महाराष्ट्र में आखिर कैसे पिछड़ गई शिंदे-फडणवीस और अजित पवार की तिकड़ी? ये रहे हार के 10 बड़े कारण
Maharashtra Lok Sabha Election Result 2024: महाराष्ट्र में MVA के लोकसभा चुनाव के नतीजों ने सभी को हैरान कर दिया. वहीं एनडीए को कई सीटों का नुकसान हुआ. आइए जानते हैं इसके क्या 10 बड़े कारण रहे.
Maharashtra Lok Sabha Election Result 2024: महाराष्ट्र के लोकसभा चुनाव के नतीजों ने चौंका दिया. साथ ही आने वाले विधानसभा चुनाव के लिए एनडीए की टेंशन भी बढ़ा दी. सवाल ये है कि शिवसेना से नेचुरल अलायंस और अजीत पवार के साथ स्ट्रेटेजिक अलायंस बावजूद क्यों पिछड़ गई बीजेपी? महागठबंधन के बावजूद महाराष्ट्र में बीजेपी के कई बड़े नेता भी हार गए.
महाराष्ट्र में एनडीए गठबंधन की पार्टियों में बीजेपी को 9, शिवसेना (शिंदे) को सात और एनसीपी अजीत पवार को एक सीट मिली. वहीं अब सवाल ये उठ रहे हैं कि आखिर कौनसी ऐसी वजह रहीं, जिससे एनडीए को महाराष्ट्र में सीटों का नुकसान उठाना पड़ा.
1.MVA गठबंधन की तैयारी बेहतर
महाविकास अघाड़ी गठबंधन , सत्तारूढ़ एनडीए गठबंधन से काफी पहले गठबंधन और उम्मीदवार के नाम तय करने में कामयाब रहा.
भिवंडी, सांगली इन दो सीटों को छोड़कर महाविकास अघाड़ी में सीट बटवारे और उम्मीदवार के नाम में कोई मनमुटाव नहीं था . जबकि पहले दो चरण के मतदान समाप्त होने के बाद ही बीजेपी-शिवसेना-एनसीपी (अजित) ने नासिक, ठाणे, मुंबई नॉर्थ वेस्ट, मुंबई साउथ, सातारा, पालघर, रत्नागिरी पर अपने मतभेद सुलझा पाए. इससे गठबंधन के पास प्रचार के लिए बहुत कम समय रह गया.
2. एनडीए में दल मिले पर दिल नहीं?
बीजेपी-शिवसेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (अजित) साथ आए पर कार्यकर्ता में ताल मेल की कमी दिखी. अजित पवार ने अपने आप को अपनी पार्टी के चार सीटों तक ही सीमित रखा. पीएम मोदी ने अपने आप को एनसीपी के उम्मीदवारों के प्रचार से दूर रखा. बीजेपी, शिवसेना, एनसीपी (अजित) के पास प्रमुख नेताओं के साथ-साथ संसाधन भी थे, फिर भी प्रचार अभियान उस तरह से सामने नहीं आया जैसा कि उसे उम्मीद थी.
3. स्थानीय गुटबाजी और राजनीति पड़ गई भारी
महाराष्ट्र की कई सीटों पर महायुति के उम्मीदवार आरोप लगा रहे हैं की घटक दलों ने साथ नहीं दिया. मावल लोकसभा क्षेत्र से शिवसेना (शिंदे) के उम्मीदवार श्रीरंग बार्ने ने आरोप लगाया है कि अजीत पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के कुछ कार्यकर्ताओं ने उनके लिए प्रचार नहीं किया.वहीं हथकंगले लोकसभा क्षेत्र में एकनाथ शिंदे के कैंडिडेट के समर्थकों का आरोप की बीजेपी ने हमारा नहीं बल्कि स्वाभिमानी शेतकरी संगठन का साथ दिया.
रावेर लोकसभा क्षेत्र में, मौजूदा बीजेपी सांसद रक्षा खडसे को मतदान से ठीक एक सप्ताह पहले मुक्ताईनगर के शिव सेना विधायक चंद्रकांत पाटिल से उनके लिए प्रचार करने के लिए मिलना पड़ा. नासिक में शिवसेना विधायक सुहास कांदे ने आरोप लगाया कि एनसीपी (अजीत) नेता छगन भुजबल नासिक से शिवसेना के उम्मीदवार, मौजूदा सांसद हेमंत गोडसे के साथ-साथ डिंडोरी में बीजेपी उम्मीदवार के लिए सक्रिय रूप से प्रचार नहीं कर रहे हैं.
