Bombay High Court: 'इस शहर में मानव जीवन की कीमत क्या है?' जानिए बॉम्बे हाई कोर्ट ने क्यों पूछा ये सवाल
Mumbai Police: बॉम्बे हाई कोर्ट ने दो बच्चों की मौत मामले में खुद से संज्ञान लिया है. इनके शव पानी की टंकी में पाए गए गए थे.
BMC News: इस शहर में मानव जीवन की कीमत क्या है, नाराज बॉम्बे हाई कोर्ट ने गुरुवार को उस घटना का स्वत: संज्ञान लेते हुए पूछा, जहां एक सार्वजनिक उद्यान में खुले पानी के टैंक में गिरने से दो बच्चों की मौत हो गई थी. चार और पांच साल की उम्र के दो नाबालिगों के लापता होने की सूचना मिली थी और वे 1 अप्रैल को मृत पाए गए थे.
उनके शव उपनगरीय वडाला में नागरिक निगम द्वारा संचालित महर्षि कर्वे गार्डन में एक पानी की टंकी में पाए गए, जहां बच्चे रविवार (31 मार्च) को खेलने गए थे. टैंक में उचित ढक्कन नहीं था. न्यायमूर्ति गौतम पटेल और न्यायमूर्ति कमल खट्टा की खंडपीठ ने दुखद घटना का स्वत: संज्ञान लिया और इस मुद्दे पर एक जनहित याचिका (पीआईएल) शुरू की.
इसने बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) को भी नोटिस जारी किया और जनहित याचिका को उचित पीठ के समक्ष रखने का निर्देश दिया. पीठ ने कहा कि यह समझ से परे है कि ऐसी घटनाएं होने पर नगर निगम की कोई जिम्मेदारी या दायित्व नहीं हो सकता. अदालत ने समाचार लेखों का हवाला दिया जिसमें कहा गया था कि बीएमसी बजटीय बाधाओं का सामना कर रही थी.
इस शहर में इंसान की जान की कीमत क्या है? क्या बीएमसी की तथाकथित बजटीय बाधाएं नागरिक कार्यों के दौरान न्यूनतम सुरक्षा एहतियात प्रदान करने में विफलता का उत्तर हैं? एचसी ने कहा.
अदालत ने कहा कि रेलवे के पास पीड़ितों को मुआवजा देने की एक नीति है लेकिन नगर निगमों के लिए ऐसी कोई योजना नहीं है. एचसी ने कहा, हमें यह समझ से परे लगता है कि यदि यह प्रदर्शित होता है कि संबंधित निगम की ओर से लापरवाही के कारण कोई दुर्घटना या मौत हुई है, तो नगर निगम की कोई जिम्मेदारी या दायित्व नहीं हो सकता है. पीठ ने इस मुद्दे पर अदालत की सहायता के लिए वरिष्ठ वकील शरण जगतियानी और मयूर खांडेपारकर को नियुक्त किया.
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