Year Ender 2022: साल 2022 सभी को अलविदा कहने के लिए तैयार बैठा है, लेकिन विगत एक साल के दौरान इसने सबके जेहन में तमाम यादें छोड़ी है. अगर हम बात करें इंसाफ के मंदिर की, तो जबलपुर ( Jabalpur ) से कई ऐसे फैसले और आदेश एक साल के दौरान सामने आये जो भारतीय न्यायिक ​व्यवस्था के लिहाज से नजीर बनें. आइए, हम आपको मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ( MP High court ) के पांच बड़े फैसलों की यादें ताजा करते हैं, जो 2022 के लिए यादगार बन गए.


1. एमपी धर्म स्वतंत्रता अधिनियम 2021
मध्य प्रदेश ( Madhya pradesh ) में साल 2022 में लव जिहाद को लेकर बने कानून पर जमकर बवाल मचा. एमपी सरकार ने भी इस कानून का खूब प्रचार किया.जानकार पहले भी सरकार की मंशा पर तमाम सवाल उठाते रहे लेकिन मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के एक अंतरिम आदेश ने सचमुच में इस कानून की एक धारा पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया. हाईकोर्ट में शिवराज द्वारा लागू मध्य प्रदेश धर्म स्वतंत्रता अधिनियम 2021 की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई थी.यह अंतरजातीय या अंतरधार्मिक विवाह पर कार्यवाई पर रोक की मांग से जुड़ा मामला था.याचिका में अधिनियम की धारा 10 को असंवैधानिक घोषित करने की मांग की गई थी.


इस धारा के तहत अंतरजातीय या अंतरधार्मिक विवाह के लिए 60 दिन पहले कलेक्टर के पास आवेदन देने का प्रावधान किया गया था.जस्टिस सुजय पाल और जस्टिस पीसी गुप्ता की डिविजन बेंच ने अपने अंतरिम फैसले में धारा 10 के उल्लंघन पर कार्रवाई पर रोक लगा दी. अदालत के इस फैसले को अब लव जिहाद के नाम पर अपना राजनीतिक एजेंडा सेट करने की कोशिश में लगी सरकार के खिलाफ माना जा रहा है.


2. सीएम सस्पेंशन आदेश पर स्टे
नायक अवतार में प्रदेश में घूम घूमकर अधिकारियों-कर्मचारियों को सस्पेंड करने में लगे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह की छवि को भी हाईकोर्ट के आदेश से झटका लगा. हाईकोर्ट की जबलपुर बेंच ने 9 दिसंबर को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा छिंदवाड़ा जिले के सीएमएचओ को भीड़ भरे मंच से निलंबित करने के आदेश को जबलपुर हाईकोर्ट ने स्थगित कर दिया. हाईकोर्ट के इस अंतरिम आदेश को भी सरकार की जमकर किरकिरी हुई. साथ ही यह प्रश्न भी उठा क्या मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पब्लिक प्लेटफार्म से अधिकारियों-कर्मचारियों को सस्पेंड करके नियम विरुद्ध काम कर रहे हैं?


3. दो-दो मामले में फांसी की सजा, सही कैसे?
जबलपुर हाईकोर्ट में साल 2022 में एक और चर्चित मामला सामने आया. हत्या के आरोपी की हाईकोर्ट ने दूसरी बार फांसी की सजा रद्द कर दी. अपर जिला सत्र न्यायाधिष सिंगरौली ने आरोपी रामजग बिंद (उम्र 38 वर्ष) को 97 साल के वृद्ध रिश्तेदार तथा 95 साल की उसकी पत्नी की हत्या के आरोप में नवम्बर 2019 को दोहरे मृत्युदण्ड की सजा से दण्डित किया था. हाईकोर्ट के जस्टिस सुजय पॉल तथा जस्टिस पीसी गुप्ता की युगलपीठ ने अपने आदेश में कहा कि परिस्थितिजनक साक्ष्य उत्तम गुणवत्ता के होने चाहिए.