डिंडौरी में एनसीपी (अजित पवार) पार्टी के कार्यकर्ता शरद गुट के लिए प्रचार करते पाए गए हैं. शिवसेना नेता शिशिर शिंदे ने पार्टी प्रमुख और मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को पत्र लिखकर पार्टी विरोधी बयान देने के लिए पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व सांसद गजानन कीर्तिकर को तत्काल निष्कासित करने की मांग की है. शिशिर शिंदे ने अपने पत्र में गजानन कीर्तिकर और उनकी पत्नी पर राज्य में पांचवें चरण के मतदान के दिन पार्टी विरोधी बयान देकर विपक्षी उद्धव ठाकरे गुट का पक्ष लेने का आरोप लगाया.
4. नहीं काम आई बीजेपी की B टीम
बीजेपी और शिवसेना 2014 और 2019 में अच्छे प्रदर्शन के पीछे की बड़ी वजह प्रकाश अंबेडकर की वंचित बहुजन अगाड़ी (वीबीए), जिसका ऑल-इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के साथ गठबंधन था. इससे दलित-मुस्लिम वोटों में सेंध लगा ली थी. 8 से 10 संसदीय क्षेत्रों में कांग्रेस और एनसीपी की संभावनाओं को इस वजह से नुकसान पहुंचा था.
इस बार प्रकाश अंबेडकर की वंचित बहुजन आघाडी भले ही चुनाव लड़ रही थी लेकिन उसका प्रभाव नहीं दिखा. VBA को बीजेपी की 'बी' टीम के रूप में देखा जा रहा था और एआईएमआईएम से इस बार इनका गठबंधन भी नहीं था.
5. कागज पर शेर, जमीन पर ढेर!
बीजेपी, शिवसेना और एनसीपी (अजित पवार) ने कागज पर एक मजबूत गठबंधन बनाया. एनडीए में मौजूदा विधायकों और सांसदों की संख्या में दम दिखा. एनडीए में शिवसेना और एनसीपी अजीत के विधायक और सांसद आए पर उनके मतदाता बीजेपी की तरफ नहीं आए. कथित तौर पर बीजेपी को उसके सहयोगियों मुख्य रूप से शिवसेना द्वारा कमजोर कर दिया गया, जिसे ज्यादा समर्थन नहीं मिला.
ठाणे और कल्याण क्षेत्रों को छोड़कर, शिवसेना को मुश्किलों का सामना करना पड़ा. शिवसेना यूबीटी गुट अपने जमीनी समर्थन को बरकरार रखने में कामयाब दिखा. एकनाथ शिंदे गुट के पास सिर्फ नेता रह गए हैं, शिवसेना का मूल वोट बैंक नहीं. शिवसेना को बीजेपी के वोटों के भरोसे छोड़ दिया गया है. बीजेपी का वोटर अभी भी लॉयल है.
6. बीजेपी के सर्वे निकले गलत!
चुनाव से पहले बीजेपी ने कई जमीनी सर्वेक्षणों का हवाला देते हुए शिवसेना से उसके कई मौजूदा सांसदों को बदलने की जरूरत बताया. मौजूदा सांसदों की अलोकप्रिय या हारने की स्थिति में दिखाया. बीजेपी, शिवसेना को नौ सीटें देना चाहती थी, जिससे उसे अपने कुछ सांसदों को छोड़ना पड़ता और बीजेपी, शिवसेना की कुछ सीटों पर चुनाव लड़ती. हालांकि, शिंदे ने तीन सीटों को छोड़कर पार्टी के मौजूदा सांसदों के टिकट काटने से इनकार कर दिया और सेना ने 15 सीटों पर चुनाव लड़ा.
