल हुए. उमा के भाषण का टेप रिकॉर्ड विहिप और बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने खूब चलाए. बाबरी विध्वंस केस में हेट स्पीच के आरोप में उमा पर केस भी दर्ज किया गया.
3. एमपी में वापसी और दिग्गी की सत्ता उखड़ी
साल था 2002 का और केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी. राज्यों में कमल खिलाने के अभियान की जिम्मेदारी प्रमोद महाजन को मिली थी. आंतरिक गुटबाजी की वजह से हिंदुत्व के केंद्र मध्य प्रदेश में 10 साल से बीजेपी सत्ता से बाहर थी.
महाजन ने एमपी की कमान उमा भारती को सौंप दी. उमा उस वक्त अटल सरकार में केंद्रीय मंत्री थी. उमा ने संगठन में ऊपर से नीचे तक कई बदलाव किए. खुद रथयात्रा निकाली और 10 साल से काबिज दिग्विजय सिंह की सरकार को उखाड़ फेंकी.
2003 में उमा भारती को मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया गया, लेकिन एक मामले में अरेस्ट वारंट निकलने के बाद उन्हें इस्तीफा देना पड़ा. उमा के बाद कुछ महीनों के लिए बाबूलाल गौर और फिर शिवराज सिंह को एमपी की कमान सौंपी गई.
4. आडवाणी से भिड़ीं, वापसी के लिए भागवत का वीटो
नवंबर 2004 में उमा भारती बीजेपी के राष्ट्रीय मुख्यालय में तत्कालीन अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी से भिड़ गईं. इसके बाद बीजेपी ने उमा को पार्टी से चलता कर दिया. 2009 में नितिन गडकरी राष्ट्रीय अध्यक्ष बने और 2011 में उमा की बीजेपी में वापसी की पटकथा लिखी गई.
बीजेपी में उमा की वापसी से पार्टी के कई दिग्गज नेता नाराज थे, जिसे देखते हुए नितिन गडकरी ने संघ से संपर्क साधा. संघ प्रमुख ने खुद उमा की एंट्री को लेकर बयान दिया. 2012 में उमा को यूपी की कमान सौंपी गई.
5. मोदी कैबिनेट में मंत्री और संन्यास का ऐलान
2014 में बीजेपी की बंपर जीत के बाद उमा भारती को मोदी कैबिनेट में गंगा सफाई और जल विभाग का मंत्री बनाया गया. उमा इसके बाद मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश की स्थानीय राजनीति से दूर होती गईं. 2018 में उन्होंने राजनीति से संन्यास लेने का ऐलान कर दिया.
इस वजह से 2019 लोकसभा चुनाव में उन्हें पार्टी ने टिकट भी नहीं दिया. संन्यास की घोषणा के बाद कुछ साल तक उमा राजनीति से दूरी बना ली, लेकिन अब फिर सक्रिय हो गई हैं.
फिर सक्रिय क्यों हुई उमा भारती?
संन्यास लेने की बात कह कर उमा भारती फिर क्यों सक्रिय हो गई? इस सवाल के जवाब में वरिष्ठ पत्रकार नितिन दुबे कहते हैं- टीकमगढ़ और बुंदेलखंड के स्थानीय राजनीति में भी उमा भारती का सियासी वजूद शून्य में पड़ गया था. भतीजे राहुल लोधी के खिलाफ हाईकोर्ट के फैसले के बाद वहां की परिस्थितियां भी सही नहीं है.
दूसरी बड़ी वजह है- संन्यास लेने के बाद हाईकमान से पूछ नहीं होना हे. दरअसल, उमा भारती इस उम्मीद में थी कि सक्रिय राजनीति से संन्यास लेने के बाद उन्हें किसी संवैधानिक पद पर भेजा जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ.
उमा भारती अब शराबबंदी के मुद्दे को आगे कर अपना चेहरा चमकाने की कोशिश कर रही हैं. हिंदुत्व की फायर ब्रांड चेहरा होने की वजह से उमा को इसमें फुटेज भी मिल रहा है.
50 सीटों पर बीजेपी की बढ़ सकती है मुश्किलें
उमा भारती लोधी समुदाय से आती हैं, जो बुंदेलखंड और निवाड़ के 17 जिलों में काफी प्रभावी हैं. मध्य प्रदेश विधानसभा के करीब 50 सीटों पर लोधी वोटर्स असरदार हैं. इसी वजह से बीजेपी के नेता उमा के खिलाफ सीधे बयानबाजी से परहेज कर रहे हैं.
नितिन दुबे के मुताबिक अगर उमा शराबबंदी अभियान के जरिए 6 महीने में अपनी छवि बनाने में फिर से कामयाब रहती हैं, तो बीजेपी को नुकसान होना तय है. बुंदेलखंड और निवाड़ इलाकों में उमा की पकड़ अभी भी मजबूत है और शराबबंदी अभियान से सीधे तौर पर महिलाएं जुड़ी हैं.