Maharashtra News: महाराष्ट्र में डाक विभाग ने राज्य की आठ प्राचीन बावड़ियों पर विशेष पोस्टकार्ड किये जारी, देखें तस्वीरें
Maharashtra Postal Department: इन पोस्टकार्ड में मराठवाड़ा क्षेत्र की चार और अन्य चार बावड़ियां सतारा, नासिक में गिरनारे, पुणे में मंचर और अमरावती में महिमापुर की हैं.
Postcard on ancient stepwells: डाक विभाग के महाराष्ट्र सर्किल ने राज्य की आठ प्राचीन बावड़ियों पर विशेष पोस्टकार्ड जारी किये हैं. इनमें मराठवाड़ा क्षेत्र की चार बावड़ियां भी शामिल हैं. बावड़ियां में भूजल स्तर तक नीचे जाने के लिए भूमिगत सीढ़ियां होती हैं. सजावटी और शिल्पविद्या विशेषताओं वाली ये संरचनाएं पूरे भारत में, विशेष तौर पर शुष्क क्षेत्रों में लोकप्रिय थीं.
महाराष्ट्र के डाक विभाग ने पोस्टकार्ड प्रकाशित किये
एक आधिकारिक विज्ञप्ति में कहा गया, ‘‘महाराष्ट्र के डाक विभाग ने पोस्टकार्ड प्रकाशित किये हैं, जिसमें राज्य की आठ बावड़ियों की तस्वीरें हैं. इसमें परभणी जिले के वालूर में स्थित बावड़ी के साथ-साथ उसी जिले के आर्वी, पिंगली और चारथाना की बावड़ियां भी शामिल हैं.’’ इसमें कहा गया कि अन्य चार बावड़ियां सतारा, नासिक में गिरनारे, पुणे में मंचर और अमरावती में महिमापुर की हैं. महाराष्ट्र सर्किल के मुख्य महाडाकपाल केके शर्मा, महा डाकपाल अमिताभ सिंह की मौजूदगी में 10 अक्टूबर को राष्ट्रीय डाक दिवस के अवसर पर ये पोस्टकार्ड जारी किये गये.
क्या है उद्देश?
ये पोस्टकार्ड 10 अक्टूबर को मनाए गए राष्ट्रीय डाक दिवस के अवसर पर महाराष्ट्र सर्कल के मुख्य पोस्टमास्टर जनरल केके शर्मा और पोस्टमास्टर जनरल अमिताभ सिंह की उपस्थिति में जारी किए गए. डाक विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, "महाराष्ट्र में कई बावड़ियाँ हैं जिनका निर्माण अलग-अलग डिज़ाइनों से किया गया है. बावड़ियों पर पोस्टकार्ड का एक सेट जारी करना एक ऐसा कदम है जिसका उद्देश्य लोगों को इन विरासत स्थलों का दौरा कराने के लिए उन पर प्रकाश डालना है."
बावड़ियों पर एक सूचना विवरणिका भी जारी
उन्होंने कहा, "हमने इन बावड़ियों पर एक सूचना विवरणिका भी जारी की है ताकि लोग इनके बारे में अधिक जान सकें." इस कदम के बारे में पीटीआई से बात करते हुए, रोहन काले, जिन्होंने पूरे महाराष्ट्र में लगभग 2,000 बावड़ियों का मानचित्रण किया है, ने कहा, "हमारे पास बावड़ियों का खजाना है जो राज्य की विरासत में मूक योगदानकर्ता हैं.
उनमें से कई का निर्माण चालुक्य और यादव राजवंशों के दौरान किया गया था. विभिन्न संस्थानों द्वारा बनाई गई इन बावड़ियों के वास्तुशिल्प डिजाइन भी प्रकाशित किए गए हैं.''