Maharashtra Assembly Election 2024: देश की राजनीति हो या महाराष्ट्र की राजनीति. चाचा की उंगली पकड़कर राजनीति के गुर सीखने के बाद राजनीति में अपने ही चाचा से बगावत और चुनौती की कहानी कोई नई बात नहीं है. भारतीय राजनीति का इतिहास भरा पड़ा है, जिसमें कभी चाचा भतीजे पर भारी पड़ा तो कभी भतीजा चाचा पर. महाराष्ट्र में भी चाचा बनाम भतीजे की यह कोई पहली लड़ाई नहीं है.


दरअसल सत्ता का खेल ही ऐसा है कि हर कोई सदैव बाजी जीतना चाहता है और जीत की यही चाहत कभी परिवारों का विभाजन कराती है तो कभी पार्टियों का विभाजन होता है. सत्ता की चाहत में पल भर में घर का झगड़ा सड़कों पर आ जाता है और विरोधी दलों के साथ ही जनता भी इस राजनीतिक लड़ाई में चुटकी लेती है.


सभी भतीजों का DNA एक जैसा होता है- छगन भुजबल


महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव की सरगर्मी बढ़ी हुई है. लोकसभा चुनाव में बारामती लोकसभा सीट पर भाभी सुनेत्रा पवार और ननद सुप्रिया सुले की लड़ाई में ननद भारी पड़ी. अब 6 महीने बाद विधानसभा चुनाव में चाचा अजित पवार को भतीजे युगेंद्र पवार चुनौती दे रहे हैं. इस बीच छगन भुजबल ने अपने भतीजे समीर भुजबल की बगावत पर कह दिया कि सभी भतीजों का DNA एक जैसा होता है.


महाराष्ट्र में खासकर चाचा भतीजों की राजनीतिक लड़ाई की सूची बड़ी लंबी है. चाचा भतीजों की लड़ाई ऐसी है कि किसी ने घर और पार्टी में बटवारा कराए दिया तो किसी ने सुलह कर कुर्सी हासिल की .


बालासाहेब ठाकरे और राज ठाकरे


महाराष्ट्र में मराठी क्षेत्रवादी और हिंदू अतिराष्ट्रवादी शिवसेना राजनीतिक पार्टी की स्थापना 1966 में बाल ठाकरे ने की. पार्टी बनाने के बाद बालासाहेब को अपने भाई श्रीकांत ठाकरे के बाद अगली पीढ़ी बेटे उद्भव ठाकरे और भतीजे राज ठाकरे का साथ मिला. राज ठाकरे ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत शिवसेना की छात्र शाखा भारतीय विद्यार्थी सेना की शुरुआत करके की थी. 


1990 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के प्रचार के दौरान वे चर्चा में आए. 1990 के दशक में राज ठाकरे खुद को अपने चाचा बालासाहेब का उत्तराधिकारी मानते थे. हालांकि, बालासाहेब ने अपने बेटे उद्धव ठाकरे को प्राथमिकता दी.


बाला साहेब ठाकरे के लिए काम करने वाले अन्य नेताओं द्वारा दरकिनार किए जाने के कई सालों बाद, राज ठाकरे ने 27 नवंबर 2005 को शिवसेना से इस्तीफा दे दिया और एक नई राजनीतिक पार्टी शुरू करने के अपने इरादे की घोषणा की. बालासाहेब ठाकरे से बग़ावत कर 9 मार्च 2006 को मुंबई में ठाकरे ने महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) की स्थापना की. इसके बाद जब 2009 में लोकसभा और विधानसभा चुनाव हुए तो राज ठाकरे बहुत कमाल नहीं कर पाए लेकिन शिवसेना-बीजेपी गठबंधन का वोट काटकर हराने में कोई कसर नहीं छोड़ा.


शरद पवार बनाम अजित पवार


शरद पवार और अजित पवार के रिश्ते महाराष्ट्र की राजनीति में सबसे चर्चित रहे हैं. शरद पवार ने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) की स्थापना की. अजित पवार, शरद पवार के भतीजे हैं और एनसीपी में एक प्रभावशाली नेता हैं. हालांकि इन दोनों के बीच कई बार राजनीतिक मतभेद हुए हैं, विशेषकर तब जब अजित पवार ने महाराष्ट्र में बीजेपी के साथ गठबंधन करके उपमुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी. 


इस कदम से शरद पवार के समर्थकों में खलबली मच गई थी और यह बात स्पष्ट हो गई थी कि परिवार के भीतर सत्ता की लड़ाई गहरी हो चुकी है. इसके बावजूद दोनों ने फिर से साथ आकर काम किया, जिससे राजनीतिक समीकरणों में नया मोड़ आया. अब एनसीपी दो दल में बंट गया है. एक एनसीपी जिसके राष्ट्रीय अध्यक्ष अजित पवार है और दूसरे एनसीपी शरद चंद्र पवार गुट के प्रमुख शरद पवार हैं.


