Maharashtra: महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की याचिका पर फैसला सुनाते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि निर्वाचन आयोग के उस आदेश में कोई ‘प्रक्रियात्मक त्रुटि नहीं’है, जिसमें शिवसेना में ‘‘विभाजन’’के बाद पार्टी के नाम और चुनाव चिह्न के इस्तेमाल पर रोक लगा दी गई थी. शनिवार को जारी आदेश में न्यायमूर्ति संजीव नरूला ने कहा कि आयोग ने उपचुनावों की घोषणा के मद्देनजर चुनाव चिह्न के आवंटन के संबंध में तत्कालिकता को देखते हुए इसके इस्तेमाल पर रोक लगाने का आदेश पारित किया.
अदालत ने कहा- याचिकाकर्ता न्याय के सिद्धांतों के उल्लंघन का आरोप नहीं लगा सकता
अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता जिसने बार-बार आवश्यक दस्तावेज प्रस्तुत करने में समय लिया. अब नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों के उल्लंघन का आरोप नहीं लगा सकता और निर्वाचन आयोग की आलोचना नहीं कर सकता. न्यायाधीश ने 15 नवंबर को निर्वाचन आयोग (ईसी) के अंतरिम आदेश के खिलाफ ठाकरे की याचिका को खारिज कर दिया था, और कहा था कि विस्तृत आदेश बाद में जारी किया जाएगा.
आदेश में कहा- मामले में की गई सारी कार्रवाई उसके अधिकार क्षेत्र में थी
अदालत ने अपने आदेश में कहा कि आयोग द्वारा चुनाव चिह्न के मामले में अपनाई गई कार्रवाई उसके अधिकार क्षेत्र के तहत थी. अदालत ने यह भी कहा कि राजनीतिक दलों के बीच विवादों के पुराने मामलों में भी आरक्षित चुनाव चिह्न के इस्तेमाल पर रोक लगाने का निर्देश देने वाले ऐसे ही अंतरिम आदेश पूर्व में भी पारित किए गए हैं. ‘‘इस प्रकार वर्तमान मामले में कुछ भी असामान्य या असाधारण नहीं है.’’
चुनाव आयोग को मामला सुलझाने का निर्देश
कोर्ट ने चुनाव आयोग को भी इस मामले को जल्द से जल्द सुलझाने का आदेश दिया है. शिवसेना का विवाद अभी थमा नहीं है. शिंदे गुट की बगावत के बाद दो धड़ों में बंटी शिवसेना को चुनाव आयोग ने फिलहाल के लिए नया नाम और नया चुनाव चिह्न आवंटित कर दिया है और पुराने नाम और चुनाव निशान को फ्रीज कर दिया था. लेकिन, उद्धव ठाकरे इससे खुश नहीं हुए. उद्धव ठाकरे को शिवसेना का पुराना वाला ही चुनाव निशान (धनुष और तीर) चाहिए, इसीलिए वे चुनाव आयोग के निर्णय के खिलाफ कोर्ट चले गए थे. हालांकि अब हाईकोर्ट से भी उन्हें झटका लगा है.