महाराष्ट्र के नांदेड़ और संभाजीनगर के अस्पताल में हुई मौतों पर शिवसेना उद्धव बाला साहेब गुट ने राज्य सरकार पर बड़ा जुबानी हमला बोला है. शिवसेना यूबीटी के मुखपत्र सामना में नांदेड़ घटना को लेकर सरकार पर सवाल किए गए हैं.
सामना की संपादकीय में लिखा गया है- महाराष्ट्र में सरकार नाम की चीज शेष रह गई है क्या, यह सवाल उपस्थित हो, ऐसा मृत्युकांड महाराष्ट्र में बारंबार हो रहा है. दवाइयों की कमी के कारण राज्य के सरकारी अस्पतालों में मरीजों की मौत का सिलसिला जारी है. महीनेभर पहले ठाणे में और अब नांदेड़ व छत्रपति संभाजीनगर में कांड हुआ वह अति वेदनादायी और आक्रोशित करनेवाला है.
शिवसेना के मुखपत्र में कहा गया- महाराष्ट्र की गर्दन आज शर्म से झुक गई है. महाराष्ट्र निचोड़ लेनेवाले सत्तापिपासु घातियों के निर्लज्ज कार्यभार के कारण जिस तरह से कीड़े-मकोड़े मरते हैं, उसी तरह सरकारी अस्पतालों में मौत का तांडव शुरू है. महीनेभर पहले ठाणे के कलवा में छत्रपति शिवाजी महाराज अस्पताल में एक रात में 18 मरीजों की अचानक मौत हो गई. इस घटना की जांच भी नहीं हुई कि पिछले दो दिनों में मराठवाड़ा में 53 मरीजों की सरकारी अस्पताल में बलि चढ़ गई. हां, यह बलि ही है! इसे प्राकृतिक मौत नहीं कहा जा सकता है.
सामना में लिखा गया- नांदेड़ के शंकरराव चव्हाण वैद्यकीय महाविद्यालय के सरकारी अस्पताल में तो 2 दिनों में 35 मरीजों की तड़पकर मौत हो गई. इन 35 में से 16 बलि तो नवजातों की हुई है. सोमवार को 24 लोगों की मौत होने के बाद, उसके अगले ही दिन नांदेड़ अस्पताल में अन्य 19 लोगों की और छत्रपति संभाजीनगर के सरकारी अस्पताल में भी मंगलवार को 18 लोगों की बलि चढ़ गई. नांदेड़ में तो जिन बच्चों ने अभी दुनिया भी नहीं देखी थी, ऐसे 16 नन्हें नवजातों को सुध आने से पहले ही इस दुनिया से विदा होना पड़ा. इन मौतों का जिम्मेदार कौन है?
मुखपत्र में लिखा गया- राज्य की स्वास्थ्य यंत्रणा को रामभरोसे छोड़कर 24 घंटे मलाई के पीछे भागनेवाली राज्य की असंवैधानिक सरकार को इसका जवाब देना ही होगा. सरकारी अस्पतालों में मरीजों की मौत की संख्या बढ़ती ही जा रही है. ठाणे की यह घटना सामने आने के बावजूद सरकार सोती रही. सरकारी अस्पतालों की स्वास्थ्य सेवा और जीवनरक्षक औषधियों की उपलब्धता के प्रति सरकार ने जो अनदेखी की है, वह केवल गंभीर ही नहीं, बल्कि आपराधिक स्वरूप की है.
शिवसेना के मुखपत्र में दावा किया गया कि महाराष्ट्र जैसे विशाल राज्य के अस्पतालों की दवाइयों की खरीदी भी उतनी ही ‘विशाल’ है. इस विशाल दवाई खरीदी में कोई लेन-देन या इसके पीछे छिपी हुई हिस्सेदारी का ‘अर्थशास्त्र’ तो इस मरीज कांड के लिए जिम्मेदार नहीं है न? इसके लिए अब एकाध ‘ईडी’ जांच इस सरकार के पीछे की ‘महाशक्ति’ करानेवाली है क्या? दवाइयों की कमी क्यों हुई? यदि कमी नहीं थी तो अचानक एक ही रात में इतनी मौतें कैसे हुई? इस सरकार में थोड़ी सी भी इंसानियत और जनभावना के प्रति शर्म बची होगी तो राज्य के स्वास्थ्य मंत्री का ताबड़तोब इस्तीफा लेना चाहिए. घातियों के पास इतनी भी नैतिकता बची है क्या?