Irshalwadi landslide: महाराष्ट्र में रायगढ़ क्षेत्र के इरशालवाड़ी गांव में भूस्खलन की चपेट में आने के दो माह बाद भी ग्रामीण दहशत के साये में जी रहे हैं. पहाड़ी ढलान पर अटके पड़े एक बड़े चट्टान को देखकर प्रत्येक दिन उन्हें इसके नीचे गिरने और इससे सभी लोगों के मारे जाने का डर सता रहा है. लगातार बारिश के कारण इरशालवाड़ी गांव के पास 19 जुलाई की रात हुए भूस्खलन में 84 लोगों की मौत हो गई थी.
क्या जलवायु परिवर्तन है कारण?
अस्थायी कंटेनर वाले घरों और आसपास के अन्य गांवों में रह रहे इरशालवाड़ी के निवासियों के जहन में इसकी यादें अब भी ताजा हैं. विशेषज्ञों और इलाके में लंबे समय से रह रहे लोगों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन के कारण यह क्षेत्र मौसमी घटनाओं की दहलीज पर आ गया है. यही कारण है कि पहाड़ियां दिन-ब-दिन और खतरनाक होती जा रही हैं. भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (जीएसआई), पुणे के निदेशक प्रकाश गजभिये के अनुसार, बारिश लगभग समान मात्रा में हो रही है, लेकिन इसकी अवधि घट गई है जिससे बारिश की तीव्रता बढ़ गई है.
ऐसे में बढ़ जाती है भूस्खलन की घटनाएं
उन्होंने कहा, ‘‘जब कम समय में भारी बारिश होती है तो मिट्टी और चट्टानों में नमी आने से भूस्खलन होता है. वनों की कटाई, सड़कों, घरों और कृषि क्षेत्रों के निर्माण के लिए पहाड़ी ढलानों को काटने और जल निकासी के प्राकृतिक मार्ग में बदलाव लाने जैसी गतिविधियों के कारण भूस्खलन की घटनाएं बढ़ गई हैं.’’
विशेषज्ञों ने व्यापक रुझानों का विश्लेषण किया है. वहीं, पहाड़ी जिले रायगढ़ के ग्रामीण आज अनिश्चितता का सामना कर रहे हैं और कल के बारे में अनजान हैं. इरशादगढ़ किले के पास एक कंटेनर में रह रहीं मनीषा यशवंत डोरे के अस्थायी घर में कई सुविधाएं हैं. इसमें दो पंखे, रसोई गैस और पानी की सुविधा है. डोरे ने 19 जुलाई को हुए भूस्खलन में अपनी 18 वर्षीय बेटी सहित परिवार के सात सदस्यों को खो दिया था.
2005 से 2021 तक इतने लोगों की हो चुकी है मौत
उन्होंने कहा, ‘‘इरशालवाडी, सड़क से एक घंटे की कठिन चढ़ाई पर है, लेकिन जब हम वहां रहते थे तो जीवन अच्छा था. हमें पंखों की जरूरत नहीं थी, हम अपने कुएं से पानी निकालते और अपनी उपजाई हुई सब्जियां खाते थे.’’ इरशालवाडी भूस्खलन में दफन होने वाला एकमात्र गांव नहीं है. इससे पहले, 2021 में रायगढ़ के तैली गांव में भूस्खलन से 87 लोगों की मौत हो गई थी. रायगढ़ जिलाधिकारी कार्यालय के अनुसार, 2005 से 2021 तक प्रतिकूल मौसम से जुड़ी घटनाओं में लगभग 350 लोगों की जान जा चुकी है.