Maharashtra News: महाराष्ट्र में कुछ सेवानिवृत्त राज्य और केंद्र सरकार के अधिकारियों ने हाल ही में बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay High Court) का दरवाजा खटखटाया है. एक याचिका के जरिए इन लोगों ने मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे (Eknath Shinde) के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा नियुक्तियों और विकास से संबंधित पिछली उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) के नेतृत्व वाली महा विकास अघाड़ी (एमवीए) सरकार द्वारा पारित कई फैसलों और परियोजनाओं को रोकने या रद्द करने के फैसले को चुनौती दी गई है. किशोर गजभिये, रामहरी शिंदे, जगन्नाथ अभ्यंकर और किशोर मेधे नामक चार पेंशनभोगियों व सामाजिक कार्यकर्ता संजय लाखे पाटिल द्वारा दायर एक रिट याचिका में दावा किया गया है कि वर्तमान सरकार द्वारा अपने विभागों को पिछली सरकार की विभिन्न परियोजनाओं, योजनाओं और कार्यों पर रोक लगाने के लिए एक संचार जारी की गई है.
याचिका में किया गया है ये बड़ा दावा
फर्म तालेकर एंड एसोसिएट्स के माध्यम से दायर याचिका में दावा किया गया है कि शिंदे सरकार द्वारा जारी संबंधित संचार असंवैधानिक होने के साथ-साथ भारत के संविधान के अनुच्छेद 166 के तहत बनाए गए व्यापार नियमों के संचालन के खिलाफ थे क्योंकि विधिवत गठित मंत्रिपरिषद या मंत्रिमंडल की अनुपस्थिति में इसे जारी नहीं किया जा सकता था. याचिका में कहा गया है कि विवादित संचार में महाराष्ट्र राज्य अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति आयोग में याचिकाकर्ताओं की नियुक्ति को रद्द करना भी शामिल है. बकौल द इंडियन एक्सप्रेस, इसमें कहा गया है कि अनुसूचित जाति, जनजाति और पिछड़ा वर्ग के हित में योजनाओं पर रोक लगाने का वर्तमान सीएम का निर्णय "मनमाना, नासमझ और राजनीति से प्रेरित" था.
इसमें कहा गया है कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 164 (1 ए) के अनुसार, मंत्रिपरिषद का गठन करने के लिए 12 से कम मंत्री नहीं होंगे और वर्तमान मामले में, सीएम और डिप्टी सीएम सहित सिर्फ दो व्यक्ति हैं और अभी तककोई अन्य मंत्री नियुक्त नहीं किया गया है.
इस दिन याचिका पर सुनवाई कर सकती है अदालत
याचिका में कहा गया है कि "विधिवत गठित मंत्रिपरिषद की अनुपस्थिति में, सरकार को विकास परियोजनाओं पर रोक लगाने और नियुक्तियों को रद्द करने के ऐसे बड़े फैसले नहीं लेने चाहिए थे, खासकर जब ऐसे फैसले चल रहे थे और आंशिक रूप से लागू किए गए थे." याचिका में मांग की गई है कि विवादित संचार को रद्द कर दिया जाए और याचिका पर सुनवाई लंबित हो, उनके कार्यान्वयन पर रोक लगाई जाए. हाईकोर्ट बुधवार को याचिका पर सुनवाई कर सकता है.
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