Maharashtra News: महाराष्ट्र के विधायक ने की दल बदल कानून समाप्त करने की मांग, बताई ये वजह
Maharashtra के एक निर्दलीय विधायक ने दल बदल रोधी कानून को समाप्त करने की मांग की है. उन्होंने विधानसभा में कहा, “दल बदल रोधी कानून को तत्काल समाप्त कर देना चाहिए."
Maharashtra News: महाराष्ट्र के पूर्व मंत्री और निर्दलीय विधायक बच्चू काडु (Bachchu Kadu) ने गुरुवार को कहा कि दल बदल रोधी कानून को समाप्त कर देना चाहिए क्योंकि इसके कारण विधायक, जन विरोधी निर्णय लेने वाली पार्टियों का विरोध नहीं कर पाते. उन्होंने विधानसभा में कहा, “दल बदल रोधी कानून को तत्काल समाप्त कर देना चाहिए. अगर मेरी पार्टी मेरे क्षेत्र के विरोध में काम करे तो मैं उसकी नीतियों के विरोध में बोल भी नहीं सकता. ऐसी व्यवस्था क्यों है? क्या हम उन लोगों के प्रति उत्तरदायी नहीं हैं जिन्होंने हमें वोट दिया है?”
पूर्व मंत्री ने राज्य में बाढ़ से प्रभावित किसानों की समस्या पर विपक्ष की ओर से पेश एक प्रस्ताव पर चर्चा में भाग लेते हुए यह बयान दिया. वह पहले उद्धव ठाकरे नीत एमवीए सरकार में मंत्री थे और शिंदे गुट द्वारा बगावत करने के बाद से उन्हें वर्तमान नेतृत्व का समर्थक माना जा रहा है.
दल-विरोध कानून क्या है?
दल-विरोध कानून में सांसदों और विधायकों के द्वारा एक पार्टी छोड़कर दूसरे पार्टी में शामिल होने पर दंडित करने का प्रावधान है. संसद ने इसे साल 1985 में दसवीं अनुसूची के रूप में संविधान में शामिल किया. इसका उद्देश्य विधायकों द्वारा बार-बार बदलते पार्टियों से हतोत्साहित करके सरकार को स्थिरता में लाना था. साल 1967 के आम चुनाव के बाद विधायकों ने दल-बदल करके कई राज्य सरकारों को सत्ता से बाहर किया था.
दल-बदल कब होता है?
कानून के तहत तीन स्थितियों से सांसद और विधायक दल-बदल करते हैं. पहला वह स्वेच्छा से अपनी पार्टी की सदस्यता छोड़ दे. दूसरा तब जब एक सांसद और विधायक निर्दलीय रूप से निर्वाचित हुए है और बाद में किसी पार्टी में शामिल हो जाते हैं. तीसरा तब जब विधायक या सांसद ममोनित होता है और वह 6 महीने के भीतर किसी राजनीतिक दल का दामन थाम ले. इन तीनों में किसी भी परिदृश्य में कानून का उल्लंघन होने पर दलबदल करने वाले विधायक या सांसद को दंडित किया जाता है. ऐसे मामलों में सदन के अध्यक्ष के पास सदस्यों को अयोग्य करार देने की शक्ति होती है. हालांकि सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक सांसद या विधायक अपने फैसले को उच्च न्यायालय में चुनौती दे सकते हैं.