घाटकोपर होर्डिंग हादसे में बड़ा खुलासा, GRP कमिश्नर रविंद्र शिसवे को लेकर सनसनीखेज दावा
Ghatkopar Hoarding Case: GRP के पूर्व कमिश्नर कैसर खालिद का कहना है कि जब उन्होंने IPS रविंद्र शिसवे को कमिश्नर का कार्यभार सौंपा, तो शिसवे ने नियमों का उल्लंघन करते हुए 33600 वर्ग फुट के होर्डिंग को मंजूरी दी.
Ghatkopar Hoarding Collapse Case: घाटकोपर होर्डिंग हादसे को लेकर विवादों में घिरे जीआरपी के पूर्व रेलवे कमिश्नर कैसर खालिद ने पुलिस को दिए अपने बयान में जीआरपी के मौजूदा कमिश्नर रविंद्र शिशवे को लेकर एक सनसनीखेज दावा किया है. पूर्व रेलवे (GRP) कमिश्नर कैसर खालिद ने घाटकोपर होर्डिंग हादसे के लिए मौजूदा जीआरपी कमिश्नर रविंद्र शिशवे को जिम्मेदार ठहराया है. पुलिस की ओर से कोर्ट में दायर की गई चार्जशीट से इस बात का खुलासा हुआ है.
GRP के पूर्व कमिश्नर कैसर खालिद के बयान अनुसार, जब उन्होंने IPS अधिकारी रविंद्र शिसवे को कमिश्नर का कार्यभार सौंपा, तो शिसवे ने नियमों का उल्लंघन करते हुए 33600 वर्ग फुट के होर्डिंग को मंजूरी दी. खालिद ने यह भी दावा किया कि दस्तावेजों में कुछ तारीखों में छेड़छाड़ की गई थी ताकि ऐसा लगे कि उन्होंने बड़े होर्डिंग को मंजूरी दी थी. अपने बयान में, खालिद ने घाटकोपर होर्डिंग के बारे में जानकारी दी है कि जिसमे उस होर्डिंग की ई-टेंडरिंग प्रक्रिया भी शामिल थी, जिसे उनके पहले के जीआरपी कमिश्नर रविंद्र सेंगांवकर ने शुरू किया था.
'सरकार को भुगतान न करने पर बदला गया टेंडर'
खालिद ने दावा किया कि प्रारंभिक टेंडर बीपीसीएल द्वारा जारी किया गया था और विजेता क्यूकॉम ब्रांड सॉल्यूशन था. क्योंकि क्यूकॉम रेलवे को भुगतान नहीं कर रहा था, इस वजह से एक नई बोली आमंत्रित की गई और सबसे अधिक बोली लगाने की वजह से टेंडर ईगो मीडिया को दिया गया.
खालिद ने आगे कहा कि उन्होंने पूर्व बॉम्बे हाई कोर्ट जस्टिस, एपीएस लॉ फर्म और जीआरपी के लॉ ऑफिसर से कानूनी राय मांगी थी. खालिद ने अपने बयान में यह कहा कि उन्होंने कभी यह नहीं कहा कि वह ज़मीन भारतीय रेलवे की है. ई-टेंडर में उल्लेख किया गया था कि जमीन राज्य सरकार की है, लेकिन जमीन गृह विभाग के अंतर्गत था. लेकिन बीएमसी टेक्स लेती थी. कानून के अनुसार रेलवे अधिकार क्षेत्र के तहत जमीन के लिए बीएमसी की मंजूरी की आवश्यकता नहीं थी.
खालिद के अनुसार, उन्होंने 22 नवंबर, 2022 को 200 वर्ग फुट के होर्डिंग को मंजूरी दी और नोट किया कि यदि आकार बढ़ाया जाता है, तो जीआरपी के लिए किराए पर विचार किया जाना चाहिए. यह मुद्दा उनके द्वारा शिसवे को कार्यभार सौंपे जाने पर अनसुलझा रहा. 21 अप्रैल, 2023 तक, शिसवे ने इस मामले पर कोई निर्णय नहीं लिया और डीजीपी कार्यालय को होर्डिंग के आकार को 33,600 वर्ग फुट तक नियमित करने का प्रस्ताव भेजा. डीजीपी कार्यालय ने इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया और इसके बजाय शिसवे को कारण बताओ नोटिस जारी किया.
