भारत जोड़ो यात्रा खत्म होने के बाद भी राहुल गांधी कांग्रेस जोड़ने में असफल रहे हैं. राजस्थान-मध्य प्रदेश में जारी आंतरिक विवाद के बीच महाराष्ट्र कांग्रेस में भी सियासी उठापटक तेज हो गई है. पुराने कांग्रेसी बालासाहेब थोराट ने कांग्रेस अध्यक्ष नाना पटोले के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए विधानसभा में नेता पद से इस्तीफा दे दिया है. 


थोराट के इस्तीफा के बाद महाराष्ट्र में सियासी हलचल तेज हो गई है और सहयोगी शिवसेना ने भी पटोले पर सवाल उठाया है. शिवसेना के मुखपत्र सामना में थोराट की तारीफ करते हुए लिखा गया है कि नाना पटोले की वजह से ही महाविकास अघाड़ी की सरकार गिरी.


महाराष्ट्र, राजस्थान और मध्य प्रदेश में लोकसभा की करीब 100 सीटें हैं. राजस्थान और मध्य प्रदेश में इसी साल विधानसभा के चुनाव भी होने हैं. ऐसे में तीनों राज्यों में कांग्रेस के भीतर क्यों घमासान मचा है, आइए जानते हैं अंदर की रिपोर्ट...


महाराष्ट्र कांग्रेस में क्यों बवाल मचा है?
महाराष्ट्र की सत्ता से बेदखल के बाद से ही कांग्रेस में अंदरूनी घमासान जारी है. राज्य में पार्टी के भीतर अभी 4 गुट (अशोक चव्हाण गुट, पृथ्वीराज चव्हाण गुट, बाला साहेब थोराट गुट और नाना पटोले गुट) सक्रिय हैं. पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण कांग्रेस हाईकमान के खिलाफ बनी G-23 ग्रुप के भी सक्रिय सदस्य रहे हैं.


हालिया विवाद बाला साहेब थोराट और कांग्रेस अध्यक्ष नाना पटोले के बीच हुआ है. दरअसल, महाराष्ट्र विधानपरिषद के चुनाव में नासिक सीट से पटोले ने सुधीर तांबे को उम्मीदवार बनाया. नामांकन भरने के आखिरी तारीख को तांबे ने ऐलान किया कि वे चुनाव नहीं लड़ेंगे. 


सुधीर तांबे ने अपनी जगह पर अपने बेटे सत्यजीत तांबे को निर्दलीय उम्मीदवार बना दिया. तांबे थोराट के रिश्तेदार हैं और नासिक के कद्दावर नेता माने जाते हैं. 


पटोले ने पूरे प्रकरण की आंतरिक जांच कराने की बात कही और सुधीर तांबे को गद्दार कहा. इस घटना के बाद थोराट ने सोनिया गांधी और मल्लिकार्जुन खरगे को पत्र लिखकर पार्टी के सभी पदों से इस्तीफा देने की घोषणा कर दी. हालांकि, पत्र में थोराट ने तांबे प्रकरण का कोई भी जिक्र न करते हुए पार्टी से उपेक्षा किए जाने को मुद्दा बनाया. 


क्या विवाद की मूल वजह यही है?
नहीं. विवाद की शुरुआत होती है साल 2021 से. कांग्रेस हाईकमान ने बीजेपी से आए नाना पटोले को 2021 में महाराष्ट्र इकाई का अध्यक्ष बनाया. पार्टी नेताओं का आरोप है कि पटोले के अध्यक्ष बनने के बाद पुराने लोगों के बदले दलबदलुओं को तरजीह मिलती है. पटोले संगठन में उन्हीं लोगों को पद देते हैं, जो बीजेपी या अन्य पार्टियों से आए होते हैं.


लगातार घट रहा है जनाधार
महाराष्ट्र में लोकसभा की कुल 48 सीटें हैं. 1999 के बाद 2009 तक पार्टी की सीटें वहां बढ़ती रही, लेकिन 20014 से अब तक लगातार जनाधार घट रहा है. 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने 2 सीटों पर जीत हासिल की थी, लेकिन 2019 में यह आंकड़ा एक पर आ गया. 


महाराष्ट्र विधानसभा में 2014 तक नंबर वन की पार्टी रही कांग्रेस अभी चौथे नंबर की पार्टी है. कांग्रेस से आगे एनसीपी, शिवसेना और बीजेपी है. 


मध्य प्रदेश- चुनावी साल में एक दूसरे से भिड़े
चुनावी साल में मध्य प्रदेश के कांग्रेस में भी हिस्सेदारी की लड़ाई तेज हो गई है. पार्टी ने हाल ही में 50 उपाध्यक्षों और 150 महासचिवों के साथ भारी भरकम पदाधिकारियों की सूची जारी की थी. 


