Eknath Shinde and Bombay High Court Nagpur Bench: बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर बेंच ने एक अहम फैसला सुनाया है. एबीपी मांझा के अनुसार इसमें कहा गया है कि अगर किसी विभाग के मंत्री ने अपने विभाग के तहत कोई फैसला लिया है तो मुख्यमंत्री को उस फैसले को बदलने या उसमें दखल देने का कोई अधिकार नहीं है. चंद्रपुर जिला सेंट्रल बैंक भर्ती मामले में नागपुर बेंच ने यह अहम फैसला सुनाया है. बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर बेंच ने मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे द्वारा 22 नवंबर 2022 को चंद्रपुर डिस्ट्रिक्ट सेंट्रल बैंक की भर्ती पर मुख्यमंत्री की शक्तियों को लेकर इस अहम फैसले में लगाई गई रोक को भी हटा लिया है. जस्टिस विनय जोशी और जस्टिस वाल्मीकि मेंगेस की बेंच ने यह फैसला दिया है.
कितने पद खाली और कितने भरे गए?
चंद्रपुर जिले में बैंक की 93 शाखाएं हैं जो चंद्रपुर जिला सेंट्रल बैंक के अधिकार क्षेत्र में हैं और इसमें कर्मचारियों के 885 पद स्वीकृत हैं. वर्तमान में केवल 525 पद भरे गए हैं और शेष 393 पद खाली हैं. बैंक के निदेशक मंडल ने 18 नवंबर 2021 को हुई अपनी बैठक में पदों को भरने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी क्योंकि रिक्तियों के कारण परिचालन संबंधी कठिनाइयां आ रही हैं. प्रस्ताव को सहकारिता आयुक्त के पास स्वीकृति के लिए भेजा गया है.
इसके बाद 25 फरवरी 2022 को सहकारिता आयुक्तालय ने बैंक की भर्ती को मंजूरी दी. हालांकि कोर्ट में दायर याचिका में आरोप लगाया गया था कि बैंक के चेयरमैन संतोष सिंह रावत के राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों ने उनके खिलाफ राज्य सरकार से झूठी शिकायत की थी. बैंक के ऊपर एक प्रशासक नियुक्त करने के आदेश का अनुरोध करते हुए उच्च न्यायालय में एक याचिका भी दायर की गई थी.
उसके खिलाफ याचिकाकर्ता यानी जिला बैंक के मौजूदा निदेशक मंडल ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी. साथ ही सहकारिता मंत्री के पास अपील दायर की. इसके बाद सहकारिता मंत्री अतुल सावे ने 22 नवंबर 2022 को रोक को रद्द करते हुए भर्ती को हरी झंडी दे दी थी. हालांकि, जब बैंक भर्ती प्रक्रिया शुरू होने वाली थी, तब मुख्यमंत्री ने 29 नवंबर, 2022 को एक आदेश जारी कर दोबारा भर्ती पर रोक लगा दी.
इसके बाद याचिकाकर्ता ने फिर हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया. इस पर सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने इस भर्ती पर से रोक हटा ली है. न्यायालय के अनुसार मुख्यमंत्री सहकारिता विभाग के प्रमुख नहीं थे और न ही उन्हें संबंधित विभाग के मंत्री से अधिक विशेषाधिकार प्राप्त थे और न ही ऐसा कोई नियम था कि किसी मंत्री को मुख्यमंत्री से हीन माना जाता था. मुख्यमंत्री को ऐसा निर्णय लेते समय यह भी स्पष्ट करना चाहिए था कि वह किस प्रावधान के तहत संबंधित निर्णय ले रहे हैं.
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