मुंबई दक्षिण में शिवसेना ने यामिनी जाधव को टिकट दिया, जिन्हें यूबीटी के अरविंद सावंत के खिलाफ एक मजबूत उम्मीदवार के रूप में नहीं देखा जा रहा था. मुंबई उत्तर पश्चिम में, शिवसेना को यूबीटी के अमोल कीर्तिकर के खिलाफ उम्मीदवार खड़ा करने के लिए संघर्ष करना पड़ा. पार्टी ने विधायक रवींद्र वायकर को टिकट दिया, जो कुछ दिन पहले शिंदे खेमे में चले गए थे.
बीजेपी यह भी चाहती थी कि शिवसेना नासिक सीट छोड़ दे, लेकिन शिंदे ने नरमी बरतने से इनकार कर दिया और सांसद हेमंत गोडसे को दोहराया, जिन्होंने यूबीटी के राजाभाऊ वाजे के खिलाफ कड़ी लड़ाई लड़ी है. इसी तरह हातकणंगले में, बीजेपी की आपत्तियों के बावजूद, सेना ने धैर्यशील माने को दोहराया. वह शिरडी, कोल्हापुर, धाराशिव (उस्मानाबाद), यवतमाल-वाशिम और हिंगोली में कड़ी लड़ाई लड़ रही है. इन सभी सीटों पर, सेना के उम्मीदवारों के खिलाफ बड़े पैमाने पर सत्ता विरोधी लहर है.
7. मराठी, दलित और मुस्लिम नया वोट बैंक
शिवसेना उद्धव गुट के मराठी वोट उद्धव ठाकरे के साथ रहे. महाराष्ट्र में मुसलमान शिवसेना से किनारा करते रहे है लेकिन मोदी-शाह से टक्कर लेने वाले उद्धव ठाकरे को मुसलमानों ने जमकर मतदान किया. दलित मतदाता महाविकास अघाड़ी के साथ रहे. मराठी, दलित और मुस्लिम नया वोट बैंक महाविकास अघाड़ी के पक्ष में गया.
8. मराठा आरक्षण मुद्दा सत्ता पक्ष के खिलाफ
मराठा vs OBC कार्ड से बड़े चेहरे हारे. मराठा नेता मनोज जरांगे पाटिल द्वारा मराठा समाज को आरक्षण देने के लिए समुदाय को अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) श्रेणी में पूर्ण रूप से शामिल करने की मांग और राज्य द्वारा पूर्ण आरक्षण देने से इनकार करने का आंदोलन समुदाय के भीतर अच्छा नहीं रहा है. परिणामस्वरूप मराठवाड़ा की आठ में से कम से कम छह सीटों पर बीजेपी को कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है.
बीजेपी बीड में पंकजा मुंडे की जीत को लेकर आश्वस्त थी, लेकिन इसके बजाय मराठाओं के गुस्से के कारण पार्टी को हार का सामना करना पड़ा. जालना में पांच बार के सांसद रावसाहेब दानवे जिन्होंने पिछला चुनाव लगभग 332,000 वोटों के अंतर से जीता था वो इस बार हार गए .
9. किसानों में नाराज़गी! रोज़गार बना मुद्दा
एक दशक तक सत्ता में रहने के बाद, बीजेपी कृषि उपज के पर्याप्त कीमतों की कमी को लेकर ग्रामीण किसान की नाराजगी दिखी. महाराष्ट्र में असामयिक मौसम से फसल प्रभावित हुआ है. राज्य में बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि हुई है जिससे फसलें बर्बाद हो गई हैं. हालांकि राज्य ने मुआवजा दिया है, लेकिन इसे पर्याप्त नहीं देखा गया है. युवाओं में रोजगार को लेकर भी मुद्दा बना. अग्नीवीर योजना को लेकर भी ग्रामीण युवकों में नाराजगी रही.
10. संविधान को खतरा!
बीजेपी ने जिस प्रकार अबकी बार 400 पार का नारा दिया और विपक्ष ने मुद्दा बनाया की अगर बीजेपी 400 सीटें लाई तो संविधान बदल दिया जाएगा और आरक्षण छीन लिया जाएगा. ये प्रचार दलित पिछड़ों के बीच बीजेपी के विरोध के रूप में गया. महाराष्ट्र में आरक्षण का मुद्दा बड़ा चुनावी मुद्दा बना.
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