(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
Mumbai News: बॉम्बे हाईकोर्ट ने स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स के कॉमर्शियल इस्तेमाल से जुड़ी एक याचिका की खारिज, ये है पूरा मामला
Bombay High Court ने एक जनहित याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें दिवंगत प्रमोद महाजन स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स के "व्यावसायिक शोषण" को रोकने की मांग की गई था. इस मामले पर अदालत ने टिप्पणी की है.
Maharashtra News: बॉम्बे हाईकोर्ट ने आज शुक्रवार को एक जनहित याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें अधिकारियों को कांदिवली (वेस्ट) में दिवंगत प्रमोद महाजन स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स के "व्यावसायिक शोषण" को रोकने के लिए निर्देश देने की मांग की गई थी. इसमें गायक फाल्गुनी पाठक द्वारा 26 सितंबर से 5 अक्टूबर तक होने वाले आयोजन भी शामिल हैं. मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति माधव जे जामदार की खंडपीठ ने कहा कि “हम इस तथ्य का न्यायिक नोटिस लेते हैं कि इसी तरह के आयोजन नवरात्रि के दौरान आयोजित किए जाते हैं और याचिकाकर्ता ने केवल वर्तमान कार्यक्रम को टारगेट किया है. हमारे विचार में, जनहित याचिका में वास्तविक कमी की बू आती है और इसलिए यह विचार करने योग्य नहीं है."
कार्यक्रम के टिकट की कीमतों को लेकर भी सवाल
पीठ, अधिवक्ता मयूर फारिया के माध्यम से पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता विनायक यशवंत सनप की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें कहा गया था कि बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) द्वारा संबंधित स्थल को विकास योजना में 'खेल का मैदान' के रूप में चिह्नित किया गया है. याचिका में कहा गया है कि सनप को मीडिया रिपोर्टों और बुकिंग प्लेटफॉर्म से आयोजकों, बिग ट्री एंटरटेनमेंट प्राइवेट लिमिटेड द्वारा आवेदन के बारे में पता चला, जिसमें फाल्गुनी पाठक के साथ उक्त खेल के मैदान में 10 दिनों के लिए नवरात्रि उत्सव की मेजबानी की गई थी और इस आयोजन के लिए टिकट की कीमत 800 रुपये से लेकर 4,200 रुपये है.
याचिकाकर्ता ने लगाए थे ये आरोप
याचिकाकर्ता ने कहा कि अनुमति देते समय राज्य के अधिकारियों ने सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के दिशा-निर्देशों का पालन नहीं किया. सनप ने आरोप लगाया कि खेल और युवा सेवाओं (मुंबई डिवीजन) के उप निदेशक "पूरी तरह से पक्षपाती" हैं और उन्होंने बिना किसी सार्वजनिक निविदाओं की नीलामी के आयोजन के लिए खेल का मैदान देकर आयोजकों का पक्ष लिया. राज्य सरकार का प्रतिनिधित्व करने वाले अतिरिक्त सरकारी वकील अभय पाटकी ने प्रस्तुत किया कि अनुमतियां, महाराष्ट्र क्षेत्रीय टाउन प्लानिंग (MRTP) अधिनियम की धारा 37A के अनुसार दी गई थीं और याचिकाकर्ता द्वारा इसकी संवैधानिक वैधता को कोई चुनौती नहीं दी गई थी.