(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
Climate Change Report: जलवायु संकट महाराष्ट्र के मौसम पैटर्न और शहर पर डाल रहा प्रभाव, चौंका देगी विशेषज्ञों की ये रिपोर्ट
Climate Crisis in Maharashtra: वैज्ञानिकों का कहना है, बढ़ते तापमान और अधिक वर्षा के कारण शहर में अत्यधिक बाढ़ और चरम मौसम की घटनाओं की आवृत्ति देखी गई है.
Climate Change in Maharashtra: पश्चिमी भारत के साथ-साथ द्वीपीय शहर मुंबई को जलवायु परिवर्तन के खतरों का सामना करना पड़ रहा है, जिसमें समुद्र के स्तर में वृद्धि और अगले 75 वर्षों में या सदी के अंत तक अनुमानित औसत तापमान में उल्लेखनीय वृद्धि शामिल है. विशेषज्ञों ने कहा, ''बढ़ते तापमान और अधिक वर्षा के कारण शहर में अत्यधिक बाढ़ और चरम मौसम की घटनाओं की आवृत्ति देखी गई है, जहां मानवीय गतिविधियों के कारण शहरी केंद्र अपने ग्रामीण परिवेश की तुलना में काफी गर्म हो जाते हैं.'' 5 अगस्त 2020 को दक्षिण मुंबई में भारी बाढ़ आई. केवल 10 घंटों में 225 मिमी बारिश हुई, जो 1974 के बाद से इस महीने की सबसे अधिक एक दिन की बारिश है.
क्या बोले एक्सपर्ट्स?
बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) को चर्चगेट, नरीमन प्वाइंट, मरीन ड्राइव जैसे क्षेत्रों में अभूतपूर्व जलभराव के लिए आलोचना का सामना करना पड़ा, साथ ही मुंबई तटीय सड़क परियोजना और कोलाबा-एसईईपीजेड पूरी तरह से भूमिगत मुंबई मेट्रो लाइन पर भी उंगलियां उठाई गईं. ऐसा माना जाता है कि इनसे मुंबई की सेवा करने वाली 140 साल पुरानी ब्रिटिश काल की जल निकासी प्रणालियों की जल निकासी लाइनें अवरुद्ध हो गई हैं, जो अब अनियोजित विकास और हरे-भरे स्थानों में कमी के कारण बोझिल हो गई हैं.
वैज्ञानिकों ने कही ये बात
एएसएआर सोशल इम्पैक्ट एडवाइजर्स के वैज्ञानिकों ने कहा कि महाराष्ट्र और पश्चिमी भारत के लिए अनुमान आने वाले वर्षों में अधिक 'बरसात वाले दिनों' के साथ तापमान में 1 डिग्री सेल्सियस से 2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि का संकेत देते हैं, और कृषि, शहरी बुनियादी ढांचे तथा प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र के लिए महत्वपूर्ण चुनौतियां पैदा करते हैं. जैसा कि कुछ उदाहरणों से पता चलता है, महाराष्ट्र में हाल के वर्षों में जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से उत्पन्न कई उल्लेखनीय जलवायु विसंगतियां देखी गई हैं. यूनिसेफ, महाराष्ट्र कार्यालय और राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण द्वारा नियुक्त उन्नत जल संसाधन विकास और प्रबंधन केंद्र पुणे के त्वरित आकलन के अनुसार, मानसून 2021 में राज्य में अनुमानित 10,000 भूस्खलन दर्ज किए गए.
नुकसान पर कही ये बात
लगातार बारिश, तेजी से मिट्टी के कटाव के कारण मुंबई, रायगढ़, रत्नागिरी, सिंधुदुर्ग, सतारा और पुणे के तटीय क्षेत्रों में बड़े और छोटे भूस्खलन की सूचना मिली, क्योंकि कुछ क्षेत्रों में पंद्रह दिनों में पांच घंटे के भीतर 100 मिमी बारिश हुई. अध्ययन में कहा गया है कि 2011 के बाद से इन क्षेत्रों में भूस्खलन तेजी से बढ़ रहा है. राज्य के कई जिलों में 600-900 प्रतिशत अधिक वर्षा दर्ज की गई है. जिससे रायगढ़, रत्नागिरी, सिंधुदुर्ग, पुणे, सतारा और कोल्हापुर में बाढ़ आ गई है. 2021 में रत्नागिरी ने 1 जुलाई से शुरू होने वाले तीन हफ्तों में 1,781 मिमी बारिश का 40 साल पुराना रिकॉर्ड तोड़ दिया, जो महीने के औसत 973 मिमी को पार कर गया, जबकि महाबलेश्वर हिल स्टेशन पर 22-23 जुलाई को 1,075 मिमी बारिश हुई, मुंबई और इसके उपनगरों में भारी बारिश के कारण बाढ़ देखी गई, जो सामान्य दैनिक औसत से छह-सात गुना अधिक थी. ये देश में बदलते मानसून पैटर्न की व्यापक प्रवृत्ति का हिस्सा हैं.
