Maharashtra News: 'राइट टू फूड कैंपेन' द्वारा महाराष्ट्र में किए गए सर्वे के अनुसार, राज्य के 1,225 दयनीय माली हाल वाले परिवारों में से 64% परिवारों ने कहा किकोरोना की दूसरी लहर के दौरान उनकी आय आधी हो गई थी. सर्वेक्षण में सामने आया कि 78% से अधिक लोगों को इस दौरान खाद्द असुरक्षा का सामना करना पड़ा, जबकि 56% ने इस दौरान अपने ऊपर बकाया कर्ज की बात कही. ये दूसरी लहर के बाद खाद्य सुरक्षा का आकलन करने के लिए दिसंबर 2021 और जनवरी 2022 के बीच 17 जिलों में किए गए सर्वेक्षण के अंतरिम परिणाम हैं. यह सर्वे हंगर वॉच II का हिस्सा है, जिसका पहला राउंड 2020 में पहले लॉकडाउन के बाद आयोजित किया गया था. इस सर्वे में ग्रामीण और शहरी दोनों परिवारों को शामिल किया गया था.
महामारी के दौरान आधी रह गई आय
सर्वे के मुताबिक 75% लोगों ने स्वीकार किया कि उनकी आय महामारी के पहले के काल से आधी रह गयी. आय में कमी शहरी इलाकों में ज्यादा थी. सर्वे में 20% परिवारों ने गंभीर खाद्द असुरक्षा की बात कही. खाद्द असुरक्षा भी शहरी इलाकों में ज्यादा देखी गई. एकल महिलाओं के द्वारा चलाए जा रहे 90% परिवारों ने खाद्द असुरक्षा की बात कही. पांच घरों में से एक ने बताया कि सर्वेक्षण से पहले के महीने में घर पर एक व्यक्ति को खाना छोड़ना पड़ा या बिना खाना खाए सोना पड़ा और 60% लोगों ने कहा कि उन्होंने महीने में 2-3 बार से कम पौष्टिक भोजन किया. सर्वेक्षण से पहले के महीने में लगभग 54% लोग रसोई गैस का खर्च उठाने में नाकाम रहे.
26% लोग मकान का किराया भरने में रहे नाकाम
अन्ना अधिकार अभियान के मुक्ता श्रीवास्तव ने कहा कि इस दौरान गरीब और हाशिये के परिवारों को भारी परेशानी झेलनी पड़ी. कर्जदार परिवारों में से 25% से अधिक परिवारों ने अपने ऊपर 50 हजार रुपए से अधिक के कर्ज की बात कही. वहीं, एकल महिलाओं के नेतृत्व वाले परिवारों पर बकाया कर्ज 59% था. वहीं, पांच में से एक परिवार ने कहा कि उनके बच्चों ने महामारी के दौरान स्कूल छोड़ दिया और 8% ने कहा कि उनके बच्चों को काम पर जाना पड़ा. सर्वेक्षण में शामिल 26% लोग किराया के मकान में रह रहे थे, जिनमें से 52% ने किराया तक नहीं दिया था.
सार्वजनिक वितरण प्रणाली बनी सहारा
सर्वेक्षण के मुताबिक महामारी के दौरान सरकार की सार्वजनिक वितरण प्रणाली लोगों के लिए राहत बनी, जबकि एकीकृत बाल विकास योजना (आईसीडीएस) जो 6 साल के कम उम्र के बच्चों के लिए पोषण संबंधी सहायता प्रदान करती है, अपर्याप्त थी. लगभग 86% परिवारों के पास राशन कार्ड थे और 72% को हर महीने राशन मिलता था. हालांकि, पीएमजीकेएवाई योजना के तहत हर महीने केवल 61 फीसदी परिवारों को ही राशन मिला. सर्वेक्षण में पाया गया कि लगभग 40% पात्र परिवारों को आईसीडीएस का लाभ नहीं मिला जबकि कुछ लोगों को ही पका हुआ भोजन मिला. सर्वेक्षण पर प्रतिक्रिया देते हुए आईसीडीएस आयुक्त रुबल अग्रवाल ने कहा कि आईसीडीएस और मध्याह्न भोजन योजना के लाभार्थी पूरी तरह से अलग हैं, इसलिए मुझे संदेह है कि सर्वेक्षण कितना तथ्यात्मक है. उन्होंने कहा कि यह सच है कि हम इन 2 महीनों के दौरान कोविड-19 दिशानिर्देशों के कारण लाभार्थियों को गर्म पका हुआ भोजन नहीं दे सके, लेकिन हमने 100% लाभार्थियों को सूखा राशन दिया.
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