Id-e-Milad 2024: मुंबई की विक्रोली के मस्जिद मोहम्मदिया के हाल में शुक्रवार को कुछ अलग नजारा देखने को मिला. दरअसल, यहां करीब 50 से ज्यादा गैर मुस्लमानों को बुलाया गया था. उन्हें ईद-ए-मिलाद के जुलूस को लेकर की जा रही बैठक में शामिल किया गया था. मदरसा और मस्जिद मोहम्मदिया के महासचिव खुर्शीद सिद्दीकी के नेतृत्व में इस बैठक का आयोजन किया गया था जिसमें गैर मुस्लिम समूह ने नमाज के रीति-रिवाजों, मस्जिद, इस्लाम और इमाम के तौर तरीकों को जाना. गैर मुस्लिमों ने करीब एक घंटा मस्जिद में बिताया.


‘खुदा या भगवान के घर में ताला-चाबी नहीं होनी चाहिए’
खुर्शीद सिद्दीकी ने कहा कि खुदा या भगवान के घर में ताला-चाबी नहीं होनी चाहिए. ये सभी के लिए खुला होना चाहिए. उन्होंने कहा कि गैर मुस्लिम लोगों को इस यहां बुलाया गया है ताकि उन्हें भी पता चले कि हम मस्जिदों में क्या करते है. मस्जिदों को लेकर जो गलतफहमी फैलाई गई है उसे दूर करने का एक प्रयास किया गया है.


बता दें कि कुछ नमाजियों को छोड़कर जिन्हें कुर्सी पर बैठकर नमाज के लिए स्वीकृति दी गई है, उनके अलावा आमतौर पर मस्जिदों में कुर्सियां नहीं रखी जातीं, लेकिन हिंदू लोगों के मस्जिद में आने पर उन्हें कुर्सियों पर बैठाया गया था.


‘इस तरह की पहल से शांति और भाईचारा बढ़ेगा’
मस्जिद का दौरा करने वाले एक हिंदू शख्स ने कहा कि वहां जाकर मुझे बहुत खुशी मिली. मस्जिद के बारें में अक्सर कई अलग बातें कही जाती है. लेकिन मस्जिद एक प्रार्थना कक्ष के अलावा कुछ नहीं है, जहां मुस्लिम सामूहिक रूप से नमाज अदा करते है. इस तरह की पहल से शांति और भाईचारा बढ़ता है. उन्होंने कहा कि जिस तरफ मुस्लिमानों ने मस्जिदों में हमारा स्वागत किया वैसे ही मुस्लमानों के लिए मंदिर, गुरुद्वारे और चर्च खोले जाने चाहिए. 


हिन्दू लोगों ने पूछे कई सवाल
मस्जिद में दौरे के दौरान हिंदू लोगों ने कई दिलचस्प सवाल भी पूछे. एक शख्स ने पूछा कि क्या अल्लाह ब्रह्मांडीय ऊर्जा का दूसरा है. जिसपर उन्हें बताया गया कि मुस्लिम मान्यता के अनुसार अल्लाह एक निराकार शक्ति है जो स्वशासित है और इस दुनिया को चलाती है. वहीं एक शख्स ने पूछा कि मुसलमान दाढ़ी क्यों रखते हैं जिसपर बताया गया कि मुसलमान भविष्यवाणी परंपरा के हिस्से के रूप में दाढ़ी रखते हैं. 


इमाम मुफ्ती मोहम्मद शारफे आलम कासमी ने कहा कि मस्जिद में हिंदू लोगों की इस यात्रा का मुख्य उद्देश्य यहीं था कि उन्हें भी वास्तव में पता चल सके कि मस्जिदों में होता क्या है. शाम की नमाज के समय हिंदू लोगों को एक बगल के कमरे में बैठाया गया और उनके सामने मुस्लिमों ने नमाज अदा की.


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