Maharashtra: मथुरा में ठाकुर श्यामा श्याम मंदिर का हुआ जीर्णोद्धार, आदित्य ठाकरे करेंगे उद्घाटन
Aaditya Thackeray News: शिवसेना-यूबीटी नेता आदित्य ठाकरे सोमवार को कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर उत्तर प्रदेश के मथुरा का दौरा करेंगे. उनके इस दौरे के पीछे विशेष वजह बताई जा रही है.
Maharashtra News: शिवसेना (यूबीटी) नेता आदित्य ठाकरे (Aaditya Thackeray) 27 नवंबर को कार्तिक पूर्णिमा (Kartik Purnima) के शुभ दिन पर मथुरा (Mathura) में प्रसिद्ध और नवीनीकृत पांच शताब्दी पुराने ठाकुर श्यामा श्याम मंदिर (Thakur Shyama Shyam Mandir) का उद्घाटन करेंगे. पार्टी की वरिष्ठ सांसद प्रियंका चतुर्वेदी (Priyanka Chaturvedi) ने यहां शुक्रवार को यह जानकारी दी. मंदिरों के शहर की अपनी यात्रा के दौरान, ठाकरे जूनियर भगवान कृष्ण (Lord Krishna) के जन्मस्थान और बांके बिहारी मंदिर (Banke Bihari Mandir) में भी प्रार्थना करेंगे और इस तीर्थ शहर में कुछ अन्य महत्वपूर्ण मंदिरों का दौरा करेंगे.
चतुर्वेदी ने कहा, ठाकुर श्यामा श्याम मंदिर मथुरा में यमुना नदी के तट पर श्याम घाट पर स्थित है, जो 500 वर्षों से अधिक की समृद्ध विरासत से भरा हुआ है. मंदिर बहुत जीर्ण-शीर्ण स्थिति में था और उनसे एमपीएलएडी या सीएसआर से धन की मदद के लिए संपर्क किया गया था, लेकिन इन्हें ऐतिहासिक या सांस्कृतिक रूप से महत्वपूर्ण विरासत मंदिरों को बहाल करने के लिए इस्तेमाल करने से रोक दिया गया है.
प्रियंका चतुर्वेदी ने दिया जीर्णोद्धार में योगदान
प्रियंका चतुर्वेदी ने टिप्पणी की, “कई प्रयासों के बाद हमें मंदिर के पुनर्निर्माण में एन.आर. अल्लूरी के नागार्जुन फाउंडेशन का समर्थन मिला. मुझे खुशी है कि मैं सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व वाले विरासत मंदिर के पुनर्निर्माण में सहायता करने में एक छोटी भूमिका निभा सकी.” मंदिर के महत्व के बारे में बताते हुए सांसद ने कहा कि पुष्टि मार्ग के संस्थापक श्री वल्लभाचार्य (1479-1531 ई.) ने भगवान कृष्ण के भक्ति आंदोलन को आगे बढ़ाने और ब्रज के बृज भाषा के प्रसार के लिए अष्ट-सखाओं को नामित किया था.
अष्ट सखा श्री चीत स्वामीजी ने कराया था निर्माण
सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने कहा कि नामित अष्ट-सखाओं में से एक, श्री चीत स्वामीजी ने इस मंदिर का निर्माण किया, जो अष्ट-सखा के युगल रूप को समर्पित है. इसका रखरखाव चीत स्वामी वंश (नाथद्वारा में बांके बिहारी की तरह) द्वारा किया गया है. यह प्रत्येक वैष्णव की 84 कोसी ब्रज यात्रा के पहले चरण का हिस्सा है. पुष्टिमार्ग परंपराओं में शामिल यह मंदिर, जिसे वैष्णववाद के भीतर वल्लभ संप्रदाय के रूप में भी मान्यता प्राप्त है, रुद्र संप्रदाय की उप-परंपरा के रूप में एक अद्वितीय स्थान रखता है. चतुर्वेदी ने कहा, "यह गर्व और खुशी का क्षण है कि मंदिर अब पूरा हो गया है और पवित्र शहर मथुरा में एक सांस्कृतिक और ऐतिहासिक भूमिका निभाता रहेगा."