खालिद ने बयान में कहा कि, ईगो मीडिया ने 19 दिसंबर, 2022 को एक संशोधित किराए के लिए एप्लिकेशन दिया , जहां बिलबोर्ड का आकार बढ़ाकर 33,600 वर्ग फुट कर दिया गया. और चूंकि यह एक नीतिगत मामला था, उन्होंने कोई निर्णय नहीं लिया और कार्यालय से कहा कि इस मामले को शिसवे के सामने रखें.
13 दिन पहले कही थी अवैध होर्डिंग हटाने की बात
खालिद ने आगे कहा कि 30 अप्रैल, 2024 को, होर्डिंग गिरने से 13 दिन पहले, बीएमसी ने जीआरपी को अवैध होर्डिंग हटाने का नोटिस जारी किया था. हालांकि, ऐसा लगता है कि शिसवे ने इस पर कोई कार्रवाई नहीं की और इसके बजाय ईगो मीडिया से किराया वसूलना जारी रखा. सूत्रों के अनुसार, ईगो मीडिया होर्डिंग के लिए लगभग 12 लाख प्रति माह का भुगतान कर रही थी, और जब तक यह गिरा, रेलवे को एक करोड़ से अधिक का भुगतान किया जा चुका था.
खालिद ने कहा कि होर्डिंग का निर्माण कार्य शिसवे के कार्यकाल के दौरान हुआ था इसीलिए होर्डिंग की स्थिरता की जांच करना उनकी जिम्मेदारी थी. खालिद के अनुसार, वहां की मिट्टी नरम और दलदली थी. जबकि मुंबई में आमतौर पर तीन मीटर की गहराई तक खुदाई पर्याप्त होती है, घाटकोपर में हार्ड सॉयल (हार्ड सरफेस) तक पहुंचने के लिए 10 मीटर की गहराई आवश्यक है.
'होर्डिंग गिरने तक DGP कार्यालय से नहीं मिला कोई आदेश'
रविंद्र शिसवे ने अपने बयान में बतया की अगस्त 2023 में, एक एडीजी रैंक के अधिकारी ने उन्हें पत्र भेजा और फोन पर भी बात कि जिसमे होर्डिंग के लिए अनुमति कैसे दी गई, और उन्हें विस्तृत रिपोर्ट तैयार करने के लिए कहा. “16 सितंबर, 2023 को, शिसवे ने डीजीपी कार्यालय को एक स्पष्टीकरण भेजा. बाद में, उन्हें पता चला कि डीजीपी कार्यालय द्वारा खालिद को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया था जिसके बाद खालिद ने फिर GRP कमिश्नर कार्यालय के एक जूनियर क्लर्क को बुलाया ताकि वे फाइलों को दुबारा से देख सकें.
क्लर्क ने फिर शिसवे से इसकी अनुमति मांगी, जिसे उन्होंने दी. उसके बाद, होर्डिंग गिरने तक डीजीपी कार्यालय से कोई और आदेश नहीं आया.
शिसवे ने आगे यह भी दावा किया कि नगरसेवक और कार्यकर्ताओं द्वारा की गई शिकायतें कभी उनके संज्ञान में नहीं लाई गईं. बयान ले रहे जांच अधिकारी के सामने शिसवे ने कहा कि उन्हें पुलिस पद का 21 साल का अनुभव है, और ऐसी शिकायतों पर किसी न किसी तरह का रिमार्क देकर उसके माध्यम से उन्हें देखने की जिम्मेदारी/आदत होती है और इसी प्रकार उन शिकायतों को देखेंगे तो संज्ञान में न आने को वजह से उपसर शिसवे की कोई टिप्पणी नहीं है.
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