Maharashtra News: औरंगाबाद (Aurangabad) का नाम बदलकर संभाजीनगर (Sambhaji Nagar) किए जाने पर ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन ( AIMIM) के सांसद इम्तियाज जलील (Imtiaz jaleel) ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है. उन्होंने कहा है कि इम्तियाज जलील औरंगाबाद के सांसद थे और औरंगाबाद के सांसद रहेंगे.मैं औरंगाबाद में पैदा हुआ और औरंगाबाद में ही मरुंगा.
कब बदला है औरंगाबाद का नाम
केंद्र सरकार ने शुक्रवार को महाराष्ट्र के औरंगाबाद और उस्मानाबाद के बदले हुए नाम को मंजूरी दे दी.इसके बाद से अब औरंगाबाद को छत्रपति संभाजीनगर और उस्मानाबाद को धाराशिव के नाम से जाना जाएगा. छत्रपति शिवाजी महाराज के सबसे बड़े बेटे छत्रपति संभाजी उनके पिता द्वारा स्थापित मराठा साम्राज्य के दूसरे शासक थे. संभाजी महाराज को 1689 में औरंगजेब के आदेश पर फांसी दे दी गई थी. वहीं उस्मानाबाद के पास स्थित एक गुफा धाराशिव को आठवीं सदी का माना जाता है. इसी के नाम पर उस्मानाबाद का नाम धाराशिव किया गया है.हिंदूवादी-दक्षिणपंथी संगठन इन दोनों शहरों के नाम बदलने की मांग काफी पहले से कर रहे थे.
इन दोनों शहरों के नाम बदले जाने की अधिसूचना जारी होने के बाद एआईएमआईएम नेता और औरंगाबाद के सांसद इम्तियाज जलील ने कहा, ''इम्तियाज जलील औरंगाबाद के सांसद थे और औरंगाबाद के सांसद रहेंगे. औरंगाबाद का नाम बदलने पर कोई नाच रहा है,कोई झूम रहा है लेकिन मैं औरंगाबाद में पैदा हुआ और औरंगाबाद में ही मरुंगा.''
किसने लिया नाम बदलने का फैसला
उल्लेखनीय है कि औरंगाबाद का नाम संभाजीनगर और उस्मानाबाद का नाम धाराशिव करने का फैसला शिवसेना-राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी-कांग्रेस की महाविकास अघाड़ी सरकार के मंत्रिमंडल की 20 अक्टूबर 2022 को हुई आखिरी बैठक में लिया गया था. बाद में एकनाथ शिंदे नीत नई सरकार ने मंत्रिमंडल के उस फैसले को रद्द कर इस बारे में नए सिरे से फैसला किया था.उस समय भी जलील ने उसका विरोध किया था. उस समय उन्होंने कहा था कि सवाल किसी शहर के नाम बदलने का नहीं है, अगर नाम बदला जाता है,तो इसके लिए भारी मात्रा में पैसे की आवश्यकता होती है.
पहले भी किया था विरोध
उन्होंने कहा था कि अगर आप किसी शहर का नाम बदलते हैं तो उसमें करीब 500 करोड़ रुपये की लागत आती है. दिल्ली के एक अधिकारी ने मुझे बताया कि औरंगाबाद जैसे शहर के लिए तो नाम बदलने में कम से कम एक हजार करोड़ रुपये तक का खर्च आ सकता है.यह सिर्फ सरकारी दस्तावेजों और चिट्ठी-पत्री के लिए बदलने का मामला नहीं है. यह करदाताओं का पैसा है,जो आपका और मेरा है. इसलिए ऐसा करना सही नहीं होगा.उन्होंने कहा था कि कुछ लोग ऐसे भी हैं,जो हर चीज को सांप्रदायिक रंग में रंगना चाहते हैं.यह कोई ऐसा मुद्दा नहीं है,जो हिंदुओं-मुसलमानों से जुड़ा है.
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