Madhya Pradesh Mayor and Municipality and Municipal Council President Election: मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) में महापौर, नगर पालिका अध्यक्ष और नगर परिषद अध्यक्ष के सीधे चुनाव (Election) से जुड़े अध्यादेश (Ordinance) पर सरकार ने फिर अपने कदम पीछे खींच लिए हैं. सरकार और पार्टी में इसे लेकर उहापोह की स्थिति है. बीजेपी के भीतर ही इस मामले में तमाम मत और उलझनें हैं. कहा जा रहा है कि जयपुर (Jaipur) में राष्ट्रीय पदाधिकारियों की बैठक से लौटने के बाद प्रस्तावित अध्यादेश पर चर्चा हो सकती है. यहां बता दें कि, मध्य प्रदेश में अप्रत्यक्ष प्रणाली से महापौर चयन प्रक्रिया 1999 के पहले तक रही है. इस मामले में मुख्यमंत्री कार्यालय (सीएमओ) से जो अध्यादेश राजभवन भेजा गया था, उसे एक दिन बाद वापस बुला लिया गया है. कहा जा रहा है कि अब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान (Shivraj Singh Chouhan) और पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के बीच के मशविरे के बाद फैसला लिया जाएगा कि ये चुनाव प्रत्यक्ष प्रणाली (सीधे जनता के मतों ) से हों या अप्रत्यक्ष प्रणाली यानी पार्षदों के बीच चयन से हो.
ये हैं समीकरण
राजनीतिक जानकर बताते हैं कि सरकार की तरफ से अध्यादेश वापस लेने की बड़ी वजह संगठन का दबाव है. बीजेपी का एक धड़ा ये चुनाव अप्रत्यक्ष ही कराने की बात कर रहा है, जिससे मेयर या अध्यक्ष का पद आसानी से हासिल किया जा सकता है. सत्तापक्ष से जुड़े कुछ नेता और अधिकारी भी अप्रत्यक्ष चुनाव की सिफारिश कर रहे हैं. कहा जा रहा है कि ऐसा होता है तो मध्य प्रदेश में 22 साल बाद महापौर या पालिका अध्यक्ष को अप्रत्यक्ष प्रणाली से पार्षद चुनेंगे. अप्रत्यक्ष चुनाव की वकालत करने वालों का तर्क है कि कई सांसद-विधायक अपनी दावेदारी महापौर के लिए रख रहे हैं. बेहतर है कि है वो पहले पार्षद का चुनाव लड़ें. इसके अलावा सीधे चुनाव की स्थिति में टिकटों लिए खींचतान बढ़ सकती है, क्योंकि बीजेपी के पुराने कार्यकर्ताओं के साथ सिंधिया खेमा भी सक्रिय रहेगा. पार्षद यदि महापौर चुनते हैं तो सत्तापक्ष के साथ निर्दलीय पार्षदों को भी मिलाकर बहुमत हासिल किया जा सकता है.
कमलनाथ सरकार ने बदला था नियम
महापौर, पालिका अध्यक्ष निर्वाचन नियम में संशोधन कमलनाथ की कांग्रेस सरकार ने 2019-20 में किया था. इसमें अप्रत्यक्ष प्रणाली से महापौर, नगर पालिका अध्यक्ष और नगर परिषद अध्यक्ष चुनाव के प्रावधान किया गया था. इसके बाद बीजेपी सरकार प्रत्यक्ष प्रणाली से चुनाव का अध्यादेश लेकर लाई, लेकिन विधानसभा में पारित नहीं करा पाई. ताजा अध्यादेश वापस बुला लेने के कारण अभी कमलनाथ सरकार के समय संशोधित हुए नियम ही लागू हैं. इस बीच राज्य निर्वाचन आयोग चुनाव की तैयारी कर रहा है. आयोग चुनाव की घोषणा कर देता है तो अचार संहिता के कारण अध्यादेश नहीं लाया जा सकेगा. इसलिए सरकार को तुरंत निर्णय लेना होगा.
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