Shiv Sena MLAs Case: शिवसेना विधायकों की अयोग्यता मामले में उद्धव गुट के नेता से क्या-क्या सवाल-जवाब किया गया? जानिए
Shiv Sena MLAs Disqualification: शिवसेना विधायकों की अयोग्यता मामले में कल सुनील प्रभु (यूबीटी नेता) से सवाल-जवाब किया गया. अनिल परब ने कहा कि बुधवार को भी यह सवाल-जवाब जारी रहेगा.
Maharashtra MLAs Disqualification: शिवसेना (यूबीटी) के नेता और पार्टी के मुख्य सचेतक सुनील प्रभु से अविभाजित शिवसेना के विधायकों को अयोग्य ठहराने से संबंधित एक मामले में मंगलवार को सवाल-जवाब किया गया. प्रभु से मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की अगुवाई वाली शिवसेना का प्रतिनिधित्व कर रहे वकीलों ने सवाल-जवाब किया. यहां राज्य विधानमंडल में सुनवाई के बाद संवाददाताओं से बातचीत करते हुए शिवसेना (यूबीटी) के विधान परिषद सदस्य अनिल परब ने कहा कि बुधवार को भी यह सवाल-जवाब जारी रहेगा.
क्या बोले अनिल परब?
परब ने कहा, ‘‘आज सुनील प्रभु से जिरह की गयी. उन्होंने सभी सवालों के उपयुक्त जवाब दिये.’’प्रभु ने मांग की थी कि उनका बयान मराठी में दर्ज किया जाए. उन्होंने एक आधिकारिक अनुवादक भी मांगा था जो उनके बयान को रिकार्ड कर सके. उससे पहले उन्होंने आरोप लगाया था कि यह काम सही-सही नहीं किया जा रहा है.परब ने कहा, ‘‘ हमने महसूस किया कि कई सवालों की जरूरत ही नहीं थी और यह देरी करने की तरकीब है. उन्हें 31 दिसंबर तक फैसला देना है. ऐसी संभावना है कि वे और समय मांग सकते हैं लेकिन हम वह देना नहीं चाहते.’’
उच्चतम न्यायालय ने पिछले माह महाराष्ट्र विधानसभा के अध्यक्ष राहुल नार्वेकर को बागी शिवसेना विधायकों को अयोग्य ठहराये जाने के संबंध में 31 दिसंबर तक फैसला देने का निर्देश दिया था.शीर्ष अदालत ने मुख्यमंत्री शिंदे और उनके समर्थक विधायकों को अयोग्य ठहराने की मांग संबंधी उद्धव ठाकरे धड़े की अर्जियों पर निर्णय लेने में देरी को लेकर को विधानसभा अध्यक्ष को आड़े हाथ लिया था.
शीर्ष अदालत ने कहा था कि विधानसभा अध्यक्ष उसके आदेशों को निष्फल नहीं कर सकते. ऐसे ही आवेदन शिंदे धड़े के विधायकों ने भी ठाकरे गुट के विधायकों के खिलाफ दाखिल करवाये थे.अठारह सितंबर को शीर्ष अदालत ने विधानसभा अध्यक्ष को शिंदे और उनके समर्थक विधायकों को अयोग्य ठहराने संबंधी आवेदनों पर निर्णय लेने के वास्ते समय सीमा बताने को कहा था.
शिंदे धड़े ने जून 2022 में नयी सरकार बनाने के लिए भाजपा के साथ हाथ मिला लिया था.ठाकरे गुट ने शीर्ष अदालत पहुंचकर अनुरोध किया था कि वह विधानसभा अध्यक्ष को समयबद्ध तरीके से याचिकाओं पर निर्णय लेने का निर्देश दे. शिंदे के नेतृत्व में विधायकों द्वारा बगावत करने और सरकार बनाने के लिए भाजपा के साथ हाथ मिलाने के बाद शिवसेना में विभाजन हो गया था.