शरद की पावर स्ट्राइक में अजित फंसे, पवार के 3 दांव से भाई पर कैसे भारी पड़ी सुप्रिया सुले?
शरद पवार के इस फैसले के बाद उनके भतीजे अजित के सियासी भविष्य को लेकर सवाल उठ रहे हैं. अजित एनसीपी गठन के बाद से ही उनका सीनियर पवार के उत्तराधिकारी माने जाते रहे हैं.
एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार ने 38 दिन में पार्टी के भीतर दूसरी बार चौंकाने वाला फैसला किया है. 2 मई को पवार ने एनसीपी अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था. वहीं अब उन्होंने प्रफुल पटेल और बेटी सुप्रिया सुले को कार्यकारी अध्यक्ष बनाने का ऐलान किया है.
पवार के इस फैसले के बाद उनके भतीजे अजित के सियासी भविष्य को लेकर सवाल उठ रहे हैं. अजित को सीनियर पवार का उत्तराधिकारी माना जाता रहा है. गठबंधन की सरकार में एनसीपी कोटे से उप-मुख्यमंत्री भी रह चुके अजित वर्तमान में विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष हैं.
इधर, कार्यकारी अध्यक्ष बनने के बाग सुप्रिया अब पार्टी के भीतर शरद पवार के बाद नंबर-2 बन गई हैं. एनसीपी में पहली बार कार्यकारी अध्यक्ष का पद बनाया गया है. सुप्रिया के अलावा जितेंद्र अह्वाद और सुनील तटकरे को भी बड़ी जिम्मेदारी दी गई है. दोनों अजित विरोधी गुट के नेता हैं.
पवार के पावर शेयरिंग फॉर्मूले में अजित के करीबियों को ज्यादा कुछ नहीं मिला है. पवार के इस्तीफे के बाद से ही अजित लगातार बैकफुट पर हैं. सुप्रिया को लेकर अब पवार के फैसलों ने उनकी सियासी मुसीबत और अधिक बढ़ा दिया है.
पवार के दांव से दादा पर भारी पड़ी सुप्रिया
अजित के राजनीति में आने के 16 साल बाद सुप्रिया पॉलिटिक्स में आई, लेकिन अब शरद पवार के 3 दांव से अपने भाई पर ही भारी पड़ गई हैं. कैसे, आइए इसे विस्तार से जानते हैं...
1. सुप्रिया को महाराष्ट्र और चुनाव का प्रभारी बनाना
एनसीपी के भीतर अब तक महाराष्ट्र से जुड़ा फैसला अजित पवार, जयंत पाटील की सलाह पर शरद पवार करते थे. सुप्रिया सुले को महाराष्ट्र की पॉलिटिक्स से दूर रखा गया था, लेकिन अब पवार ने सुप्रिया को महाराष्ट्र की कमान दे दी है.
सुप्रिया को कार्यकारी अध्यक्ष के साथ-साथ महाराष्ट्र, हरियाणा और पंजाब की भी जिम्मेदारी दी गई है. प्रभारी होने के नाते सुप्रिया टिकट बंटवारे से लेकर संगठन की सर्जरी तक का फैसला खुद कर सकेंगी. इतना ही नहीं, महाराष्ट्र एनसीपी के सभी नेता सुप्रिया को रिपोर्ट करेंगे.
अजित पवार महाराष्ट्र विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष हैं. विधायकों की राय लेकर उनको हटाने का भी अधिकार अब सुप्रिया के पास आ गया है. एनसीपी का महाराष्ट्र में ही सबसे अधिक पैठ है. ऐसे में सुप्रिया अगर यहां और अधिक मजबूत होती हैं, तो एनसीपी के भीतर अजित का दबदबा खत्म हो जाएगा.
