Maharashtra: बॉम्बे हाईकोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेते हुए महाराष्ट्र में छात्राओं की परेशानी को लेते हुए कहा कि उनके पास इनकी हालात पर कुछ कहने के लिए शब्द नहीं हैं. बॉम्बे हाई कोर्ट ने सोमवार को महाराष्ट्र के एक गांव में छात्राओं की हालत का जिक्र करते हुए कहा कि ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ योजना केवल कहने के लिए ही है. कोर्ट ने कहा कि इस योजना का जमीनी स्तर पर कोई असर देखने को नहीं मिल रहा है. छात्राओं को अपनी जान जोखिम में डालकर नाव का सहारा लेकर स्कूल जाना पड़ता है.
यहां बता दें कि जस्टिस प्रसन्ना वरले और जस्टिस अनिल किलोर की बेंच ने एक अखबार की खबर पर स्वत: संज्ञान लेते हुए यह टिप्पणी की है. कोर्ट ने कहा सतारा जिले के बच्चों को अपने स्कूल तक पहुंचने के लिए नाव का इस्तेमाल करने पर मजबूर होना उनकी हालत बयां करता है. बेंच ने खबर का हवाला देते हुए कहा कि छात्राएं अपनी नाव को कोयना बांध के एक छोर से दूसरे छोर तक ले जाती हैं और वहां से घने जंगल के एक हिस्से से होकर अपने स्कूल तक जाती हैं.
हाई कोर्ट की डबल बेंच ने आगे कहा, ''आदर्श वाक्य ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ का उद्देश्य केवल सरकार द्वारा बेटियों के लिए एक सुरक्षित मार्ग और एक दोस्ताना माहौल तथा वातावरण प्रदान करके ही प्राप्त किया जा सकता है.''
कोर्ट ने कहा, ''चौंकाने वाली सच्चाई यह है कि एक छोटी सी नाव को छात्राएं खुद चला रही हैं. यह विशेष गांव संरक्षित क्षेत्र के अंतर्गत आता है. छात्राओं को कोयना बांध के एक छोर से दूसरे छोर तक जाने के लिए एक नाव में यात्रा करनी होती है और उसके बाद दूसरे छोर से घने जंगल के माध्यम से लगभग 4 किमी की यात्रा करनी होती है. इस क्षेत्र में भालू, बाघ आदि सहित जंगली जानवर रहते हैं.''
साथ ही बेंच ने कहा कि उन्हें छात्रों की इस हालत पर बोलने के लिए शब्दों की कमी महसूस हो रही है. कोर्ट ने कहा, छात्रों की पीड़ा और दुर्दशा को व्यक्त करने के लिए हमारे पास शब्दों की कमी है. एक तरफ वहां बालिकाओं के सामने आने वाली परेशानियां हैं, और दूसरी ओर, इन छात्रों में अकादमिक करियर बनाने के लिए साहस, इच्छाशक्ति और दृढ़ संकल्प है. ”
यह भी पढ़ें
Mumbai: मुंबई एयरपोर्ट की रौनक लौटी, कोरोना काल के बाद 9 महीने में दर्ज की 146 प्रतिशत की ग्रोथ