Maharashtra Politics: शिवसेना के बाद अब मातोश्री भी जाएगा? बढ़ने वाली हैं उद्धव ठाकरे की मुश्किलें!
Shiv Sena Symbol Row: देखना है कि शिवसेना व्हिप जारी करती है तो क्या वे (ठाकरे गुट के सांसद-विधायक) इसके खिलाफ जाते हैं, क्योंकि व्हिप के खिलाफ जाने पर पार्टी उन्हें अयोग्य घोषित कर सकती है.
Maharashtra Political Crisis: महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे (Eknath Shinde) गुट की बगावत के बाद शुरू हुई राजनीतिक हलचल एकबार फिर से बढ़ गयी है. शिवसेना (Shiv Sena) का नाम और चुनाव चिन्ह शिंदे गुट को मिलने के बाद दोनों खेमे से राजनीतिक बयानबाजी का दौर जारी है. इस बीच चुनाव चिन्ह और नाम को लेकर खत्म हुई लड़ाई के बाद अब लड़ाई पार्टी की प्रॉपर्टी को लेकर शुरू हो सकती है. खबर है कि शिंदे गुट मातोश्री पर भी अपना दावा कर सकता है. वहीं 150 करोड़ के पार्टी फंड को लेकर भी तरह-तरह के कयास लगाए जा रहे हैं. जानकारों का कहना है कि पार्टी फंड भी शिंदे गुट के हाथ में जा सकता है. सीएम शिंदे गुट का पलड़ा हर तरह से भारी नजर आ रहा है.
उद्धव ठाकरे के साथ वाले सांसद और विधायक शिवसेना के व्हिप से जुड़े हैं. अब देखना है कि अगर शिवसेना कोई व्हिप जारी करती है तो क्या वे इसके खिलाफ जाते हैं, क्योंकि व्हिप के खिलाफ जाने पर पार्टी उन्हें अयोग्य घोषित कर सकती है. अगर ये सांसद-विधायक व्हिप के साथ जाएंगे तो उन्हें सरेंडर करना होगा. अब देखना है कि 27 फरवरी से शुरू होने वाले विधानसभा सत्र में इसे लेकर क्या होता है.
शिवसेना का मतलब अब शिंदे या शिंदे का मतलब शिवसेना हो गया है. आयोग के फैसले के बाद अब उद्धव ठाकरे वाली शिवसेना की बात खत्म हो गयी है. पार्टी के दो गुट होने की मान्यता खत्म हो गयी है, क्योंकि चुनाव आयोग ने शिंदे गुट को वास्तविक चुनाव चिन्ह दे दिया है और ठाकरे गुट से 6 दशक पुराना चिह्न वापस ले लिया गया है. चुनाव आयोग के इस फैसले पर ठाकरे गुट ने कड़ी आपत्ति जतायी है. आज से 57 साल पहले यानी 1966 में बनी शिवसेना का चुनाव चिन्ह ठाकरे परिवार के हाथ से निकल चुका है. कुल 67 विधायकों में से 40 का समर्थन शिंदे गुट को है. शिंदे गुट के साथ 13 सांसद हैं जबकि ठाकरे गुट के साथ 7 सांसद हैं.
ठाकरे ने व्यक्त की कड़ी प्रतिक्रिया
वहीं महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने कहा कि कोर्ट के फैसले से पहले चुनाव आयोग का फैसला देना गलत है. मैंने कहा था कि आयोग को सुप्रीम कोर्ट के फैसले से पहले फैसला नहीं देना चाहिए. यदि पार्टी का वजूद विधायकों और सांसदों की संख्या के आधार पर तय होता है, तो कोई भी पूंजीपति विधायक, सांसद को खरीद सकता है और मुख्यमंत्री बन सकता है. उन्होंने कहा कि चोरों को धनुष-बाण की चोरी का आनंद लेने दीजिए. उन्होंने नाम और निशान की चोरी की है. चोर तो चोर ही होता है.