2. सुप्रिया के साथ प्रफुल को भी कार्यकारी अध्यक्ष बनाना
25 साल पहले बनी पार्टी एनसीपी के नए उत्तराधिकारी को लेकर लगातार अटकलें लगाई जा रही थी. हाल में जब शरद पवार ने जब इस्तीफा दे दिया था तो एनसीपी की एक कमेटी ने उन्हें एक सुझाव दिया था.
सुझाव में कहा गया था कि अजित पवार को महाराष्ट्र की कमान दे दी जाए और सुप्रिया को महाराष्ट्र छोड़कर पूरे देश की, लेकिन शरद पवार ने अजित के बदले प्रफुल पटेल और सुप्रिया को कार्यकारी अध्यक्ष बना दिया है. प्रफुल पटेल बीमार रहने की वजह से राजनीति में कम ही सक्रिय रहते हैं.
पटेल को अजित पवार गुट का माना जाता है. सीनियर पवार ने उनका कद बढ़ाकर अजित को अलग-थलग करने की गुगली चली है.
ऐसे में शरद पवार के इस दांव से सुले एनसीपी में पावरफुल मानी जा रही हैं. अजित के मुकाबले उत्तराधिकारी की जंग में उनकी दावेदारी भी काफी मजबूत हो गई है.
3. इस्तीफा का इमोशनल कार्ड खेलकर फैसला लेना
अजित पवार ने सुप्रिया को कार्यकारी अध्यक्ष बनाए जाने और खुद को कोई पद न मिलने पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया है. हालांकि, उन्होंने ट्वीट कर सुप्रिया और प्रफुल पटेल को बधाई दी है.
एनसीपी में सुप्रिया के बढ़ते कद बढ़ने पर अजित के बागी होने का खतरा था. अजित अगर बागी होते तो कई विधायक भी पार्टी छोड़ सकते थे, लेकिन पिछले महीने इस्तीफे का दांव खेलकर शरद पवार ने उनके इस मंशा पर भी पानी फेर दिया है.
जिस तरह पिछले महीने शरद पवार के लिए कार्यकर्ता सड़क पर उतर आए थे. वो नजारा अजित देख चुके हैं और इसका रिजल्ट भी जानते हैं. राजनीतिक जानकारों का मानना है कि अजित अभी अगर बगावत करेंगे तो यह शरद पवार के खिलाफ जाएगा.
साथ ही नई कार्यकारिणी में भी उनके समर्थकों के पर कतर दिए गए हैं. ऐसे में पार्टी पर संवैधानिक रूप से दावा ठोकना भी उनके लिए आसान नहीं होगा.
एनसीपी में अजित का पर क्यों कटा?
नेता प्रतिपक्ष का पद अजित के पास- शरद पवार के भाई के पोते और एनसीपी विधायक रोहित पवार ने कहा कि अजित के पास नेता प्रतिपक्ष का संवैधानिक पद है, इसलिए उन्हें संगठन में कोई जिम्मेदारी नहीं दी गई है.
पत्रकारों से बात करते हुए रोहित ने कहा कि एनसीपी में वन पोस्ट-वन पर्सन का फार्मूला लागू किया गया है. अजित पवार को इसलिए कोई पद नहीं दिया गया है. सब एकजुट होकर आगे काम करेंगे.
बीजेपी के साथ मिलने की चर्चा- महाराष्ट्र के सियासी गलियारों में पिछले एक पखवाड़े से अजित पवार के बीजेपी के साथ जाने की चर्चा चल रही है. अजित के बयान ने इसे और बल दिया. हालांकि, गठबंधन की बात को अजित और शरद दोनों नकार चुके हैं.
मुंबई की सत्ता के गलियारों में दावा किया जा रहा था कि 54 में से 40 विधायक अजित पवार के साथ हैं, जो कभी भी बीजेपी गठबंधन में शामिल हो सकते हैं. अजित 2019 में बीजेपी के साथ जा भी चुके हैं. ऐसे में सीनियर पवार को पार्टी टूटने का डर भी सता रहा था.