Saamana Editorial: मुखपत्र सामना में उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना (यूबीटी) ने कहा कि पटोले का 2021 में विधानसभा अध्यक्ष के रूप में जल्दबाजी में लिया गया निर्णय गठबंधन के बाद के पतन के मुख्य कारणों में से एक था. “एमवीए सरकार के गिरने या नीचे खींचने के पीछे कई कारण हो सकते हैं, लेकिन विधानसभा अध्यक्ष नाना पटोले का अपरिपक्व और जल्दबाजी में इस्तीफा मुख्य कारण था.


पटोले का फैसला समझदारी भरा नहीं था और उसके बाद से ही मुसीबतों का सिलसिला शुरू हो गया. गठबंधन सरकार में स्पीकर का पद महत्वपूर्ण होता है. अगर पटोले स्पीकर होते तो कई बाधाओं को दूर किया जा सकता था और दलबदलुओं को अयोग्य घोषित किया जा सकता था.


संपादकीय में बताया गया है कि पटोले के इस्तीफे के बाद, राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने अध्यक्ष पद के लिए चुनाव कराने की अनुमति नहीं दी. पटोले के इस्तीफे के बाद राज्यपाल द्वारा विधानसभा अध्यक्ष का चुनाव नहीं कराया गया था और इसका फायदा शिंदे गुट को मिला. “स्पीकर के पद से इस्तीफा देने का निर्णय अविवेकपूर्ण और अपरिपक्व था. पटोले बाद में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बने. लेकिन हमें इस बात से सहमत होना होगा कि उनके फैसले के कारण महाराष्ट्र का सुचारु संचालन स्थायी रूप से खतरे में पड़ गया था.”


संपादकीय में बालासाहेब थोराट की तारीफ
संपादकीय में बालासाहेब थोराट की भी प्रशंसा की गई, जिन्होंने हाल ही में पटोले के साथ मतभेदों का हवाला देते हुए कांग्रेस विधायक दल से इस्तीफा दे दिया था. कहा गया है कि, "थोराट महाराष्ट्र में एक वरिष्ठ और महत्वपूर्ण कांग्रेस नेता हैं. वह एक वफादार है. उनके शांत और धैर्यपूर्ण नेतृत्व ने कई संकटपूर्ण मौसमों में कांग्रेस के झंडे को ऊंचा रखा है."


इस हफ्ते की शुरुआत में, बालासाहेब थोराट ने कथित तौर पर पटोले द्वारा सत्यजीत ताम्बे प्रकरण से निपटने को लेकर कांग्रेस विधायक दल के नेता के रूप में इस्तीफा दे दिया था. उन्होंने कथित तौर पर पार्टी आलाकमान को पत्र लिखकर कहा कि "नाना पटोले के साथ काम करना मुश्किल है." अतीत में भी शिवसेना ने कांग्रेस को साधने के लिए सामना का इस्तेमाल किया है. 2020 में वापस, एक संपादकीय ने खुले तौर पर कहा कि शरद पवार को केंद्र में विपक्ष का नेतृत्व करना चाहिए. इसने कांग्रेस को राज्य में तीन दलों के गठबंधन में 'कमजोर कड़ी' भी कहा था.


कांग्रेस ने भी दिया जवाब
आलोचना पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए, राज्य कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता अतुल लोंधे ने कहा, “नाना पटोले ने जल्दबाजी में निर्णय नहीं लिया. इस्तीफा देने का फैसला तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की सलाह पर लिया गया था. उन्होंने आगे कहा कि शिवसेना को गठबंधन के मूल नियम पर टिके रहना चाहिए और सहयोगी के फैसले का सम्मान करना चाहिए. उन्होंने कहा, 'कांग्रेस पार्टी में निर्णय लेने की एक विशेष प्रक्रिया होती है और उसी के अनुसार निर्णय लिए जाते हैं.


पार्टी अध्यक्ष एक निर्णय लेता है कि पार्टी में हर कोई उसका सम्मान करता है और उसे लागू करता है. यह आरोप निराधार है कि नाना पटोले के इस्तीफे के बाद एमवीए सरकार के लिए संकटों का सिलसिला शुरू हो गया है. अगर और मगर की राजनीति में कोई कीमत नहीं है. यह पार्टी का आंतरिक मामला है.'


ये भी पढ़ें: Most Educated Cities: सबसे पढ़े-लिखे शहरों की सूची में चौथे नंबर पर मुंबई और आठवें पर अहमदाबाद, जानें- पहले पर कौन?