लिस्ट जारी होने के बाद से ही आंतरिक बगावत शुरू हो गई, जिसके बाद इंदौर और खंडवा समेत कई जिलों में नियुक्ति होल्ड कर दिया गया. पदाधिकारियों की सूची को लेकर शुरू हुई आपसी खींचातानी सीएम के चेहरे पर जा पहुंची है.


दरअसल, मध्य प्रदेश के ट्विटर हैंडल से कमलनाथ को भावी मुख्यमंत्री का उम्मीदवार बताया गया. इसके बाद कई जगहों पर पोस्टर भी लगाए गए. इस पर दिग्गज नेता अरुण यादव और अजय सिंह ने सवाल उठा दिए. 


अरुण यादव ने कहा कि मुख्यमंत्री उम्मीदवार की घोषणा करने की परंपरा कांग्रेस में नहीं है. हाईकमान चुनाव के बाद इसका ऐलान करती है. अजय सिंह ने भी अरुण के बयान को सही ठहराया. 


खींचातानी की मूल वजह क्या है?
2013 से लेकर 2018 तक अरुण यादव और अजय सिंह मध्य प्रदेश कांग्रेस में पावरफुल नेता हुआ करते थे, लेकिन 2018 के चुनाव में दोनों को हार का सामना करना पड़ा. इसी के बाद से दोनों पार्टी में साइड लाइन चल रहे हैं.


2019 में अरुण यादव को खंडवा और अजय सिंह को सीधी लोकसभा से टिकट भी मिला, लेकिन दोनों जीतने में नाकाम रहे. अब चुनावी साल में दोनों फिर से सक्रिय हो गए हैं और अपने समर्थकों के बूते कांग्रेस में हिस्सेदारी की लड़ाई लड़ रहे हैं. 


कांग्रेस में मचे सियासी घमासान पर बीजेपी भी चुटकी लेने से नहीं चूक रही है. गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा ने पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि कांग्रेस के इस कोरोना से कमलनाथ नहीं बच पाएंगे, इसलिए खुद भी चुनाव नहीं लड़ना चाहते हैं. 


राजस्थान में विवाद नहीं सुलझा, लेकिन 2 महासचिव नप गए
राजस्थान कांग्रेस में पिछले ढ़ाई साल से अधिक समय से अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच विवाद जारी है. इसे सुलझाने के लिए दिल्ली से भेजे गए 2 महासचिव भी नप चुके हैं. 


बीते साल कांग्रेस ने अजय माकन के बदले सुखविंदर रंधावा को राजस्थान कांग्रेस का प्रभारी बनाया था, लेकिन 2 महीने बाद भी रंधावा विवाद नहीं सुलझा पाए हैं. रायपुर अधिवेशन तक कांग्रेस ने राजस्थान विवाद को ठंडे बस्ते में रख दिया है. 


2018 में कांग्रेस राज्य की सत्ता में आई थी. उस वक्त समझौते के तहत अशोक गहलोत को सीएम और सचिन पायलट को डिप्टी सीएम बनाया गया था. 2020 में पायलट ने गहलोत सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया, जिसके बाद उन्हें डिप्टी सीएम पद से भी हटा दिया गया.


सचिन पायलट गुट का कहना है कि अगर 2023 में सरकार में वापसी करना है, तो कांग्रेस को मुख्यमंत्री को हटाना चाहिए. वहीं एक इंटरव्यू में अशोक गहलोत ने खुले तौर पर सचिन पायलट को कांग्रेस का गद्दार कह दिया. पायलट भी जवाबी हमले से नहीं चूके और गहलोत की जादूगरी पर सवाल उठाया.


कांग्रेस क्यों नहीं दूर कर पा रही है गुटबाजी?
वरिष्ठ पत्रकार रशीद किदवई इस सवाल के जवाब में कहते हैं- मल्लिकार्जुन खरगे के अध्यक्ष बनने के बाद नीतिगत फैसला से सोनिया गांधी ने दूरी बना ली. अभी जो विवाद है, वो सभी दिग्गज नेताओं के बीच है. ऐसे में इसे सुलझाने के लिए खरगे वीटो इस्तेमाल करने के बजाय 10 जनपथ की ओर ही देख रहे हैं.


यानी न 10 जनपथ और खरगे दोनों की ओर से कोई फैसला नहीं लिया जा रहा है, जब फैसला ही नहीं लिया जाएगा तो विवाद कैसे सुलझेगा?