Maharashtra Assembly Election Result 2024: महाराष्ट्र में सियासी हलचल के बीच ये साफ हो गया है कि महायुति की नई सरकार में अब बीजेपी से ही कोई मुख्यमंत्री होगा. जिस एक नाम की तलाश में दिल्ली से मुंबई तक के नेता माथापच्ची कर रहे थे, जिस एक नेता की वजह से प्रधानमंत्री मोदी से लेकर गृहमंत्री अमित शाह तक उलझे हुए थे, उसी ने खुद मीडिया के सामने आकर सारी उलझनें सुलझा दीं. वो नाम है एकनाथ शिंदे का, जिनके नेतृत्व में महायुति ने चुनाव में बंपर जीत दर्ज की. लेकिन जब बारी मुख्यमंत्री बनने की आई तो एकनाथ शिंदे ने बीजेपी के सामने सरेंडर कर दिया.
शिवसेना प्रमुख शिंदे ने साफ-साफ लफ्जों में कह दिया कि बीजेपी जिसे भी मुख्यमंत्री बनाएगी, मैं उसके साथ हूं. लेकिन क्या एकनाथ शिंदे के लिए ये बोलना इतना आसान था? अगर इतना ही आसान था तो फिर एकनाथ शिंदे ने इस बयान के लिए चार दिन का इंतजार क्यों किया? आखिर बीजेपी के सामने एकनाथ शिंदे के सरेंडर की असली कहानी क्या है? विस्तार से जानते हैं.
बीजेपी को सरकार बनाने के लिए 13 सीटें चाहिए थी
महाराष्ट्र में 23 नवंबर को जब चुनाव के नतीजे आ गए और तय हो गया कि 132 सीटों के साथ बीजेपी ही सबसे बड़ी पार्टी है तो उसके साथ ही ये भी तय हो गया था कि महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री तो बीजेपी का ही होगा. इसकी वजह सीटों का अंकगणित था, जिसमें बीजेपी को सरकार बनाने के लिए अपने किसी भी सहयोगी से महज 13 सीटें ही चाहिए थी.
अजित पवार ने फडणवीस के नाम का किया समर्थन
महायुति गठबंधन के हिस्सेदार अजित पवार इस बात को पहले ही भांप गए थे कि 41 सीटों के साथ वो मुख्यमंत्री पद का तो दावा नहीं ही कर सकते हैं, लिहाजा उन्होंने मुख्यमंत्री पद के लिए देवेंद्र फडणवीस के नाम का समर्थन कर दिया. अब अजित पवार के 41 विधायकों के समर्थन के साथ बीजेपी सरकार बनाने में सक्षम थी. फिर भी बीजेपी ने कोई जल्दबाजी नहीं दिखाई और एकनाथ शिंदे के अगले कदम का इंतजार किया.
एकनाथ शिंदे ने क्यों किया बीजेपी के सामने सरेंडर?
उधर, इंतजार एकनाथ शिंदे ने भी किया. उनके लोगों ने दावेदारी भी की. बीजेपी के नेताओं को पुराने बयानों का हवाला भी दिया. बार-बार कहा कि महायुति ने एकनाथ शिंदे के चेहरे पर चुनाव लड़ा है, लिहाजा मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को ही बनना चाहिए. लेकिन एकनाथ शिंदे को भी पता था कि उनकी ताकत उनके 57 ही विधायक हैं और इनके बल पर वो फिलहाल कुछ भी नहीं कर सकते हैं. लिहाजा उन्होंने बीजेपी के संख्या बल के सामने सरेंडर करना ही बेहतर समझा.
उन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस की और इसमें वो बार-बार अपने किए काम को गिनाते रहे. अपने कार्यकर्ताओं को धन्यवाद देते रहे. बार-बार पीएम मोदी और गृहमंत्री अमित शाह की तारीफ करते रहे और आखिरकार बोल ही पड़े कि वो मुख्यमंत्री पद की रेस में नहीं हैं और बीजेपी जिसे भी अपना मुख्यमंत्री बनाएगी, एकनाथ शिंदे उसे अपना समर्थन देंगे और सरकार बनाने में एकनाथ शिंदे और उनकी शिवसेना की तरफ से कोई अड़चन नहीं आएगी.
बीजेपी ने क्यों किया इंतजार?
अब यूं तो ये ऐलान बीजेपी खुद भी कर सकती थी, क्योंकि अजित पवार ने पहले ही देवेंद्र फडणवीस का समर्थन कर दिया था और अजित पवार के समर्थन के बाद बीजेपी को शिंदे की जरूरत भी नहीं थी. लेकिन अगर बीजेपी ये पहल करती तो फिर उसकी छवि खराब होने का डर था. क्योंकि बात फिर 2019 की होने लगती और कहा जाता कि बीजेपी ने जो काम उद्धव ठाकरे के साथ किया था वही काम अब बीजेपी एकनाथ शिंदे के साथ कर रही है. ऐसे में बीजेपी ने इंतजार किया, शिंदे को मनाने की कोशिश की और शिंदे मान भी गए.
बीजेपी के मुख्यमंत्री चेहरे के लिए मानना शिंदे की मजबूरी भी थी क्योंकि शिंदे को भी पता था कि उनके पास इतना संख्याबल नहीं है कि बीजेपी से बगावत कर वो सरकार बना सकें. बाकी अभी इसी चुनाव में मिली सीटों ने ही साबित किया है कि असली शिवसेना अब उद्धव ठाकरे की नहीं बल्कि शिंदे की है. शिंदे के सामने इस शिवसेना को जोड़े रखने की चुनौती है और बीजेपी से बगावत करके ये काम कभी हो नहीं सकता था.
उद्धव ठाकरे इसके सबसे बड़े उदाहरण हैं. लिहाजा शिंदे को पता था कि बगावत का मतलब 'माया मिली न राम' वाली बात हो जाएगी. इस चुनाव में शिंदे को ये बात समझ में आ गई थी कि एक रहेंगे तभी सेफ रहेंगे और खुद को सेफ रखने के लिए, अपनी पार्टी को सेफ रखने के लिए, अपने विधायकों को सेफ रखने के लिए शिंदे एक सेफ गेम खेल गए, जिसमें भले ही सत्ता उनके हाथ से चली गई हो लेकिन वो सत्ता के साथ तो हैं ही.
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