Asaduddin Owaisi Target Sharad Pawar: पुणे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ मंच साझा करने को लेकर ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिममीन (एआईएमआईएम) अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने मंगलवार को राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) प्रमुख शरद पवार पर ‘ढोंग’ का आरोप लगाया. वहीं, पवार की पार्टी एनसीपी ने पलटवार करते हुए ‘उनकी राजनीतिक समझ’ पर सवाल उठाया.
ओवैसी ने ट्वीट कर क्या कहा?
ओवैसी ने ट्वीट किया, ‘‘लोकसभा में एनसीपी और अन्य विपक्षी दल मणिपुर मुद्दे पर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं जबकि शरद पवार खुशी-खुशी पुणे में नरेंद्र मोदी के साथ मंच साझा कर रहे हैं. ये कैसा ढोंग है? वहीं, बीजेपी खुशी-खुशी बिना चर्चा के विधेयक पास करा रही है."
एनसीपी का पलटवार
इस पर पलटवार करते हुए एनसीपी प्रवक्ता क्लाइड क्रैस्टो ने ट्वीट किया, ‘‘असदुद्दीन ओवैसी को राजनीतिक समझ की कमी दिखाने वाले बयान देने से पहले अपनी आंखें और कान खुले रखने की जरूरत है. शरद पवार साहब लोकमान्य तिलक के सम्मान में समारोह में शामिल हुए. क्या ओवैसी को तिलक जी का महत्व पता है और क्या उन्होंने कभी उन्हें कोई सम्मान दिया है?’’
ऐसे निकाला जा रहा है पीठ पर हाथ रखने का मतलब
महाराष्ट्र की राजनीति में पीठ पर हाथ रखने की घटना को सामान्य से ज्यादा सियासी तौर पर देखा जा रहा है. राजनीतिक विश्लेषक तरुण तलपड़े कहते हैं कि महाराष्ट्र की सियासत में यह लगातार चर्चाएं होती रहती है कि कहीं ऐसा न हो कि शरद पवार सियासी लड़ाई में कहीं न कहीं अंत तक अपने भतीजे अजित पवार के साथ आ जाएं. उसके पीछे का तर्क देते हुए तलपड़े कहते हैं कि हाल में ही अजित पवार और उनके साथ गए एनसीपी के विधायक जब शरद पवार से मिलने गए थे तो अजित पवार ने शरद पवार से आशीर्वाद देने और उनके साथ बने रहने की गुजारिश की थी.
हालांकि, शरद पवार की ओर से इस मामले में कुछ न कहते हुए वह लगातार विपक्षी दलों के बने गठबंधन की बैठकों में शामिल होते रहे. उससे संदेश तो उनकी ओर से स्पष्ट दिया गया. महाराष्ट्र के सियासी गलियारों में कहीं यह बात तैरती रही की क्या शरद पवार अजित पवार को अपना लेंगे.
अब जब मोदी की पीठ पर शरद पवार ने हाथ रखा तो राजनीति में उन पुरानी सियासी बातों की चर्चा फिर से होने लगी कि कहीं शरद पवार अपने भतीजे के फैसले को समर्थन न दे दें. महाराष्ट्र में चर्चा इस बात की भी हो रही थी कि शरद पवार अगर अजित को समर्थन देकर उनके फैसले को स्वीकार करते हैं तो उनके नेताओं को केंद्र में भी जगह मिल सकती है.
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