रायगढ़ में हुआ था भूस्खलन
19 जुलाई, 2023 को पहाड़ी ढलान पर बसा रायगढ़ का छोटा सा गांव इरशालवाड़ी बमुश्किल 24 घंटों में 400 मिमी की मूसलाधार बारिश के बाद एक बड़े पहाड़ी भूस्खलन के बाद धरती से मिट गया. इससे पूरी अर्ध-बंजर पहाड़ी चोटी गांव पर गिर गई, जिससे गांव के 25 घरों में से लगभग आधे दब गए. रायगढ़ में इसी तरह की त्रासदियों ने पिछले 17 वर्षों में 300 से अधिक लोगों की जान ले ली है, जिनमें तालिये और जुई गांव भी शामिल हैं, जिसका मुख्य कारण हरियाली में कमी, पेड़ों का आवरण और परिणामस्वरूप मिट्टी का क्षरण है. दूसरी ओर, वर्षा आधारित कृषि पर निर्भर मराठवाड़ा और विदर्भ क्षेत्र वर्षा के पैटर्न में महत्वपूर्ण बदलाव के कारण सूखे जैसी स्थिति से ग्रस्त थे. एएसएआर विशेषज्ञों का कहना है कि राज्य के 85 प्रतिशत किसान वर्षा पर निर्भर हैं, लेकिन, राज्य का एक-तिहाई हिस्सा अर्ध-शुष्क जलवायु क्षेत्र के अंतर्गत आता है, जहां एक दशक में लगभग एक बार सूखा पड़ता है.
पानी के लेवल में गिरावट
हालांकि, पिछले कुछ वर्षों में भूजल स्तर में गिरावट, गंभीर पानी की कमी, खरीफ और रबी दोनों मौसमों में फसल के गंभीर नुकसान के कारण स्थिति खराब हो गई है, जिससे कृषि, घरेलू भोजन की जरूरतें, पशुधन और हजारों गरीब एवं सीमांत किसानों की आजीविका प्रभावित हुई है. फिर भी, यह क्षेत्र अभी भी बांधों के पानी पर बहुत अधिक निर्भर है, जो या तो महंगा है या कई किसानों के लिए दुर्गम है, जिससे भूजल जैसे अन्य स्रोतों का अत्यधिक दोहन होता है जो नई जटिलताएं पैदा करता है. जून 2020 में, 120 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से चलने वाले विनाशकारी चक्रवात निसर्ग ने तटीय महाराष्ट्र को रायगढ़ में भूस्खलन के साथ तबाह कर दिया, लेकिन मुंबई इसके प्रकोप से बच गया.
क्लाइमेट चेंज के कारण
चक्रवात निसर्ग ने तबाही मचाई और समुद्र के बढ़ते स्तर, बाढ़ और पारिस्थितिक क्षरण के प्रति संवेदनशील उच्च आबादी वाले तटीय मेगासिटीज के लिए शहरी और पर्यावरणीय योजना में जलवायु अनुकूलन और लचीलेपन की तत्काल आवश्यकता को मजबूत किया. इंटर-गवर्नमेंटल पैनल ऑफ क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) ने नोट किया है कि 2070 तक मुंबई जैसे बंदरगाह शहर अरब सागर के तेजी से गर्म होने के कारण तटीय बाढ़ के संपर्क में आने वाली आबादी और संपत्ति के मामले में जोखिम में पड़ सकते हैं, जिससे यह चक्रवात निर्माण के लिए अधिक अनुकूल हो गया है और इसके परिणामस्वरूप संभावित रूप से यहां चक्रवातों की संख्या में वृद्धि हो सकती है.
जबकि, शहर को 'जलवायु-लचीला' बनाने के लिए मुंबई जलवायु कार्य योजना शुरू की गई है, विशेषज्ञ और आलोचक एमसीएपी और बीएमसी के बजट में अंतर और जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न बहुमुखी चुनौतियों का समाधान करने के लिए अधिक व्यापक और प्रभावी उपायों की आवश्यकता पर जोर देते हैं.