HC ने केंद्र और महाराष्ट्र सरकार से कहा- IPC की धारा 498A को कंपाउंडेबल ऑफेंस बनाने पर विचार करें
Mumbai: बंबई हाई कोर्ट ने केंद्र से पति या उसके संबंधियों द्वारा पत्नी के साथ क्रूरता को लेकर आईपीसी की धारा 498ए के तहत शमनीय अपराध बनाने पर विचार करने के लिए कहा.
बंबई हाई कोर्ट (Bombay High Court) ने केंद्र से कहा है कि वह पति या उसके संबंधियों द्वारा किसी महिला का उत्पीड़न या उसके साथ क्रूरता संबंधी भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 498ए के तहत मामलों को शमनीय अपराध (Compoundable Offense) बनाने पर विचार करे. ताकि संबंधित पक्ष कोर्ट में आए बिना समझौता कर सकें.
जज रेवती मोहिते डेरे और जज पृथ्वीराज चव्हाण की खंडपीठ ने 23 सितंबर को पारित एक आदेश में कहा कि आईपीसी की धारा 498ए को शमनीय बनाने की महत्ता को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. उन्होंने कहा कि यह अपराध अशमनीय होने के कारण सहमति के आधार पर मामलों को रद्द किए जाने का अनुरोध करने वाली न्यूनतम 10 याचिकाओं पर रोजाना सुनवाई होती है. इस फैसले की प्रति बुधवार को उपलब्ध कराई गई.
2018 में दर्ज याचिका पर फैसला सुनाया गया
कोर्ट ने पुणे के एक थाने में 2018 में एक व्यक्ति, उसकी बहन और मां के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद्द किए जाने का अनुरोध करने वाली याचिका पर यह फैसला सुनाया. व्यक्ति की पत्नी ने अपने पति और ससुराल वालों पर उत्पीड़न का आरोप लगाया था. अशमनीय अपराध होने पर यदि पक्षकार मामले का निपटारा करना चाहते हैं, तो आरोपी को मामला खारिज कराने के लिए हाई कोर्ट जाना पड़ता है. आदेश में कहा गया है कि यदि धारा 498ए को कोर्ट की अनुमति से शमनीय अपराध बना दिया जाता है, तो इससे ना केवल पक्षकारों को होने वाली समस्याओं से बचा जा सकेगा, बल्कि हाई कोर्ट का कीमती समय भी बचेगा.
अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ने दिया निर्देश
हाई कोर्ट ने कहा कि धारा 498ए के तहत मामले इस प्रकृति के नहीं होते कि मजिस्ट्रेट उक्त कोर्ट की अनुमति से उनमें समझौता ना करा सकें. पीठ ने अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल अनिल सिंह को निर्देश दिया कि वह संबंधित केंद्रीय मंत्रालय के समक्ष इस मामले को जल्द से जल्द उठाएं. याचिकाकर्ता ने कोर्ट से कहा कि उन्होंने आपसी रजामंदी से मामला निपटा लिया और शिकायतकर्ता को 25 लाख रुपए देने और तलाक लेने पर सहमति जताई. शिकायतकर्ता ने भी अपने हलफनामे में कहा कि वह प्राथमिकी रद्द करने का अनुरोध करने वाली याचिका का विरोध नहीं करती. इसके बाद कोर्ट ने प्राथमिकी को खारिज कर दिया.
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