Maharashtra Assembly Election 2024: महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में असदुद्दीन ओवैसी (Asaduddin Owaisi) की पार्टी एआईएमआईएम ने कांग्रेस और शरद पवार (Sharad Pawar) की एनसीपी को गठबंधन का ऑफर दिया था, लेकिन उन्हें कोई सकारात्मक जवाब नहीं मिला, जबकि महाराष्ट्र की ये विपक्षी पार्टियां आरोप लगाती हैं कि एआईएमआईएम वोट काटने वाली पार्टी है और अंतत: इससे बीजेपी को मदद मिलती है. हालांकि चुनावी आंकडे़ कुछ और ही इशारा करते हैं.
एआईएमआईएम के चुनावी आंकड़े देखें तो 2019 में इसने 44 सीटों पर चुनाव लड़ा और केवल दो सीटें मालेगांव और धुले जीत पाई. औरंगाबाद सेंट्रल, औरंगाबाद पूर्व, भायखला और सोलापुर सिटी सेंट्रल में दूसरे स्थान पर रही, जबकि 13 अन्य सीटों पर इसका प्रभाव दिखा. इन 13 में से बीजेपी-शिवसेना ने सात और कांग्रेस-एनसीपी ने छह सीटें जीती थीं. एआईएमआईएम का वोट शेयर केवल 1.34 प्रतिशत था.
जब औरंगाबाद सेंट्रल से जीते मुस्लिम नेता
2014 में भी जीत का आंकड़ा यही रहा. इसे दो सीटें मिलीं, लेकिन तब वोट शेयर एक प्रतिशत से भी कम था. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक उस चुनाव में अप्रत्याशित परिणाम रहा और यह पहली बार एआईएमआईएम दो सीट जीत गई थी. पत्रकार से नेता बने इम्तियाज जलील ने चुनाव जीता और फिर 2019 के लोकसभा चुनाव में भी वह निर्वाचित हुए. इस तरह वे औरंगाबाद सेंट्रल का प्रतिनिधित्व करने वाले पहले मुस्लिम प्रतिनिधि बने.
किस तरफ शिफ्ट हुए मुस्लिम मतदाता?
हालांकि, इम्तियाज जलील 2024 में औरंगाबाद लोकसभा सीट से 1.30 लाख से अधिक वोटों के अंतर से हार गए थे, जिससे मुस्लिम मतदाताओं के बीच एआईएमआईएम की पैठ को लेकर सवाल उठने लगे हैं. ऐसा लग रहा है कि मुस्लिम मतदाताओं का झुकाव बीजेपी का ज्यादा प्रभावी तरीके से विरोध करने वाली पार्टी की तरफ हो गया है.
आंतरिक कलह से जूझ रही एआईएमआईएम
वहीं, एआईएमआईएम आंतरिक कलह से भी जूझ रही है, जहां कार्यकारी अध्यक्ष गफ्फार कादरी और फैयाज अहमद को दरकिनार किया गया है. ये सभी इम्तियाज जलील पर आरोप लगा रहे हैं कि उन्होंने बीजेपी से मौन समझौता कर लिया है. कादरी ने आरोप लगाते हुए कहा कि हमें पता है कि बीजेपी और शिवसेना से कितने पैसे लिए गए हैं. इम्तियाज जलील मुस्लिम समुदाय को बेवकूफ नहीं बना सकते. कादरी ने ये आरोप तब लगाए हैं, जब उनका विधानसभा चुनाव में टिकट कट सकता है.
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