Mumbai News: 2 मई को मुंबई के भायखला में स्थित डॉ भाऊ दाजी लाड संग्रहालय को बने पूरे 150 साल हो जाएंगे. मुंबई के सबसे पुराने इस म्यूजियम को लगभग 100 वर्षों तक (आजादी से पहले) विक्टोरिया एंड अलबर्ट म्यूजियम के नाम से जाना जाता रहा, लेकिन साल 1975 में इसका नाम बदलकर मुंबई के पहले मेडिकल ग्रेजुएट, शहर के पहले भारतीय शेरिफ और संग्रहालय समिति के संयुक्त सचिव भाऊ दाजी लाड के नाम पर रख दिया गया. इस म्यूजियम की आधारशिला 1862 में  बॉम्बे के गवर्नर सर हेनरी बार्टले फ्रेरे ने रखी थी.


म्यूजियम की 150वीं वर्षगांठ पर आयोजित किये जाएंगे कार्यक्रम


म्यूजियम के 150 साल पूरे होने के अवसर पर इस सप्ताह म्यूजियम के परिसर में विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे. यह संग्रहालय वीरमाता जिजाबाई भोसले उद्यान के अंदर स्थित है, जिसे भायखला का चिड़िया घर भी कहा जाता है. भायखला पूर्व के आसपास स्थित यह संग्रहालय मूल रूप से सजावटी और औद्योगिक कलाओं के खजाने के रूप में यह स्थापित किया गया था.


मुंबई के खूबसूरत इतिहास को समेटे हुए है यह संग्रहालय


यह खूबसूरत संग्रहालय भारत की कई हस्तशिल्प को प्रदर्शित करता है. यह संग्रहालय कला, शिल्प के साथ-साथ मुंबई के इतिहास को भी समेटे हुए है. वैसे तो संग्रहालय देखने के लिए आप किसी भी समय आ सकते हैं लेकिन अक्टूबर के बाद का समय संग्रालय देखने के लिए सबसे उचित है, क्योंकि उस समय गर्मी थोड़ी कम हो जाती है.


संग्रहालय को मिल चुका है यह सर्वोच्च पुरस्कार


संग्रहालय के निदेशक तसनीम जकारिया मेहता ने कहा कि मई के मध्य में वे एक किताब के विमोचन के साथ वर्षगांठ मनाएंगे जिस पर वे पांच साल से काम कर रहे हैं. मुंबई-ए थ्रू ऑब्जेक्ट्स शीर्षक नाम की इस पुस्तक को म्यूजियम और  हार्पर कॉलिंस द्वारा प्रकाशित किया गया है. जकारिया मेहता ने कहा कि यह पुस्तक  संग्रहालय के संग्रह में 101 वस्तुओं के चयन के माध्यम से मुंबई के इतिहास, संग्रहालय के विकास और उनके परस्पर संबंधों पर आधारित है. इस म्यूजियम को साल 2005 में यूनेस्को एसिया पैसिफिक हेरिटेज कंजर्वेशन अवॉर्ड ऑफ एक्सीलेंस भी मिल चुका है जो  इस क्षेत्र का सर्वोच्च अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार है.


कौन थे भाऊ दाजी लाड
भाऊ दाजी लाड का असली नाम राम कृष्ण लाड था और वह गोवा के रहने वाले थे. 1822 में एक बेहद गरीब परिवार में जन्में लाड 1832 में बॉम्बे चले आए, जहां बॉम्बे के गवर्नर ने उनकी प्रतिभा को एक शतरंज टूर्नामेंट में पहचाना.इसके बाद उनका दाखिला मुंबई के एक प्रसिद्ध मेडिकल कॉलेज में करा दिया गया, जहां से उन्होंने मेडिकल की पढ़ाई की और प्रसिद्ध  चिकित्सक और सर्जन बने.  भारत व दुनिया को कुष्ठ रोग का इलाज देना  उनकी सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक रहा.


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