Bombay HC ने नाम बदलने संबंधी एक याचिका पर तत्काल सुनवाई के किया इनकार, औरंगाबाद और उस्मानाबाद से जुड़ा है मामला
Aurangabad और Osmanabad का नाम बदलने के खिलाफ एक जनहित याचिका को बॉम्बे हाईकोर्ट ने तत्काल सुनने से इनकार कर दिया. एक पीठ ने मौखिक रूप से टिप्पणी की और आगे की सुनवाई 23 अगस्त को तय की.
Bombay HC Rejects Quick Hearing On A PIL: बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay) ने सोमवार को औरंगाबाद (Aurangabad) और उस्मानाबाद (Osmanabad) शहरों का नाम क्रमशः छत्रपति संभाजीनगर और धाराशिव करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर तत्काल सुनवाई से इनकार कर दिया. जस्टिस प्रसन्ना बी वराले और किशोर सी संत की खंडपीठ ने कहा कि अगस्त में कई छुट्टियां हैं और इसलिए सरकार काम नहीं करेगी. पीठ ने मौखिक रूप से टिप्पणी की और आगे की सुनवाई 23 अगस्त को तय की. अदालत, औरंगाबाद निवासी मोहम्मद मुस्ताक अहमद, अन्नासाहेब खंडारे और राजेश मोरे द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जो सामाजिक कार्यकर्ता और शिक्षाविद हैं.
याचिका में दावा किया गया है कि राज्य सरकार ने 2001 में शहर का नाम बदलने के अपने प्रयास को रद्द कर दिया था, लेकिन पिछले महीने पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के मंत्रिमंडल ने राजनीतिक कारणों से अनधिकृत तरीके से एक निर्णय पारित किया. इसमें कहा गया है कि इस फैसले की पुष्टि मौजूदा मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने 16 जुलाई को की थी. जबकि ठाकरे के नेतृत्व वाली तत्कालीन महा विकास अघाड़ी (एमवीए) सरकार ने औरंगाबाद का नाम बदलकर संभाजीनगर कर दिया था, शिंदे सरकार ने इसमें 'छत्रपति' उपसर्ग जोड़ा था.
अदालत से फैसला अमान्य घोषित करने की मांग
याचिका में कहा गया है कि निर्णय संविधान की पूरी तरह से अवहेलना है और आग्रह किया कि इसे कानूनन अमान्य घोषित किया जाए. औरंगाबाद का नाम संभाजीनगर और उस्मानाबाद का नाम धाराशिव रखने का निर्णय उद्धव ठाकरे के मुख्यमंत्री पद से हटने से कुछ घंटे पहले 29 जून को तत्कालीन एमवीए सरकार की अंतिम कैबिनेट बैठक के दौरान लिया गया था. शिंदे ने बाद में कहा था कि निर्णय तब लिए गए जब एमवीए सरकार के पास बहुमत नहीं था और इसलिए वे अवैध थे.
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याचिकाकर्ताओं ने किया ये बड़ा दावा
जूडिकेयर लॉ एसोसिएट्स के माध्यम से दायर जनहित याचिका में कहा गया है कि प्रेस रिपोर्टों के माध्यम से, उन्हें जून के अंतिम सप्ताह के दौरान शहर का नाम बदलने के सरकार के फैसले के बारे में पता चला. याचिकाकर्ताओं ने निर्णय के बारे में दस्तावेजों की प्रतियां मांगी, लेकिन कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली. याचिका में दावा किया गया है कि “मराठा शासन और/या ब्रिटिश शासन के दौरान, किसी ने भी औरंगाबाद का नाम बदलने की मांग नहीं की. हालांकि, अपने राजनीतिक लाभ के लिए धार्मिक और सांप्रदायिक आधार पर समाज का ध्रुवीकरण करने के लिए शिवसेना और अन्य राजनीतिक दलों के गठन के बाद...वर्ष 1988 से औरंगाबाद का नाम बदलने का मुद्दा उठाना शुरू कर दिय...वर्तमान सरकार बिना किसी कारण के परोक्ष रूप से औरंगाबाद का नाम बदलने की कोशिश कर रही है.”
याचिकाकर्ता ने कहा कि शहर का इतिहास और समृद्ध संस्कृति है और शिवसेना सहित पार्टियां राजनीतिक लाभ के लिए नाम बदलने की कोशिश कर रही हैं. याचिका में राज्य सरकार के 16 जुलाई के फैसले और औरंगाबाद के संभागीय आयुक्त की सिफारिश और नगर निगम के 2020 के प्रस्ताव को शहर का नाम बदलने के लिए रद्द करने की मांग की गई थी. सुनवाई लंबित रहने तक, याचिका में प्रतिवादी अधिकारियों को औरंगाबाद का नाम बदलने से रोकने के निर्देश देने की भी मांग की गई.