'किसी को...', महाराष्ट्र में दो जिलों के नाम बदलने के खिलाफ दायर याचिका पर बॉम्बे हाई कोर्ट का बड़ा फैसला
Bombay High Court: महाराष्ट्र के सीएम एकनाथ शिंदे ने कुछ दिनों पहले औरंगाबाद और उस्मानाबाद जिले का नाम बदला था. इसपर अब बॉम्बे हाई कोर्ट का बड़ा फैसला आया है.
Maharashtra News: महाराष्ट्र के दो जिलों के नाम बदलने के विरोध में दायर की गई याचिका पर बॉम्बे हायकोर्ट का फैसला आ गया है. कोर्ट ने अपने आदेश में राज्य सरकार को बड़ी राहत दी है. आपको बता दें कि कोर्ट ने आज औरंगाबाद और उस्मानाबाद के नामांतर विवाद पर फैसला सुनाया है. केंद्र सरकार और राज्य सरकार के निर्णय के खिलाफ स्थानिक नागरिकों ने याचिका के माध्यम से चुनौती दी थी जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया.
हाईकोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार ने शहरों के नाम बदलने का जो निर्णय लिया है उससे किसी को कोई नुकसान नहीं है. आपको बता दें कि बॉम्बे हाईकोर्ट ने अक्टूबर के महीने में इस याचिका का निर्णय रिजर्व रखा था जिसे आज दिया दिया गया है.
मुख्य न्यायाधीश डी के उपाध्याय और न्यायमूर्ति आरिफ डॉक्टर की खंडपीठ ने कहा कि "राज्य सरकार द्वारा जारी अधिसूचना में किसी तरह के हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है." पीठ ने कहा कि "हमें यह मानने में कोई हिचकिचाहट नहीं है कि औरंगाबाद और उस्मानाबाद का नाम बदलने वाली राज्य सरकार की अधिसूचना में कोई अवैधता या कोई कानूनी दोष नहीं है."
हाईकोर्ट ने कहा कि "याचिकाओं में कोई दम नहीं है और इसलिए इन्हें खारिज किया जाता है." 2022 में मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की अध्यक्षता वाली महाराष्ट्र कैबिनेट ने औरंगाबाद का नाम छत्रपति संभाजीनगर और उस्मानाबाद का नाम धाराशिव करने को मंजूरी दी थी. 16 जुलाई, 2022 को दो सदस्यीय कैबिनेट ने नाम बदलने के लिए एक सरकारी प्रस्ताव पारित किया और फिर केंद्र सरकार को भेज दिया.
फरवरी 2023 में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने शहरों और जिलों के नाम बदलने के लिए अनापत्ति पत्र दिया और उसके बाद राज्य सरकार ने औरंगाबाद और उस्मानाबाद के नाम बदलने के लिए गजट अधिसूचना जारी की.
इसके बाद औरंगाबाद के निवासियों ने इस जगह का नाम बदलकर छत्रपति संभाजीनगर करने के सरकार के फैसले को चुनौती देते हुए कई याचिकाएं दायर कीं. उस्मानाबाद के 17 निवासियों ने सरकार के इस फैसले के खिलाफ एक और जनहित याचिका दायर की थी. दोनों याचिकाओं में सरकार के फैसले को राजनीति से प्रेरित बताया गया था. महाराष्ट्र सरकार ने याचिकाओं का विरोध करते हुए दावा किया था कि दोनों जगहों का नाम उनके इतिहास के कारण बदला गया है, न कि किसी राजनीतिक कारण से.
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