Maharashrta News: बिहार के बाद अब महाराष्ट्र में उठी जातिगत जनगणना की मांग, सीएम ठाकरे से मिलेगी NCP
Maharashrta: विभिन्न समुदायों का सामाजिक स्तर पर पता लगाने के लिए गुरुवार को एनसीपी ने जातिगत जनगणना की मांग उठाई. शरद पवार की अध्यक्षता में हुई बैठक में यह फैसला लिया गया है.
Demand for caste census raised in Maharashtra: बिहार (BIHAR) के बाद अब महाराष्ट्र (MAHARASHTRA) में भी जातिगत जनगणना की मांग उठने लगी है. खबर है कि गठबंधन में शामिल राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) इस मांग को लेकर सीएम ठाकरे से मुलाकात की तैयारी कर ही है. वहीं, बिहार में सीएम नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की अगुवाई में हुई सर्वदलीय बैठक में जातिगत जनगणना को सहमति मिल गई है. विभिन्न समुदायों का सामाजिक स्तर पर पता लगाने के लिए गुरुवार को एनसीपी (NCP) ने जातिगत जनगणना की मांग उठाई. प्रदेश इकाई के अध्यक्ष और जल संसाधन मंत्री जयंत पाटिल (Jayant Patil) ने पत्रकारों से कहा कि NCP इस मुद्दे पर सीएम उद्धव ठाकरे से सर्वदलीय बैठक बुलाने की अपील करेगी. उन्होंने कहा कि शरद पवार (Sharad Pawar) की अध्यक्षता में हुई बैठक में यह फैसला लिया गया है.
बिहार में जातिगत जनगणना को मिली मंजूरी
बिहार मंत्रिपरिषद ने जाति आधारित जनगणना को गुरुवार को मंजूरी देते हुए इसके लिए 500 करोड़ रुपए का आवंटन किया. उन्होंने अधिकारियों को फरवरी 2023 तक इस सर्वे को पूरा करने के निर्देश दिए. सीएम नीतीश कुमार की अध्यक्षता में संपन्न हुई मंत्रिपरिषद की बैठक के बाद मुख्य सचिव अमीर सुबहानी ने पत्रकारों से बातचीत में कहा कि सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा अपेक्षित अधिसूचना जारी होते ही इस पर काम शुरू हो जाएगा. उन्होंने बताया कि जातिगत सर्वेक्षण के लिए सामान्य प्रशासन विभाग नोडल प्राधिकरण होगा तथा अधिसूचना जल्द से जल्द जारी की जाएगी. उन्होंने कहा कि नोडल अधिकारी को इसकी कमान सौंपी जाएगी जो ग्राम, पंचायत, अन्य सभी स्तरों पर भी विभिन्न विभागों के अधिकारियों से यह काम करवाएंगे.
केंद्र ने कर दिया था इंकार
बता दें कि केंद्र सरकार द्वारा एससी, एसटी के अलावा अन्य जाति समूहों की गणना करने में असमर्थता व्यक्त करने के बाद राज्य सरकार ने ही इसका जिम्मा उठाया है. बिहार विधानमंडल के दोनों सदनों द्वारा जातीय जनगणना के पक्ष में 2018 और 2019 में दो सर्वसम्मत प्रस्ताव पारित किए गए थे. नीतीश कुमार और विपक्षी दल आरजेडी का मानना है कि विभिन्न सामाजिक समूहों की गणना आवश्यक है क्योंकि पिछली जातीय जनगणना 1921 में हुई थी.
यह भी पढ़ें: