Maharashtra HSC Result 2022: भिवंडी की आदिवासी बस्ती के दो छात्रों ने रचा इतिहास, पहली बार गांव में किसी ने पास की 12वीं की परीक्षा
Maharashtra News: गांव से कॉलेजों के दूर होने की वजह से अधिकांश छात्र 7वीं कक्षा के बाद ही स्कूल छोड़ देते हैं. यह पहली बार है जब गांव के दो छात्रों ने 12वीं की परीक्षा पास की है.
Maharashtra HSC Result: ग्रामीण ठाणे के जिले के आदिवासी गांव पिसेपाड़ा के दो हायर सेकेंडरी सर्टिफिकेट (एचएससी) छात्रों ने इतिहास रच दिया है और अब वे अन्य छात्रों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गए हैं. अविनाश वाघे और दीपाली कटकरी अपने गांव के उन छात्रों के पहले बैच से हैं जिन्होंने कक्षा 7 के बाद अपनी पढ़ाई जारी रखी और अब कक्षा 12 की परीक्षा पास की. विभिन्न सामाजिक-आर्थिक बाधाओं को पार करते हुए अविनाश(आर्ट स्ट्रीम) और दीपाली (कॉमर्स स्ट्रीम) में क्रमश: 46.5 प्रतिशत और 41.5 प्रतिशत अंक प्राप्त किए हैं.
इस वजह से पढ़ाई छोड़ देते हैं गांव के छात्र
दरअसल हायर सेकेंडरी स्कूल और जूनियर कॉलेजों से घटिया कनेक्टिविटी के कारण पिसेपाड़ा गांव के अधिकांश छात्र कक्षा 7 के बाद स्कूल छोड़ देते हैं. छात्र कक्षा 7 तक जिला परिषद के स्कूल में पढ़ते हैं, लेकिन उनके लिए हायर सेकेंडरी और जूनियर कॉलेज में जाना चुनौतीपूर्ण होता है, जो उनकी बस्ती से 8 किमी दूर पड़घा गांव में स्थित है.
खेल में करियर बनाना चाहते हैं अविनाश
12वीं की परीक्षा पास करने वाले अविनाश वाघे ने कहा कि उनका सपना खेलों में करियर बनाने का है. उन्होंने कहा कि मुझे अभी एक लंबा रास्ता तय करना है. मैंने अभी तक यह फैसला नहीं किया है कि मुझे ग्रेजुएशन में क्या कोर्स लेना है. उन्होंने कहा कि मैं एक एनजीओ की वित्तीय मदद से क्रिकेट सीखने के लिए एक स्पोर्ट्स क्लब में शामिल होने की भी योजना बना रहा हूं.
रंग लाई मेरी मेहनत
अविनाश ने कहा कि 8 किमी पैदल चलकर क्लास अटैंड करने की मेरी मेहनत रंग लाई. उन्होंने कहा कि कोरोना के दौरान खराब इंटरनेट कनेक्शन और बिजली कटौती के कारण ऑनलाइन स्टडी कर पाना एक चुनौती थी. महामारी के दौरान मैंने धान के खेतों में अपने माता-पिता की भी मदद की थी.
रजनी फाउंडेशन इंडिया कर रहा बच्चों की पढ़ाई में मदद
राजनीतिक विज्ञान के शिक्षक और रजनी फाउंडेशन इंडिया के संस्थापक अनिकेत साल्वी ने कहा कि कनेक्टिविटी, फीस और किराये के कारण इन आदिवासी गांवों के छात्र कक्षा 7 के बाद स्कूलों छोड़ देते हैं और अपने परिवार की आर्थिक मदद करना ज्यादा उचित समझते हैं. उन्होंने कहा कि हमने सात वर्षों के लिए इन गांवों के छात्रों की आर्थिक जरूरतों को पूरा करने के लिए गोद लिया है जैसे उनकी फीस भरना, उनके परिवहन का खर्च उठाना और उन्हें स्टेशनरी प्रदान करना आदि, ताकि वे अपनी शिक्षा पूरी कर सकें. हमारे स्वयंसेवक हर सप्ताह के अंत में सभी आयु वर्ग के छात्रों को पढ़ाने के लिए इन गांवों का दौरा करते हैं.
परिवहन बच्चों की शिक्षा में बड़ी बाधा
उन्होंने कहा कि परिवहन इन लोगों की शिक्षा में सबसे बड़ी बाधा है. 18 साल की दीपाली कटकरी कहती हैं कि गांव से कॉलेज तक जाने वाली कोई भी सार्वजनिक बस सेवा नहीं है. मेरे पिताजी ही मुझे आम तौर पर रोज स्कूल छोड़ते हैं ताकि मैं अपन पढ़ाई जारी रख सकूं. दीपाली ने महामारी के दौरान एक एनजीओ की मदद से कम्प्यूटर क्लास जॉइन की थी. दीपाली अब उसी कक्षा में पढ़ाती हैं और प्रतिमाह लगभग 2 हजार रुपए तक कमा लेती हैं. दीपाली ने कहा कि इससे मेरे परिवार की आर्थिक मदद भी हो जाती है. इस गांव के 50 से अधिक छात्रों की पढ़ाई में योगदान देने वाले मुंबई निवासी रूपेश घोसालकर ने कहा कि हमें यह देखकर खुशी हो रही है कि इन छात्रों ने बोर्ड की परीक्षा पास की है और अन्य छात्रों के लिए एक मिसाल कायम की है. यह अन्य छात्रों को अपनी पढ़ाई जारी रखने के लिए प्रेरित करेगा.
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