'सनातन कमीशन बने और हिंदुओं के लिए सरकार...', बॉम्बे हाई कोर्ट ने ये मांग करने वाले याचिकाकर्ता पर लगाया भारी जुर्माना
Bombay High Court: बॉम्बे हाईकोर्ट ने हिंदू अनुष्ठानों के लिए सनातन आयोग और राज्य वित्त पोषण की मांग वाली जनहित याचिका पर 10 हजार रुपये का जुर्माना लगाया है.
Bombay High Court Decision: बॉम्बे हाई कोर्ट ने सोमवार को क्राइमोफोबिया नामक एक स्वघोषित अपराध विज्ञान फर्म द्वारा दायर जनहित याचिका (पीआईएल) को खारिज कर दिया. इस याचिका में महाराष्ट्र के गुफा मंदिरों में हिंदू अनुष्ठानों के लिए धन उपलब्ध कराने, अंतरराष्ट्रीय सनातन आयोग के गठन सहित कई अन्य असंबंधित मांगें की गई थीं.
कोर्ट ने इस याचिका को "कोर्ट की प्रक्रिया का दुरुपयोग" करार दिया और याचिकाकर्ता की आलोचना की, जिसमें उसने न्यायिक हस्तक्षेप के माध्यम से अपने व्यक्तिगत विचार थोपने की कोशिश की थी.
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि उच्च कोर्ट तब ही परमादेश रिट जारी करते हैं जब किसी कानूनी अधिकार का उल्लंघन हुआ हो. किसी व्यक्ति या संगठन के विचारों को लागू करने के लिए परमादेश जारी नहीं किया जा सकता जब तक कि वे कानूनी रूप से समर्थित न हों.
'बार एंड बेंच' के अनुसार, मुख्य न्यायाधीश डीके उपाध्याय और न्यायमूर्ति अमित बोरकर की खंडपीठ ने याचिकाकर्ता पर 10,000 रुपये का जुर्माना लगाया और उन्हें व्यक्तिगत एजेंडों के लिए जनहित याचिकाओं का दुरुपयोग करने के खिलाफ चेतावनी दी.
याचिका में गुफा मंदिरों में हिंदू अनुष्ठानों के लिए बजट आवंटन, पुजारियों के लिए वेतन और गुरुकुलों की स्थापना जैसे कई मांगें शामिल थीं. साथ ही, याचिकाकर्ता ने "बॉम्बे गुफा मंदिर आयोग" (Bombay Cave Temples Commission) और "अंतर्राष्ट्रीय सनातन आयोग" (International Sanatan Commission) के गठन का अनुरोध किया था.
इसके अलावा, महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (मकोका) के तहत एक "संगठित अपराध विरोधी इकाई" की स्थापना और आरे में यूनिसेफ द्वारा सहायता प्राप्त डेयरी शिक्षण संस्थान को बंद करने की मांग भी की गई थी.
कोर्ट ने कहा कि याचिका में उठाए गए मुद्दे केवल याचिकाकर्ता की कल्पना पर आधारित हैं और इनमें कोई कानूनी आधार नहीं है. अदालत ने कहा कि 'संगठित अपराध निरोधक इकाई' या 'अंतरराष्ट्रीय सनातन आयोग' की स्थापना जैसी मांगें याचिकाकर्ता की कल्पनाओं का परिणाम प्रतीत होती हैं, क्योंकि जनहित याचिका में कोई ठोस तथ्यात्मक या कानूनी आधार नहीं है.
अंत में, कोर्ट ने याचिकाकर्ता को छह सप्ताह के भीतर महाराष्ट्र राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण को 10,000 रुपये का जुर्माना अदा करने का आदेश दिया और भविष्य में ऐसी याचिकाएं दायर करने के खिलाफ कड़ी चेतावनी दी.
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