राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी में टूट के बाद चुनाव आयोग में शरद पवार गुट ने अपनी आखिरी दलीलें पेश कर दी है. पवार गुट का कहना है कि पार्टी पर अजित की दावेदारी अवैध और असंवैधानिक है. आयोग में दाखिल शरद पवार के हलफनामे ने महाराष्ट्र में सियासी हड़कंप भी मचा दिया है.
पार्टी में टूट के बाद पहली बार शरद पवार ने स्वीकार किया है कि अजित के साथ एनसीपी के 40 विधायक हैं. पवार ने इन विधायकों पर अयोग्यता की कार्रवाई शुरू करने की इजाजत भी चुनाव आयोग से मांगी है. 2019 के महाराष्ट्र चुनाव में एनसीपी के 53 विधाययक चुनकर विधानसभा आए थे.
शरद गुट की ओर से दाखिल हलफनामे के बाद महाराष्ट्र के सियासी गलियारों में कहा जा रहा है कि सितंबर के अंत या अक्टूबर शुरुआत में चुनाव आयोग का फैसला आ सकता है. जुलाई में टूट के बाद अजित गुट ने चुनाव आयोग में सिंबल और पार्टी पर दावा ठोका था.
इसके बाद आयोग ने शरद गुट को विस्तृत जवाब देने के लिए कहा था. आयोग ने 9 सितंबर की आखिरी डेडलाइन भी शरद पवार गुट को दी थी.
जल्द फैसला आने की चर्चा क्यों, 3 वजहें...
1. अजित पवार के करीबी और संयुक्त एनसीपी के कार्यकारी अध्यक्ष रहे प्रफुल्ल पटेल ने हाल ही में दावा किया था कि चुनाव आयोग सितंबर के अंत तक सिंबल पर फैसला दे देगा. प्रफुल्ल ने कहा था कि अजित के पास ही असली एनसीपी है.
2. शिवसेना विवाद में आखिरी दलील पेश होने के 17 दिन बाद चुनाव आयोग ने फैसला सुनाया था. शिवसेना विवाद में 31 जनवरी 2023 को शिंदे और उद्धव गुट ने अपना जवाब दाखिल किया था. 17 फरवरी 2023 को चुनाव आयोग ने फैसला सुनाया था.
3. पुणे में कार्यकर्ताओं से बात करते हुए शरद गुट के प्रदेश अध्यक्ष जयंत पाटील ने कहा है कि अगर हमारा सिंबल साजिश कर छीना जाता है, तो महाराष्ट्र की जनता बीजेपी को अगले चुनाव में सबक सीखा देगी.
शरद-अजित के अपने-अपने तर्क, किसका दावा मजबूत?
10 जून 1999 में गठित एनसीपी पर दावेदारी को लेकर शरद और अजित के अपने-अपने दावे हैं. दोनों गुट ने अब आयोग में जवाब भी दाखिल कर दिया है. जवाब दाखिल करने के बाद चुनाव आयोग इसे वैरिफाई करेगी. वैरिफिकेशन के बाद आयोग की ओर से नियमों के तहत फैसला सुनाया जाएगा.
ऐसे में आइए जानते हैं कि चुनाव आयोग के पास अजित और शरद गुट ने क्या-क्या कहा है?
अजित गुट का दावा- संख्याबल उनके पास
डिप्टी सीएम अजित पवार ने 42 विधायकों, विधानपार्षदों और 2 सांसदों के हस्ताक्षर के साथ आयोग को एक पत्र लिखा था. अजित का कहना था कि विधायी और संगठन के लोगों ने मुझे नेता चुना है, इसलिए एनसीपी का सिंबल मुझे दिया जाए.
अजित ने आयोग से आगे कहा है कि प्रफुल्ल पटेल की अध्यक्षता में एनसीपी कार्यकारिणी की बैठक बुलाई गई थी, जिसमें मुझे अध्यक्ष चुनाव गया. इसलिए चुनाव आयोग के 1968 के नियम के तहत पार्टी का सिंबल मुझे दिया जाए.
अजित गुट ने जिला स्तर के पदाधिकारियों का हलफनामा भी तैयार करवाकर रखा है. पहले ही अजित गुट ने सभी विधायकों से 10-10 हजार पदाधिकारियों से शपथ पत्र लेने के लिए कहा था. विधायी के साथ-साथ अजित गुट संगठन के शक्ति-प्रदर्शन में भी नहीं चुकना चाहते हैं.
शरद पवाार बोले- सिंबल पर विवाद ही नहीं, मैं अध्यक्ष
एनसीपी विवाद पर शरद गुट ने ईमेल के जरिए चुनाव आयोग को जवाब भेजा है. शरद पवार का कहना है कि 10 जून को दिल्ली में राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक हुई थी, जिसमें प्रफुल्ल पटेल ने मेरे नाम को अध्यक्ष के लिए प्रस्तावित किया था. सभी सदस्यों के समर्थन से मैं अध्यक्ष बना था.
शरद पवार ने आगे कहा है कि आयोग में आने से पहले अजित गुट ने आंतरिक फोरम में कोई शिकायत दाखिल नहीं की. अजित विवाद के आखिर तक मुझे अध्यक्ष बताते रहे. ऐसे में सिंबल पर विवाद कहां से आता है?
शरद गुट का कहना है कि महाराष्ट्र से बाहर भी हमारा जनाधार है. संगठन, विधायक और सांसद हैं. ऐसे में महाराष्ट्र के नेताओं के संख्या के आधार पर सिंबल का विवाद तय नहीं हो सकता है.
शरद पवार ने एनसीपी के संविधान का भी हवाला दिया है. पार्टी संविधान के अनुच्छेद-21 (3) में कहा गया है कि विवाद की स्थिति में वर्किंग कमेटी ही कोई फैसला कर सकती है. साथ ही पार्टी के संविधान में बदलाव और मर्जर से जुड़े फैसले लेने का अधिकार भी इसी कमेटी को दिया गया है.
शरद गुट ने अपने दलील में कहा है कि जब हमने कार्रवाई के लिए याचिका दाखिल की, तब अजित ने आयोग में सिंबल पर दावा किया. उन्होंने आयोग से कहा है कि अजित खेमे के विधायकों ने बागी विधायकों की तरह बर्ताव किया है, इसलिए उन सभी पर कार्रवाई करने की इजाजत दी जाए.
चुनाव चिह्न विवाद में किस आधार पर फैसला करता है आयोग?
राजनीति पार्टियों में चुनाव चिह्न विवाद सुलझाने का आधिकार निर्वाचन आयोग के पास है. द इलेक्शन सिंबल ऑर्डर, 1968 के तहत चुनाव आयोग विवादों को सुलझाने का काम करती है. द इलेक्शन सिंबल ऑर्डर, 1968 के आर्टिकल-15 में चुनाव चिह्न तय करने के बारे में जिक्र किया गया है.
- आयोग सबसे पहले पार्टी के संविधान को आधार बनाती है. इसमें आयोग यह देखती है कि नियम के मुताबिक संगठन के चुनाव सही वक्त पर हुआ है या नहीं? सादिक अली बनाम चुनाव आयोग (1972) के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने आयोग को यह आदेश दिया था. कोर्ट ने कहा था कि संगठन के बहुमत को पहले देखा जाना चाहिए.
- सिंबल विवाद में सबसे पहले संगठन के पदाधिकारियों को तरजीह दी जाती है. इसके बाद विधायी शक्तियां देखी जाती है. हाल ही शिवसेना विवाद में संगठन के गड्ड-मड्ड होने की वजह से विधायी आधार आयोग ने फैसला सुनाया था.