महाराष्ट्र में जब एमएनएस प्रमुख राज ठाकरे की रैली होती है तो बड़ी भीड़ जुटती है. मंच भव्य बनाया जाता है. उनके बोलने के अंदाज में शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे की छवि लोगों को दिखती है. उनकी राजनीति के केंद्र में 'हिंदुत्व' और 'मराठी मानुष' का मुद्दा ही रहता है. 


इस बार बेटे को मैदान में उतारा


इस बार राज ठाकरे ने अपने बेटे अमित ठाकरे को चुनावी मैदान में उतारा है. माहिम सीट से उन्हें टिकट दिया गया है. इस इलाके उनके चचेरे भाई उद्धव ठाकरे की पकड़ मानी जाती है. 


राज ठाकरे के लिए महाराष्ट्र विधानसभा का चुनाव फायदे का सौदा नहीं रहा है. पिछले दो विधानसभा चुनावों में उनकी पार्टी को महज एक-एक ही सीट मिली थी. 


लोकसभ चुनाव में पीएम मोदी का किया समर्थन


बीते लोकसभा चुनाव में उन्होंने पीएम नरेंद्र मोदी को बिना शर्त समर्थन दिया था. इसकी खूब चर्चा भी हुई. क्योंकि एक समय में वो मोदी के सबसे बड़े आलोचक थे. लेकिन लोकसभा चुनावों में उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि अगर पीएम पद के लिए सबसे योग्य कोई है तो वो मोदी ही हैं. यानि वो अपना रुख भी बदलते रहे हैं. 


बीजेपी की सहयोगी शिवसेना ने भी उनके फैसले का स्वागत किया. माना गया कि विधानसभा चुनावों में राज ठाकरे एनडीए में शामिल हो सकते हैं. लेकिन उन्होंने अकेले लड़ने का फैसला किया. 


राज ठाकरे ने दिल्ली में अमित शाह से भी मुलाकात की थी. कई बार वो सीएम एकनाथ शिंदे से भी मिल चुके हैं. लेकिन एनडीए में वो शामिल नहीं हुए और अकेले ही मैदान में उतरने का फैसला किया.


2014 और 2019 में एक-एक सीट पर मिली जीत


चुनाव आयोग के मुताबिक, महाराष्ट्र की 288 विधनसभा सीटों में से 2019 के विधानसभा चुनावों में राज ठाकरे की पार्टी ने महाराष्ट्र की 101 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे. लेकिन महज एक सीट पर ही पार्टी को जीत हासिल हुई. एमएनएस को 2.25 फीसदी वोट ही मिले. 2014 में एमएनस ने 219 सीटों पर उम्मीदवार दिए थे. लेकिन उसमें भी एक ही सीट पर पार्टी जीतने में कामयाब हो पाई थी. उस चुनाव में पार्टी को 3.15 फीसदी वोट मिले थे. 


पहले चुनाव में जीती 13 सीटें


2009 का चुनाव राज ठाकरे के लिए फायदेमंद साबित हुआ था. पार्टी दहाई का आंकड़ा पार करने में कामयाब हुई और 13 सीटों पर उनके उम्मीदवार जीते. 143 सीटों पर राज ठाकरे ने उम्मीदवार उतारे थे और पार्टी को 5.71 फीसदी वोट हासिल हुए थे.


2006 में बनाई अलग पार्टी


साल 2006 में शिवसेना से अलग होकर ठाकरे ने एमएनएस का गठन किया था. जब बाल ठाकरे ने बेटे उद्धव ठाकरे को अपना सियासी वारिस चुनाव तो राज ठाकरे अलग हो गए. 


राज ठाकरे के सामने क्या हैं चुनौती?


किसी चुनाव को जीतने के लिए मजबूत संगठन की जरूरत होती है. दूसरे दलों के मुकाबले महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना का संगठन कमजोर पड़ जाता है. चुनावी राजनीति में गठबंधन की भूमिका अहम हो जाती है. लेकिन राज ठाकरे ने खुद को इससे दूर ही रखा है.


दूसरी बात उनकी छवि को लेकर भी है. बीजेपी से उनके गठबंधन की चर्चा अक्सर चुनावी माहौल में होती है. लेकिन बीजेपी हर कदम फूंक फूंककर रखती है. उत्तर भारतीयों को लेकर महाराष्ट्र नवनिर्माण के रुख लेकर कोई भी दल उनसे गठबंधन करने से पहले सोचने पर मजबूर हो जाता है.


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