अभियोजन पक्ष स्पष्ट व परिस्थितिजन्य साक्ष्यों की श्रृंखला प्रस्तुत नहीं कर पाया.अनुमानों के आधार पर आरोपी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है.सरकार की तरफ से कोर्ट को यह भी बताया गया कि आरोपी ने साल 1997 में एक महिला सहित पांच व्यक्तियों की हत्या की थी. जिला न्यायालय ने उसे मृत्युदंड की साज से दंडित किया था,जो बाद में हाईकोर्ट से आजीवन कारावास की सजा में तब्दील कर दिया गया था. उसके ऊपर दोहरी हत्या का दूसरा आरोप तब लगा जब वह 2014 में पैरोल पर छूटा था. कोर्ट मित्र मनीष दत्त की मदद से उसकी दोहरी फांसी की सजा रद्द हुई.


4. सहमति से सेक्स बलात्कार नहीं
साल 2022 के एक अन्य महत्वपूर्ण फैसले में मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने सहमति से किये सेक्स को बलात्कार मानने से इनकार कर दिया.उच्च न्यायालय ने विवाहित शिक्षिका द्वारा एक व्यक्ति पर शादी का झांसा देकर दुष्कर्म करने का आरोप लगाते हुए दर्ज कराई गई प्राथमिकी (FIR) रद्द करने का आदेश दिया. हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता के खिलाफ बलात्कार के आरोपों को हटाने का आदेश देते हुए कहा कि महिला ने आरोपी के साथ सहमति से यौन संबंध बनाए,जिसमें उसकी ओर से शादी का आश्वासन शामिल नहीं था.


दोनों पहले से ही शादीशुदा हैं.महाराष्ट्र के वर्धा निवासी कुणाल हरीश वासनिक पर छिंदवाड़ा निवासी महिला शिक्षिका ने का झांसा देकर बलात्कार करने का आरोप लगाया था.हाईकोर्ट में मामले की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता ने कहा कि उसके द्वारा महिला को शादी का आश्वासन देने का कोई सवाल ही नहीं था क्योंकि दोनों पहले से शादीशुदा थे. इतना ही नहीं, महिला उससे पांच साल बड़ी है और वे अलग-अलग जातियों के हैं.


5. एमपीपीएससी परीक्षा 2019 को रद्द करना औचित्यहीन


एमपीपीएससी परीक्षा 2019 का मामला भी पूरे साल सुर्खियों में छाया रहा.इस मामले में आवेदकों और सरकार की तरफ से कई बार हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया गया.अंत में दिसंबर माह में कोर्ट ने परीक्षार्थियों के हित में बड़ा फैसला सुनाया.हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग (MP PSC EXAM 2019) की 2019 की पूरी परीक्षा को निरस्त करना औचित्यहीन है.पीएससी परीक्षा में आरक्षित वर्ग के उन उम्मीदवारों के लिए विशेष मुख्य परीक्षा आयोजित करे जिन्होंने अनारक्षित वर्ग के कट-ऑफ से अधिक अंक प्राप्त किए हैं.


कोर्ट ने यह भी कहा कि भर्ती नियम 2015 से मुख्य और विशेष मुख्य परीक्षा के परिणाम के आधार पर इन उम्मीदवारों के साक्षात्कार के लिए नई सूची तैयार करें.कोर्ट ने पीएससी को कहा कि इसके लिए वही प्रक्रिया अपनाएं जो कि पूर्व की परीक्षाओं में अपनाई गई है.करें.जस्टिस नंदिता दुबे की कोर्ट ने एमपी-पीएससी के 7 अप्रैल 2022 को दिए उस आदेश को रद्द कर दिया जिसके तहत पीएससी 2019 की मुख्य परीक्षा के परिणाम को निरस्त कर नए सिरे से परीक्षा कराने कहा था.कोर्ट के इस फैसले से अनारक्षित वर्ग के सैकड़ों छात्रों को राहत मिली.


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