Maharashtra News: कांग्रेस की महाराष्ट्र इकाई के अध्यक्ष नाना पटोले ने मंगलवार को कहा कि उन्होंने पद से इस्तीफा देने की इच्छा व्यक्त की है और अब पार्टी आलाकमान इस पर फैसला करेगा. महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में पार्टी की अब तक की सबसे बुरी हार के बाद पार्टी सूत्रों ने पहले दावा किया था कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ने केंद्रीय नेतृत्व से संगठनात्मक पद की जिम्मेदारी से मुक्त करने का अनुरोध किया था. हालांकि, पटोले ने पिछले हफ्ते स्पष्ट किया था कि उन्होंने इस्तीफा नहीं दिया है और अफवाहें फैलाई जा रही हैं.
यह पूछे जाने पर कि क्या उन्होंने कांग्रेस के राज्य प्रमुख के पद से इस्तीफा दे दिया है, पटोले ने कहा, 'मैंने अपनी इच्छा व्यक्त की है. पार्टी आलाकमान इस पर फैसला करेगा.' बता दें कि महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में महा विकास अघाड़ी गठबंधन को बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा, जिसमें कांग्रेस भी शामिल है. कांग्रेस को चुनाव में सिर्फ 17 सीटों पर जीत मिली.
वन नेशन, वन इलेक्शन पर क्या बोले नाना पटोले?
इससे पहले नाना पटोले ने सोमवार को कहा था कि संसद में पेश बिल 'वन नेशन, वन इलेक्शन' का नहीं, बल्कि यह 'वन नेशन, नो इलेक्शन' का बिल है. ये लोग लोकतंत्र की व्यवस्था को खत्म करना चाहते हैं. हालांकि, हमारा राष्ट्रीय नेतृत्व इस बिल पर विस्तारपूर्वक चर्चा करेगा. उन्होंने कहा, “इस बिल के जरिए यह सरकार लोकतंत्र को खत्म करना चाहती है. देश को बर्बाद करना चाह रही है. अगर देश में केवल एक चुनाव होने की बात की जाती है, तो इसका मतलब होगा कि चुनावों की प्रक्रिया को केंद्रीकरण की ओर मोड़ा जा रहा है.
उन्होंने कहा कि यह लोकतंत्र के सिद्धांतों के खिलाफ है. एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में बार-बार चुनाव होते रहना आवश्यक है, क्योंकि यह देश की जनता को अपने प्रतिनिधि चुनने का अधिकार देता है.” उन्होंने कहा, “यह प्रस्ताव तभी संभव हो सकता था, जब चार राज्यों के चुनाव एक साथ होते, लेकिन जब सरकार चार राज्यों के चुनाव एक साथ नहीं करवा पा रही है और दो चरणों में चुनाव करवा रही है, तो ऐसे में यह सवाल उठता है कि सरकार इसे लागू कैसे करेगी.
पटोले ने कहा कि यह सब एक प्रकार का षड्यंत्र है, जिसका उद्देश्य लोकतांत्रिक संस्थाओं को कमजोर करना और संविधान की व्यवस्था को बदलना है.” उन्होंने कहा, “सरकार का यह कदम लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है, जहां जनता को अपने नेताओं को चुनने का अधिकार है. जो मशीनें चुनावों के लिए इस्तेमाल की जा रही हैं, उनका खर्च भी बहुत बढ़ चुका है और इन मशीनों को सही तरीके से इस्तेमाल करने में भी कई समस्याएं आ रही हैं. इससे साफ दिखता है कि सरकार इस बदलाव को लागू करने में असफल हो रही है.”