Mumbai News: महाराष्ट्र के आदिवासी जिलों में बाल विवाह की कुप्रथा के जोर पकड़ने को लेकर बॉम्बे हाईकोर्ट ने चिंता जाहिर की है. पिछले 3 सालों में महाराष्ट्र के आदिवासी जिलों में 15,000 से ज्यादा बाल विवाह हुए हैं. इसपर चिंता जताते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट ने सोमवार को कहा कि राज्य सरकार को बालिकाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए आदिवासी समुदाय को संवेदनशील बनाना चाहिए.


18 साल से क्रम उम्र की लड़कियों की हुई शादी


दरअसल 14 मार्च को प्रदेश में बाल विवाह के मामलों की स्थिति का पता करने के लिए सर्वेक्षण का निर्देश दिया था. इसके लिए आदिवासियों की एक बड़ी आबादी वाले जिले में सर्वे की चौंकाने वाली रिपोर्ट सामने आई थी. महाधिवक्ता आशुतोष कुंभकोनी ने तीन सदस्यीय समिति की एक रिपोर्ट पेश की जिसने निष्कर्ष निकाला कि, लड़कियों का बाल विवाह आदिवासी समुदाय में कुपोषण और बच्चों की मृत्यु के महत्वपूर्ण कारणों में से एक है. रिपोर्ट में 18 साल से कम उम्र की लड़कियों का ब्योरा दिया गया था. जिनकी शादी हुई थी और जिन्होंने नाबालिग होते हुए ही बच्चे को भी जन्म दिया था.


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बल प्रयोग करने का कोई फायदा नहीं


रिपोर्ट में बताया गया है कि पिछले तीन वर्षों के दौरान 15 हजार से ज्यादा बाल विवाह हुए हैं. वहीं 1500 से ज्यादा मामलों में ऐसी शादियां प्रशासन ने रोक दी थीं. रिपोर्ट में कहा गया है कि जैसे ही ऐसी शादियों के बारे में भनक मिलती है प्रशासन मौके पर पहुंचकर शादियों को रोककर उचित कदम उठाता है. वहीं इस मामले में चीफ जस्टिस ने पूछा कि क्या आदिवासी बाल विवाह की समस्या के समाधान को लेकर आपका क्या प्रस्ताव है. इसके जवाब में एडवोकेट जनरल ने कहा कि ऐसे मामलों में बल प्रयोग करने का कोई फायदा नहीं होगा, इन्हें समझाने की जरूरत है. इसके लिए गैर सरकारी संगठनों और बाकी जागरूकता माध्यमों के इस्तेमाल की जरूरत है.


इस दौरान कोर्ट ने कहा कि आदिवासियों के अपने रीति-रिवाज और रस्में हैं. आदिवासी समाज को भी अपनी बच्चियों की रक्षा के लिए काम करना चाहिए. साथ ही बाल अधिकारों की रक्षा को लेकर कदम उठाना शासन का काम है. बाल विवाह के बढ़ते हुए मामलों को देखते हुए साफ है कि जागरूकता कितनी जरूरी है.


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