अजित पवार बनाम युगेंद्र पवार और रोहित पवार


अजित पवार के भाई श्रीनिवास पवार के बेटे युगेंद्र पवार भी राजनीतिक तौर पर चर्चा में हैं. उन्होंने अभी सक्रिय राजनीति में कदम रखा है लेकिन पिछले कई वर्षों से राजनीतिक गतिविधियों में उनकी उपस्थिति देखने को मिलती है. राज्य की बारामती विधानसभा सीट पर चाचा-भतीजे के बीच जंग होने जा रही है. पुणे जिले की बारामती सीट पर अजित पवार के खिलाफ शरद पवार ने युगेंद्र पवार को उम्मीदवार बनाया है. युगेंद्र शरद पवार गुट की ओर से चुनावी मैदान में होंगे.


अजित पवार को चुनौती उनके दूसरे भतीजे रोहित पवार भी देते हैं. लोकसभा चुनाव में रोहित पवार ने अजित पवार के ख़िलाफ़ जमकर बयानबाज़ी की थी और अजित पवार की पत्नी सुनेत्रा को हराने में कोई कसर नहीं छोड़ी.


उद्धव ठाकरे और अमित ठाकरे


उद्भव ठाकरे के उत्तराधिकारी आदित्य ठाकरे हैं, जो MVA की उद्भव ठाकरे सरकार में सबसे कम उम्र के मंत्री रहे. उद्धव ठाकरे शिवसेना UBT प्रमुख और महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री हैं, जबकि उनके बेटे आदित्य ठाकरे युवा नेता और विधायक हैं. लेकिन उनके भतीजे अमित ठाकरे, राज ठाकरे के बेटे हैं. अमित ठाकरे ने राजनीति में कदम रखा है. एमएनएस की राजनीति भले ही शिवसेना से अलग रही हो, लेकिन अमित ठाकरे के राजनीतिक करियर की तुलना आदित्य ठाकरे से की जाती है. 


ये दोनों कजिन एक-दूसरे के विपक्ष में खड़े हैं. अमित ठाकरे मुंबई की माहिम सीट से MNS की टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं. वहीं, उद्धव ठाकरे की शिवसेना ने अमित ठाकरे के सामने अपना उम्मीदवार उतारा है.


राज ठाकरे और आदित्य ठाकरे


राज ठाकरे और आदित्य ठाकरे भी महाराष्ट्र की राजनीति में चाचा-भतीजे की एक अन्य दिलचस्प जोड़ी हैं. राज ठाकरे ने शिवसेना से अलग होकर एमएनएस की स्थापना की थी, जिसका असर उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना पर भी पड़ा. बता दें कि महाराष्ट्र में सभी 288 सीटों पर 20 नवंबर को मतदान है जबकि 23 नवंबर को नतीजे आएंगे.


छगन भुजबल और समीर भुजबल


छगन भुजबल एनसीपी के एक वरिष्ठ नेता हैं और उनका राजनीतिक करियर काफी लंबा रहा है. उनके भतीजे समीर भुजबल भी एनसीपी में सक्रिय हैं. यह परिवार महाराष्ट्र के ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) समुदाय का प्रतिनिधित्व करता है. छगन भुजबल ने अपनी राजनीतिक ताकत के बलबूते पर इस समुदाय को एक विशेष स्थान दिलाया है. समीर भुजबल उनके नक्शे कदम पर चल रहे हैं और आगे की राजनीति को संभालने की तैयारी कर रहे हैं. 


अब तक दोनों के बीच उनके रिश्ते में स्नेह और सम्मान की झलक दिखती थी लेकिन इस चुनाव में समीर भुजबल के NCP से इस्तीफ़ा दे दिया और निर्दलीय चुनाव लड़ने का ऐलान किया है. इस बग़ावत से छगन भुजबल का बयान आया कि सभी भतीजों का DNA एक जैसा होता है.


धनंजय मुंडे और गोपीनाथ मुंडे


धनंजय मुंडे ने अपने चाचा गोपीनाथ मुंडे का हाथ पकड़कर राजनीति के गुर सीखे. धनंजय मुंडे को लगा कि गोपीनाथ मुंडे की विरासत पंकजा मुंडे को मिली तो धनंजय मुंडे बीजेपी से अलग होकर एनसीपी के एक महत्वपूर्ण नेता बन गए. धनंजय मुंडे ने अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत भाजपा से की थी लेकिन बाद में उन्होंने एनसीपी का दामन थाम लिया. धनंजय मुंडे ने 2019 में अपनी चचेरी बहन को विधानसभा चुनाव में हराया था. अजित गुट NCP और बीजेपी में गठबंधन हो जाने से दोनों भाई बहन पंकजा और धनंजय एक साथ आ गए है.


फिलहाल धनंजय मुंडे परली सीट से NCP गठबंधन के उम्मीदवार है जबकि पंकजा मुंडे MLC हैं. महाराष्ट्र की राजनीति में चाचा-भतीजा का यह रिश्ता सिर्फ परिवार तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका असर राजनीतिक दलों पर भी पड़ा है. इन रिश्तों में न केवल राजनीतिक शक्ति की लड़ाई देखी जाती है बल्कि इसमें परिवार के मान-सम्मान का भी विषय शामिल होता है. 


चाहे पवार परिवार हो, ठाकरे परिवार हो, या मुंडे परिवार, हर जगह एक पीढ़ी दूसरी पीढ़ी को राजनीतिक मंच सौंपती है. हालांकि, सत्ता के लिए व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं और विचारों के टकराव ने महाराष्ट्र की राजनीति में एक नई दिशा भी दी है.


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