Kasba Peth By-Election: शिवसेना और मनसे में भी रहे, अब BJP को गढ़ में हराया, रवींद्र धंगेकर का कैसा रहा है सियासी सफर?
Who is Ravindra Dhangekar: शिवसेना से अपनी राजनीतिक पारी की शुरूआत करने वाले रवींद्र धंगेकर का कई दलों से नाता रहा है. 10 साल तक शिवसेना में रहने के बाद उन्होंने मनसे ज्वाइन कर लिया था.
Kasba Peth By-Election 2023 Result: बीजेपी (BJP) के गढ़ पुणे की कस्बा पेठ (Kasba Peth) विधानसभा सीट पर कांग्रेस (Congress) के रवींद्र धंगेकर की जीत के बाद से राजनीतिक गलियारों में हलचल बढ़ गई है. आखिर रवींद्र धंगेकर (Ravindra Dhangekar) में ऐसा क्या है कि उसने बीजेपी के गढ़ में ही सेंध लगा दी.
शिवसेना के साथ शुरू की राजनीतिक पारी
शिवसेना से अपनी राजनीतिक पारी की शुरूआत करने वाले रवींद्र धंगेकर का कई दलों से नाता रहा है. 10 साल तक शिवसेना में रहने के बाद उन्होंने मनसे ज्वाइन कर लिया था. इसके बाद मनसे की टिकट पर ही वे पार्षद नगर निगम में काम किया. उन्होंने चार बार पार्षद का चुनाव जीता. इस दौरान वे मनसे प्रमुख राज ठाकरे के भरोसेमंद सहयोगी भी माने जाते रहे. उन्होंने मनसे में कई पदों पर काम किया.
एक समय बीजेपी में आना चाहते थे रवींद्र धंगेकर
शहर में पार्टी की स्थिति कुछ अच्छी नहीं थी. यह देखते हुए उन्होंने बीजेपी से राज्यसभा सांसद संजय काकड़े के संपर्क में भी आए. वे बीजेपी ज्वाइन तो करना चाहते थे, लेकिन कुछ बीजेपी नेताओं ने इसका विरोध शुरू कर दिया. इसके बाद वे कांग्रेस के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष अशोक चव्हाण से मिले. तब से वे कांग्रेस में शामिल हो गए. रवींद्र धंगेकर ने ओबीसी समुदाय में विकास के चेहरे के रूप में निर्वाचन क्षेत्र में अपनी पहचान बनाई.
जानिए रवींद्र धंगेकर का राजनीतिक सफर
राजनीतिक दलों में रवींद्र धंगेकर की यात्रा पहले शिवसेना इसके बाद मनसे और अब कांग्रेस तक की ही है. 2009 में रवींद्र धंगेकर ने विधानसभा चुनाव भी लड़ा, लेकिन उस समय वे मात्र सात हजार वोट से हार गए थे. 2014 में वे फिर से इसी विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा. उस समय मोदी लहर के बावजूद उन्होंने बीजेपी को कड़ी टक्कर दी. इसके बाद 2019 में कांग्रेस से टिकट नहीं मिलने के कारण वे चुनाव नहीं लड़ सके थे.
तीसरी बार में मारी बाजी
रवींद्र धंगेकर साल 2009 और 2014 दो-दो बार वर्तमान बीजेपी सांसद गिरीश बापट को इसी सीट पर कड़ी टक्कर दे चुके हैं. तभी से रवींद्र धंगेकर की पहचान गिरीश बापट के कट्टर विरोध के रूप में भी रही है. हालांकि, 2019 में कांग्रेस से टिकट नहीं मिलने के कारण चुनाव नहीं लड़ सके. अब इस साल तीसरी बार में उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर 11 हजार से अधिक वोटों से बाजी मार ली.