Maharashtra State Cooperative Bank Scam: मुंबई पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा (EOW) ने शुक्रवार (1 मार्च) को महाराष्ट्र स्टेट को-ऑपरेटिव बैंक में कथित 25,000 करोड़ रुपये के घोटाले से संबंधित एक मामले को बंद करने की सिफारिश की है. इस मामले में महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम अजित पवार भी आरोपी हैं. न्यूज़ एजेंसी पीटीआई के मुताबिक विशेष लोक अभियोजक राजा ठाकरे ने सांसदों और विधायकों के खिलाफ मामलों के स्पेशल जज आर एन रोकाडे के सामने एक 'C Summary' रिपोर्ट दायर की है.
कोर्ट इस मामले पर 15 मार्च को सुनवाई करेगी. अदालत अब तय करेगी कि रिपोर्ट को स्वीकार किया जाए या एजेंसी को जांच जारी रखने और आरोप पत्र दायर करने के निर्देश दिए जाएं. पुलिस की ओर से 'सी समरी' (C Summary) रिपोर्ट तब जारी की जाती है जब कोई तथ्यों की गलती या सिविल नेचर के मामले में आपराधिक केस दायर किया जाता है.
EOW ने दायर की थी क्लोजर रिपोर्ट
इस मामले में अभियोजन पक्ष ने 20 जनवरी को दूसरी क्लोजर रिपोर्ट दायर की थी, जिसमें कहा गया था कि नई जांच के बाद भी कुछ भी आपत्तिजनक नहीं पाया गया. ईओडब्ल्यू ने सितंबर 2020 में अपनी पहली क्लोजर रिपोर्ट दायर की थी और कोर्ट ने इसे स्वीकार कर लिया था. लेकिन अक्टूबर 2022 में ईओडब्ल्यू ने विशेष अदालत को सूचित किया कि वह शिकायतकर्ताओं (जिन्होंने बंद करने के विरोध में याचिका दायर की थी) और प्रवर्तन निदेशालय (ED) की ओर से उठाए गए बिंदुओं के आधार पर आगे की जांच कर रही थी.
अजित पवार भी हैं आरोपी
बता दें कि अपने चाचा और एनसीपी के संस्थापक शरद पवार से अलग होने के बाद जुलाई 2023 में अजित पवार महाराष्ट्र में डिप्टी सीएम के रूप में शिवसेना-बीजेपी सरकार में शामिल हो गए हैं.
ईओडब्ल्यू ने भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 406 (आपराधिक विश्वासघात) और 420 (धोखाधड़ी) के तहत मामले में एफआईआर दर्ज की. एफआईआर में अजित पवार का भी नाम है, जो उस समय शरद पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी के नेता थे. इसके अलावा 70 से अधिक वैसे लोग आरोपी हैं, जो उस समय एमएससी बैंक के निदेशक थे.
क्या है पूरा मामला?
ये मामला हजारों करोड़ के लोन से संबंधित है. राज्य में चीनी सहकारी समितियों, कताई मिलों (Spinning Mills) और अन्य संस्थाओं ने जिला और सहकारी बैंकों से रुपये लिए थे. एफआईआर में दावा किया गया है कि बैंक में अनियमितताओं के कारण 1 जनवरी, 2007 से 31 दिसंबर, 2017 के बीच राज्य के खजाने को 25,000 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ. ईओडब्ल्यू ने तब आरोप लगाया था कि चीनी मिलों को बहुत कम दरों पर लोन देने और डिफॉल्टर बिजनेस की संपत्तियों को औने-पौने दामों पर बेचने में बैंकिंग और RBI के नियमों का उल्लंघन किया गया था.
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