Bombay High Court on Maharashtra Bandh: बंबई उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को राजनीतिक दलों या व्यक्तियों को 24 अगस्त या आगे की किसी तारीख पर प्रस्तावित महाराष्ट्र बंद का आह्वान करने से रोक दिया और कहा कि इस तरह के विरोध-प्रदर्शन के कारण सामान्य जनजीवन प्रभावित होगा.
महाराष्ट्र बंद पर कोर्ट ने क्या कहा?
पीठ ने जुलाई 2004 में उच्च न्यायालय द्वारा पारित एक फैसले का हवाला दिया, जिसमें उसने कहा था कि बंद या हड़ताल करना असंवैधानिक कृत्य माना जाएगा. विपक्षी गठबंधन महा विकास आघाडी (एमवीए) ने ठाणे जिले के बदलापुर के एक स्कूल में दो बच्चियों के कथित यौन उत्पीड़न के विरोध में 24 अगस्त को पूरे राज्य में बंद का आह्वान किया था. एमवीए में कांग्रेस, राकांपा (शरदचंद्र पवार) और शिवसेना (यूबीटी) शामिल हैं.
उच्च न्यायालय का विस्तृत आदेश शाम को सामने आया, और इस बीच वरिष्ठ विपक्षी नेता शरद पवार ने बंद वापस लेने की अपील की, जबकि कांग्रेस ने कहा कि उच्च न्यायालय द्वारा पारित निर्देश के मद्देनजर केवल शांतिपूर्ण विरोध-प्रदर्शन किया जाएगा.
मुख्य न्यायाधीश डी.के. उपाध्याय और न्यायमूर्ति अमित बोरकर की खंडपीठ ने कहा कि यदि राजनीतिक दलों और व्यक्तियों को शनिवार को भारत बंद के आह्वान पर आगे बढ़ने से नहीं रोका गया, तो न केवल अर्थव्यवस्था एवं व्यापार के मामले में भारी नुकसान होगा, बल्कि स्वास्थ्य सेवाओं सहित विभिन्न आवश्यक सेवाएं भी बुरी तरह प्रभावित होंगी, जिसे रोकने की आवश्यकता है.
पीठ ने कहा कि महाराष्ट्र सरकार बंद को रोकने के लिए सभी आवश्यक कदम उठाएगी. उच्च न्यायालय ने कहा, ‘‘अगले आदेश तक सभी संबंधित पक्षों (राजनीतिक दल या व्यक्तियों) को 24 अगस्त को तथा इससे आगे की किसी तारीख पर बंद का आह्वान करने से रोका जाता है.’’ पीठ ने बंद के आह्वान को चुनौती देने वाली दो याचिकाओं पर यह आदेश पारित किया. ये याचिकाएं अधिवक्ताओं सुभाष झा और गुणरत्न सदावर्ते के माध्यम से शुक्रवार को दायर की गयी थीं.
पीठ ने कहा कि बंद के आह्वान से न केवल बच्चों और अन्य छात्रों की पढ़ाई प्रभावित होगी, बल्कि स्वास्थ्य सेवाओं जैसी आपातकालीन सेवाओं और बिजली व पानी की आपूर्ति जैसी अन्य सार्वजनिक सुविधाओं पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा. अदालत ने कहा कि मुंबई में लोकल ट्रेनों की सेवाओं पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा. अदालत ने कहा, ‘‘इस समय यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि मुंबई में लोकल ट्रेन इसकी जीवन रेखा हैं और यदि बंद के आह्वान को अनुमति दी जाती है, तो पूरी मुंबई का जीवन थम सकता है.’’
न्यायाधीशों ने कहा, ‘‘बंद से पूरे महाराष्ट्र का जनजीवन प्रभावित हो सकता है.’’ उन्होंने कहा कि अतीत में भी राज्यव्यापी बंद के कारण नागरिकों को नुकसान उठाना पड़ा है. वर्ष 2004 के फैसले में कहा गया था कि ऐसे बंद के मामले में संबंधित राजनीतिक दल कानूनी कार्रवाई के लिए उत्तरदायी होगा और जान-माल या आजीविका के किसी भी नुकसान की भरपाई भी करेगा. फैसले में कहा गया था कि पुलिस ऐसे बंद में शामिल व्यक्ति या व्यक्तियों के खिलाफ उचित कार्रवाई करेगी.
मुख्य न्यायाधीश उपाध्याय ने शुक्रवार को कहा कि राज्य सरकार 2004 के इस फैसले को सख्ती से लागू करेगी. अदालत ने कहा, ‘‘हम राज्य सरकार और उसके सभी अधिकारियों - मुख्य सचिव, अतिरिक्त मुख्य सचिव (गृह), पुलिस महानिदेशक और सभी जिलाधिकारियों - को निर्देश देते हैं कि वे 2004 के फैसले में निर्धारित दिशा-निर्देशों को सख्ती से लागू करें.’’
राज्य के महाधिवक्ता बीरेंद्र सराफ ने अदालत को बताया कि बंद का आह्वान अवैध है. सराफ ने कहा, ‘‘राज्य सरकार यह सुनिश्चित करने के लिए सभी कदम उठाएगी कि जनता या सार्वजनिक संपत्ति को कोई नुकसान न पहुंचे. राज्य अपना कर्तव्य निभाएगा, लेकिन सभी की संवैधानिक जिम्मेदारियां हैं, जिनका उन्हें पालन करना चाहिए.’’
अदालत ने सराफ से पूछा कि सरकार ने क्या एहतियाती कदम उठाए हैं और क्या एहतियात के तौर पर कोई गिरफ्तारी की गई है. सराफ ने कहा कि कुछ लोगों को नोटिस जारी किए गए हैं, लेकिन अभी तक कोई गिरफ्तारी नहीं हुई है. झा और सदावर्ते ने केरल उच्च न्यायालय के एक फैसले का हवाला दिया जिसमें कहा गया था कि कोई भी राजनीतिक दल राज्यव्यापी बंद का आह्वान नहीं कर सकता है और ऐसे मामलों में हस्तक्षेप करने के लिए उच्च न्यायालय के पास पर्याप्त शक्तियां हैं. अधिवक्ताओं ने मराठा आरक्षण आंदोलन का उदाहरण भी दिया जिसके दौरान कई स्थानों पर सार्वजनिक संपत्तियों को नुकसान पहुंचा.
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